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तिब्बती नववर्ष-लोसर के शुभ अवसर पर लिंग रिनपोछे और परम पावन दलाई लामा की भेंट
रविंद्र आर्य
लोसार : तिब्बती नववर्ष का पर्व : रविंद्र आर्य
लोसार तिब्बती समुदाय का सबसे प्रमुख पर्व है, जिसे तिब्बती नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व तिब्बती कैलेंडर के अनुसार 12वें महीने के अंत और नए वर्ष की शुरुआत में मनाया जाता है, जो आमतौर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार जनवरी या फरवरी में पड़ता है। लोसार मुख्य रूप से तिब्बत, नेपाल, भूटान और भारत में तिब्बती बौद्ध समुदाय द्वारा मनाया जाता है।
लोसार का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
लोसार का शाब्दिक अर्थ है 'लो' (वर्ष) और 'सार' (नया), यानी 'नया वर्ष'। यह पर्व तिब्बत में प्राचीन बोन धर्म से जुड़ा हुआ था, जिसे बाद में बौद्ध संस्कृति ने अपनाया। यह पर्व कृषि से भी जुड़ा हुआ है, क्योंकि पारंपरिक रूप से इसे फसल कटाई और नए मौसम के आगमन के साथ मनाया जाता था।
लोसार का प्रारंभिक जश्न तिब्बत के योर्लंग वंश (7वीं शताब्दी) के शासनकाल में शुरू हुआ था। इसे तिब्बत के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक और सामाजिक पर्व के रूप में देखा जाता है, जिसमें आध्यात्मिक अनुष्ठान, सांस्कृतिक नृत्य, पारंपरिक भोजन और सामाजिक मेल-जोल शामिल होता है।
लोसार का उत्सव और परंपराएँ
लोसार को तीन मुख्य दिनों में विभाजित किया जाता है : गुटुक - लोसार की पूर्व संध्या लोसार के एक दिन पहले 'गुटुक' नामक विशेष व्यंजन बनाया जाता है, जिसमें नौ तरह की सामग्री होती है। इस दिन घर की सफाई, पुराने सामानों का त्याग और नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर करने के लिए अनुष्ठान किए जाते हैं। बौद्ध मठों में 'छाम नृत्य' किया जाता है, जिसमें बौद्ध भिक्षु रंगीन पोशाक पहनकर नकारात्मक शक्तियों का नाश करने के लिए नृत्य करते हैं।
● लोसार का पहला दिन - धार्मिक अनुष्ठान
इस दिन लोग बौद्ध मठों और मंदिरों में जाते हैं, विशेष पूजा करते हैं और अच्छे भविष्य की कामना करते हैं। दलाई लामा और प्रमुख लामा अपने अनुयायियों को आशीर्वाद देते हैं। पारंपरिक तिब्बती पोशाक पहनकर लोग अपने परिवार और रिश्तेदारों से मिलते हैं।
● लोसार का दूसरा और तीसरा दिन - सामाजिक उत्सव
लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने जाते हैं। पारंपरिक तिब्बती व्यंजन जैसे 'खापसे' (खस्ता पकवान), 'छांग' (जौ से बनी शराब) और 'मोमो' खाए जाते हैं। घोड़ों की दौड़, पारंपरिक नृत्य और संगीत के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
● भारत में तिब्बती समुदाय और लोसार का महत्व
भारत में तिब्बती शरणार्थियों की एक बड़ी आबादी है, जो 1959 में दलाई लामा के भारत आगमन के बाद यहाँ बस गई। धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) तिब्बती शरणार्थियों का केंद्र बना और इसे 'लिटिल तिब्बत' कहा जाता है। यहाँ हर साल बड़े धूमधाम से लोसार मनाया जाता है।
● भारत के अन्य प्रमुख स्थान जहाँ लोसार धूमधाम से मनाया जाता है :
- लद्दाख (लेह, कारगिल)
