धर्मशास्त्र
क्या और क्यों ध्यान रखे : कुछ पुरानी ज्ञानवर्धक बातें जो आप सभी को पता होना आवश्यक
Paliwalwaniजब भी हम घर से किसी खास कार्य को लक्ष्य बनाकर निकलते हैं उस वक्त सीधा पैर पहले बाहर रखने से निश्चित ही आपको कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। यह परंपरा काफी पुरानी है जिसे हमारे घर के बुजूर्ग समय-समय पर बताते रहते हैं। इस प्रथा के पीछे मनोवैज्ञानिक और धार्मिक कारण दोनों ही हैं।
धर्म शास्त्रों के अनुसार सीधा पैर पहले बाहर रखना शुभ माना जाता है। सभी धर्मों में दाएं अंग को खास महत्व दिया गया है। सीधे हाथ से किए जाने वाले शुभ कार्य ही देवी-देवताओं द्वारा मान्य किए जाते हैं। देवी-देवताओं की कृपा के बिना कोई भी व्यक्ति किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। इसी कारण सभी पूजन कार्य सीधे हाथ से ही किए जाते हैं।
जब भी घर से बाहर जाते हैं तो सीधा पैर ही पहले बाहर रखते हैं ताकि कार्य की ओर पहला कदम शुभ रहेगा तो सफलता अवश्य प्राप्त होगी।इस परंपरा के पीछे एक तथ्य और है कि इसका हम पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। सीधा पैर पहले बाहर रखने से हमें सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है और मन प्रसन्न रहता है। इस बात का हम पर दिनभर प्रभाव रहता है। बाएं पैर को पहले बाहर निकालने पर हमारे विचार नकारात्मक बनते हैं।
आरती के बाद जरूर लेना चाहिए चरणामृत क्योंकि....
हिंदू धर्म में भगवान की आरती के पश्चात भगवान का चरणामृत दिया जाता है। इस शब्द का अर्थ है भगवान के चरणों से प्राप्त अमृत। हिंदू धर्म में इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है तथा मस्तक से लगाने के बाद इसका सेवन किया जाता है। चरणामृत का सेवन अमृत के समान माना गया है। कहते हैं
भगवान श्रीराम के चरण धोकर उसे चरणामृत के रूप में स्वीकार कर केवट न केवल स्वयं भव-बाधा से पार हो गया बल्कि उसने अपने पूर्वजों को भी तार दिया। चरणामृत का महत्व सिर्फ धार्मिक ही नहीं चिकित्सकीय भी है। चरणामृत का जल हमेशा तांबे के पात्र में रखा जाता है।
आयुर्वेदिक मतानुसार तांबे के पात्र में अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति होती है जो उसमें रखे जल में आ जाती है। उस जल का सेवन करने से शरीर में रोगों से लडऩे की क्षमता पैदा हो जाती है तथा रोग नहीं होते। इसमें तुलसी के पत्ते डालने की परंपरा भी है जिससे इस जल की रोगनाशक क्षमता और भी बढ़ जाती है। ऐसा माना जाता है कि चरणामृत मेधा, बुद्धि, स्मरण शक्ति को बढ़ाता है। रणवीर भक्तिरत्नाकर में चरणामृत की महत्ता प्रतिपादित की गई है-अर्थात पाप और रोग दूर करने के लिए भगवान का चरणामृत औषधि के समान है। यदि उसमें तुलसीपत्र भी मिला दिया जाए तो उसके औषधिय गुणों में और भी वृद्धि हो जाती है।
क्यों नहीं रखना चाहिए बिस्तर पर झाड़ू?
हमारा देश विश्वभर में अपनी संस्कृति व मान्यताओं के कारण पहचाना जाता है। हमारे देश में सुबह से लेकर शाम तक हम जो भी काम करते हैं लगभग हर कार्य से जुड़ी कोई न कोई मान्यता जरूर है। जैसे सुबह जल्दी उठना, नहाने के बाद ही मंदिर जाना या पूजा करना, शाम के समय सफाई नहीं करना व रात को झूठे बर्तन नहीं छोडऩा आदि।
हमारे यहां ऐसे हर एक दैनिक कार्य से जुड़ी कई छोटी-छोटी मान्यताएं है। ऐसी हर एक मान्यता के पीछे हमारे पूर्वजों की कोई न कोई गहरी सोच और धार्मिक कारण तो है ही साथ ही वैज्ञानिक कारण भी है। आजकल अधिकतर युवा ऐसी परंपराओं को या मान्यताओं को अंधविश्वास मानकर उन पर विश्वास नहीं करते हैं। ऐसी ही एक मान्यता है कि बिस्तर पर झाड़ू नहीं रखना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार कहा जाता है कि झाड़ू को बिस्तर पर नहीं रखना चाहिए क्योंकि इससे घर में अलक्ष्मी का वास होता है या लक्ष्मी रूठ जाती है।
इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि जिस झाड़ू से हम रूम साफ करते हैं उसमें धूल, कचरा व जीवाणु लगे होते हैं। उसे बिस्तर पर रखने से बिस्तर पर धूल व जीवाणु पहुंच जाते हैं। जिससे घर वालों को सर्दी-जुकाम और अन्य बीमारीयां होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए कहा जाता है कि बिस्तर पर झाड़ू नहीं रखना चाहिए।
मासिकधर्म के दिनों में लड़कियों को किचन में काम क्यों नहीं करना चाहिए?
