आपकी कलम

बिता कल और आज : रियासत V/S राष्ट्र याने राजा V/S सरकार

अशोक मेहता
बिता कल और आज : रियासत V/S राष्ट्र याने राजा V/S सरकार
बिता कल और आज : रियासत V/S राष्ट्र याने राजा V/S सरकार

रियासते होती थी उसमे राजा होता था और राजा की प्रजा होती थी, राजा सब कुछ तय करता था प्रजा के लिए अच्छा या बुरा जो भी हो प्रजा को मानना होता था यानी व्यवस्था में राजा प्रमुख बाद में प्रजा। जब लोकतंत्र आया राष्ट्र बने तो राजा की जगह सरकार और प्रजा की जगह आम नागरिक लेकीन लोकतंत्र में आम नागरिक प्रमुख होता है सरकार बाद में क्योंकि नागरिक ही सरकार को चुनता है कि अब राष्ट्र की व्यवस्था आप देखें। 

दोनों व्यवस्था में फर्क इतना था कि राजा अपने आप मे बड़े-बड़े महलों में गरिमामय परिधान और ऐशो आराम में रहता था और राज्य की व्यवस्था देखा था।सरकार जन व्यवस्था जन सुरक्षा जन सुविधा के लिए चुनी जाती है और जिसे चुना जाता है उसका कार्य राजा की तरह बड़े महल और ऐशो आराम की जिंदगी के लिए नहीं बल्कि जन सेवा के होता है।

परंतु विश्व पटल में इस समय अंतर इतना है कि सरकार में प्रमुख बड़े महलों में तो नहीं रहते परंतु राजा की तरह अपने तुगलकी अंदाज में नागरिक को को व्यवस्था देते है, विरोध उसको पसंद नहीं होता है विरोधियों को दबा देते हैं, अपनी सरकार बचाने के लिए वोट पाने के लिए फ्री में जमीन अन्न घर मकान  नकद व अन्य सामान यह कहकर की बाटे जाते हैं कि मैं अपने लाडली बहनों को हर माह इतना रूपया दूंगा, गैस दूंगा, बच्चों को साइकिल स्कुटी लेपटाप दूंगा और यह सब सरकारी खजाने से दे भी रहे है।

सरकार को यह कहने का कतई हक नही है कि मैं यह दे रहा हूं यह कोई आप अपनी जेब से या आपकी पार्टी से नहीं दे रहे हैं यह सरकारी खजाने से दे रहे हैं यह तो आपका काम है ही। कई जगह तो गेहूं भी दिए जाते हैं तो उसे थेले पर उनका फोटो होता है पोस्टरो और विज्ञापनों में भी उनके फोटो के साथ लिखा जाता है कि इन्होंने यह दिया अर्थात वे अपने आप को राजा बताते हैं। यहां लोकतंत्रीय व्यवस्था दब जाती है। हमें सरकार चाहिए राजा नहीं। 

  • अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)
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