- सिक्किम (गंगटोक, रुमटेक मठ)
- अरुणाचल प्रदेश (तवांग मठ, बौद्ध मठ)
- उत्तराखंड (देहरादून, मुनस्यारी, माणा गाँव)
लद्दाख और सिक्किम में बौद्ध अनुयायी इस पर्व को बड़े स्तर पर मनाते हैं, जहाँ पारंपरिक नृत्य, धार्मिक अनुष्ठान और जुलूस निकाले जाते हैं। दलाई लामा की भारत में भूमिका और लोसार का संदर्भ दलाई लामा तिब्बती बौद्ध धर्म के सबसे बड़े आध्यात्मिक गुरु हैं। वे 1959 में चीन के तिब्बत पर नियंत्रण के बाद भारत में शरण लेने आए और तब से धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) में रह रहे हैं।
● भारत में उनकी भूमिका : तिब्बती शरणार्थियों के संरक्षक: भारत में बसे तिब्बती समुदाय के लिए वे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मार्गदर्शक हैं।
● बौद्ध धर्म के प्रचारक : वे दुनियाभर में बौद्ध धर्म, अहिंसा और करुणा का संदेश फैलाते हैं।
भारत-तिब्बत संबंधों के प्रतीक : भारत में उनके होने से तिब्बत और भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध मजबूत हुए हैं।
● लोसार पर विशेष संबोधन : हर वर्ष लोसार पर वे तिब्बती समुदाय को संदेश देते हैं और विश्वभर के लिए शांति की कामना करते हैं। हालाँकि, चीन दलाई लामा की भारत में उपस्थिति को संदेह की दृष्टि से देखता है और इसे चीन-भारत संबंधों में संवेदनशील मुद्दा मानता है। लोसार न केवल तिब्बतियों के लिए बल्कि पूरे हिमालयी बौद्ध समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण पर्व है।
भारत में तिब्बती समुदाय ने इसे अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने का माध्यम बना लिया है। दलाई लामा की उपस्थिति इस पर्व को और भी विशेष बना देती है। भारत में तिब्बती समुदाय के संरक्षण और उनके सांस्कृतिक पर्वों के सम्मान से यह स्पष्ट होता है कि भारत विविध संस्कृतियों को स्वीकार करने वाला देश है।
लोसार सिर्फ एक नववर्ष नहीं, बल्कि तिब्बती परंपराओं, आध्यात्मिकता और सामाजिक एकता का प्रतीक है। तिब्बती नववर्ष (लोसर) के शुभ अवसर पर लिंग रिनपोछे और परम पावन दलाई लामा की भेंट तिब्बती नववर्ष (लोसर) के पावन अवसर पर, परम आदरणीय लिंग रिनपोछे ने परम पावन 14 वें दलाई लामा से एक विशेष भेंट की। इस गहन और हृदयस्पर्शी मुलाकात के दौरान, लिंग रिनपोछे ने परम पावन के दीर्घायु होने की प्रार्थना करते हुए निवेदन किया कि वे समस्त प्राणियों के कल्याण के लिए यथासंभव लंबे समय तक इस संसार में विराजमान रहें।
● उन्होंने श्रद्धापूर्वक प्रार्थना की : "जीवन-जीवनांतर तक, बिना किसी व्यवधान के, जब तक मैं पूर्ण बोधिसत्व अवस्था तक नहीं पहुंच जाता, तब तक मैं आपके पवित्र सान्निध्य, मार्गदर्शन और आशीर्वाद से कभी वंचित न रहूं। मैं सदैव आपकी अमूल्य शिक्षाओं का पूर्ण रूप से पालन करने में सक्षम रहूं।" परम पावन दलाई लामा ने लिंग रिनपोछे की इस हृदयपूर्ण प्रार्थना को सहर्ष स्वीकार किया।
यह पावन क्षण नए वर्ष की एक शुभ शुरुआत को चिह्नित करता है और परम पावन दलाई लामा एवं लिंग रिनपोछे के मध्य अटूट आध्यात्मिक संबंध को और सुदृढ़ करता है। समस्त प्राणियों के कल्याण हेतु, ये प्रार्थनाएँ शीघ्र पूर्ण हों!
● लेखक : रविंद्र आर्य 7838195666