वैदिक धर्म के अनुसार मासिकधर्म के दिनों में महिलाओं के लिए सभी धार्मिक कार्य वर्जित किए गए हैं। साथ ही इस दौरान महिलाओं को अन्य लोगों से अलग रहने का नियम भी बनाया गया है। ऐसे में स्त्रियों को धार्मिक कार्यों से दूर रहना होता है क्योंकि सनातन धर्म के अनुसार इन दिनों स्त्रियों को अपवित्र माना गया है।साथ ही इस दौरान महिलाओं को का रसोई घर में काम करना भी अच्छा नहीं माना जाता है।
लेकिन आजकल के अधिकांश युवा इसे अंधविश्वास मानकर उस पर विश्वास नहीं करते हैं। शास्त्रों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि मासिक धर्म के समय महिलाओं को रसोई में कार्य नहीं करना चाहिए यानी भोजन नहीं बनाना चाहिए क्योंकि उनके द्वारा बनाया भोजन करने पर पुरुषों का मन काम में नहीं लगता है। साथ ही अग्रि को हमारे धर्म ग्रंथों में बहुत अधिक पवित्र माना गया है। इसलिए कहा जाता है कि उन दिनों रसोई घर में काम करने से घर में बरकत नहीं रहती।
इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि मासिक धर्म के समय महिलाओं को अनेक तरह के शारीरिक व्याधियां परेशान करती है। जिसके कारण वे आम दिनों की अपेक्षा अधिक कमजोर हो जाती हैं। महिलाओं के गर्भाशय का मुंह इन दिनों खुला रहता है इस कारण वे शारीरिक रूप से थोड़ा कमजोर महसूस करती है। ऐसे में थकान और चिड़चिड़ापन होना भी सामान्य बाज है। इसीलिए महिलाएं उन दिनों में अपने शरीर को पूरा आराम दें और अधिक काम ना करें। इसी सोच के साथ यह परंपरा बनाई गई है कि उन दिनों महिलाओं को किचन में काम करना चाहिए।
लड़कियों को शादी में नहीं देना चाहिए श्रीगणेश
क्योंकि...
शादी यानी नाच-गाना उत्साह और उमंगो से भरा एक समारोह जिसमें दो दिल या दो लोग ही नहीं बल्कि दो परिवार रिश्तों के पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। हिन्दू परंपरा के अनुसार बेटियों की शादी में उसके मायके वालों की ओर से अनेक उपहार विवाह के उपलक्ष्य में बेटी को दिए जाते हैं। माता-पिता का यही सपना होता है कि उनकी बेटी ससुराल में हमेशा खुश रहे। उसे कभी किसी तरह की कोई कमी महसूस ना हो। इसी सोच के कारण अधिकतर लोग शादी में अपनी बेटी को सोने, चांदी या अन्य तरह के भगवान की मुर्तियां भी देते हैं।
वर्तमान में गिफ्ट के रूप में सबसे ज्यादा चलन में है गणेशजी की मूर्ति क्योंकि गणेशजी को रिद्धि-सिद्धि के दाता माना जाता है। इसलिए गणेशजी की मूर्ति दी जाती है लेकिन हमारे बड़े-बुजूर्ग लोगों की इस बारे में मान्यता है कि बेटी को शादी में मायके वालों की तरफ से उपहार में कभी भी गणेशजी नहीं देने चाहिए क्योंकि बेटियां घर की लक्ष्मी होती है और उन्हे यदि गणेशजी भेंट किए जाते हैं तो घर की रिद्धि-सिद्धि उनके साथ चली जाती है क्योंकि शास्त्रों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि जहां गणेशजी का निवास होता है वहीं लक्ष्मीजी का निवास होता है। इसलिए बेटियों को विवाह में उपहार में गणेशजी नहीं देने चाहिए।
मंदिर से लौटने के पहले वहां कुछ देर क्यों बैठना चाहिए?
