बॉलीवुड
चूं चूं का नहीं, ढेंचूं का मुरब्बा है फ़िल्म 'क्रू'
paliwalwaniवरिष्ठ पत्रकार डॉ. प्रकाश हिंदुस्तानी जी की फिल्म समीक्षा...
- चूं चूं का मुरब्बा क्या होता है, कोई नहीं जानता! लेकिन कुछ तो होता होगा! वैसे ही यह फिल्म भी ढेंचूं का मुरब्बा है.
- रंगपंचमी पर लगी यह फ़िल्म भंग में रंग जैसी है. इस फिल्म का नाम क्रू नहीं, क्रुएल होना चाहिए था.
- टाइगर ऑटो गैरेज में बने आईफोन जैसी फ़िल्म है यह. !
हवाई जहाज में काम करने वाले कर्मचारियों के दस्ते को क्रू कहा जाता है. विमान में तरह-तरह के कर्मचारी होते हैं, लेकिन यह फिल्म की तीन एयर होस्टेस की कहानी है. इसमें किंगफिशर एयरलाइन के भगोड़े मालिक विजय माल्या की पैरोडी की गई है. किंगफिशर की जगह कोहिनूर एयर लाइंस और विजय माल्या की जगह विजय वालिया नाम रख दिया गया है.
जैसे विजय माल्या हज़ारों करोड़ डकारकर भाग गया, वैसे ही इस फिल्म में विजय वालिया भी भगौड़ा है. इस फ़िल्म में वालिया अपने ही विमान से सोने की तस्करी के जरिये धन विदेश भेजता है, जिसमें तब्बू, करीना और कृति सेनन एयरहोस्टेस के रूप में मजबूरी में उसकी मदद करती हैं.
विमान कंपनी का मालिक अपने हज़ारों कर्मचारियों को वेतन ना देकर एक दिन खुद को दिवालिया घोषित कर देता है और विदेश भाग जाता है. तीनों हीरोइनें हैप्पी न्यू ईयर के शाहरुख खान जैसी बन जाती हैं और उनका मिशन होता है, हज़ारों करोड़ का सोना वापस भारत लाना.
वे हीरोइन हैं, वह भी हिन्दी फ़िल्म की, तो उनका किसी भी मिशन में फेल होना, असंभव है. इस फिल्म के निर्माता निर्देशक और कुछ फ़िल्म समीक्षक लिखते हैं कि यह कॉमेडी फिल्म है,जबकि यह ट्रेजेडी फिल्म है! दर्शकों के साथ ट्रेजेडी है, यह फ़िल्म. इसमें भी चीज़ ऐसी नहीं है. जिसकी तारीफ की जा सके...! (सिवाय इसके कि यह फिल्म केवल 2 घंटे 3 मिनट की छोटी फिल्म है...!) दर्शकों को इस क्रू से जल्दी मुक्ति मिल जाती है.
यह फिल्म महिला पात्रों पर केंद्रित है, इसलिए इसमें अश्लील डायलॉग भी महिलाओं ने ही बोले हैं...! कमजोर एक्शन, कलाकारों का मेकअप बड़ा अजीब सा है. संगीत बेसुरा और बेज़ान है. दादा कोंडके स्टाइल के डायलॉग भी है. कपिल शर्मा भी फिल्म में है, लेकिन वे कुछ खास कर नहीं पाते.
चार गानों के सात गीतकार और पांच संगीतकार हैं, जो दर्शकों पर कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाए. चोली के पीछे क्या है वाले गाने को ही फिल्म में जबरदस्ती ठूंसना पड़ा. फिल्म का कोई भी पक्ष दर्शकों को मनोरंजन नहीं दे सका. मूर्खतापूर्ण कहानी के बावजूद दर्शक को फ़िल्म में हंसी नहीं, रोना आता है. इस फिल्म में तब्बू, करीना कपूर, कृति सेनन, कपिल शर्मा, दिलजीत दोसांझ जैसे कलाकारों को फिजूल खर्च किया गया है. फिल्म का तकनीकी पक्ष भी बहुत ही कमजोर है. सिनेमाघर में यह फ़िल्म देखने जाना, यानी चार- पांच दशक पुरानी दादा कोंडके की किसी फिल्म की अगली कड़ी देखना.