माना जाता है कि मंदिरों में ईश्वर साक्षात् रूप में विराजित होते हैं। किसी भी मंदिर में भगवान के होने की अनुभूति प्राप्त की जा सकती है। भगवान की प्रतिमा या उनके चित्र को देखकर हमारा मन शांत हो जाता है और हमें सुख प्राप्त होता है। हम इस मनोभाव से भगवान की शरण में जाते हैं कि हमारी सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी, जो बातें हम दुनिया से छिपाते हैं वो भगवान के आगे बता देते हैं, इससे भी मन को शांति मिलती है, बेचैनी खत्म होती है
दूसरा कारण है वास्तु, मंदिरों का निर्माण वास्तु को ध्यान में रखकर किया जाता है।हर एक चीज वास्तु के अनुरूप ही बनाई जाती है, इसलिए वहां सकारात्मक ऊर्जा ज्यादा मात्रा में होती है। तीसरा कारण है वहां जो भी लोग जाते हैं वे सकारात्मक और विश्वास भरे भावों से जाते हैं सो वहां सकारात्मक ऊर्जा ही अधिक मात्रा में होती है। चौथा कारण है मंदिर में होने वाले नाद यानी शंख और घंटियों की आवाजें, ये आवाजें वातावरण को शुद्ध करती हैं।
पांचवां कारण है वहां लगाए जाने वाले धूप-बत्ती जिनकी सुगंध वातावरण को शुद्ध बनाती है। इस तरह मंदिर में लगभग सभी ऐसी चीजें होती हैं जो वातावरण की सकारात्मक ऊर्जा को संग्रहित करती हैं। हम जब मंदिर में जाते हैं तो इसी सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव हम पर पड़ता है और हमें भीतर तक शांति का अहसास होता है। इसलिए मंदिर से लौटने से पहले वहां कुछ देर जरूर बैठना चाहिए।
दाह संस्कार के समय क्यों की जाती है कपाल क्रिया?
हिंदू धर्म में मृत्यु के उपरांत मृतक का दाह संस्कार किया जाता है अर्थात मृत देह को अग्नि को समर्पित किया जाता है। दाह संस्कार के समय कपाल क्रिया भी की जाती है। दाह संस्कार के समय कपाल क्रिया क्यों की जाती है? इसका वर्णन गरुड़पुराण में मिलता है।
उसके अनुसार जब शवदाह के समय मृतक के सिर पर घी की आहुति दी जाती है तथा तीन बार डंडे से प्रहार कर खोपड़ी फोड़ी जाती है इसी प्रक्रिया को कपाल क्रिया कहते हैं। इस क्रिया के पीछे अलग-अलग मान्यताएं हैं। एक मान्यता के अनुसार कपाल क्रिया के पश्चात ही प्राण पूरी तरह स्वतंत्र होते हैं और नए जन्म की प्रक्रिया आगे बढ़ती है। दूसरी मान्यता है कि खोपड़ी को फोड़कर मस्तिष्क को इसलिए जलाया जाता है ताकि वह अधजला न रह जाए अन्यथा अगले जन्म में वह अविकसित रह जाता है। हमारे शरीर के प्रत्येक अंग में विभिन्न देवताओं का वास होने की मान्यता का विवरण श्राद्ध चंद्रिका में मिलता है। चूंकि सिर में ब्रह्मा का वास माना गया है इसलिए शरीर को पूर्ण रूप से मुक्ति प्रदान करने के लिए कपाल क्रिया द्वारा खोपड़ी को फोड़ा जाता है। खोपड़ी की हड्डी इतनी मजबूत होती है कि उसे अग्नि में भस्म होने में भी समय लगता है। वह फूट जाए और मस्तिष्क में स्थित ब्रह्मरंध्र पंचतत्व में पूर्ण रूप से विलीन हो जाए इसलिए कपाल क्रिया करने का विधान है।
शनिवार को ऐसा करना माना जाता है अशुभ क्योंकि...
शनि को क्रूर ग्रह माना जाता है और यह किसी भी दशा में गलत कार्य करने वालों को माफ नहीं करता। जिसका जैसा कार्य होगा उसे शनि वैसा ही फल प्रदान करता है। बुजूर्गों और विद्वानों द्वारा शनि के कोप से बचने के लिए ऐसे कई कार्य मना किए गए हैं जो शनिवार के दिन हमें नहीं करने चाहिए। इन्हीं कार्यों में से एक कार्य यह वर्जित है कि शनिवार को घर में नया लोहा लेकर नहीं आना चाहिए।
इस बात विशेष ध्यान रखना चाहिए कि शनिवार को किसी प्रकार की लोहा की कोई नई वस्तु घर में न लेकर आए। लोहा की वस्तु या जिसके निर्माण में लोहा का उपयोग होता है वे सभी शनिवार को घर नहीं लेकर आना चाहिए। लोहा शनि की धातु है और शनिवार को लोहा लेकर आने से हमारे घर पर शनि का प्रभाव बढ़ता है। यदि घर के किसी सदस्य पर शनि की अशुभ दृष्टि हो तो उसके लिए यह बुरा फल देने वाला सिद्ध होगा। ऐसे उस सदस्य को कई प्रकार की असफलताएं तथा मानसिक तनाव का सामना करना पड़ सकता है। इसी वजह से शनिवार को घर में लोहा के कोई भी नई वस्तु लेकर आना शुभ नहीं माना जाता।
क्यों और क्या करें पूर्वजों से आशीर्वाद पाने के लिए?
वेदों में पीपल के पेड़ को पूज्य माना गया है। पीपल की छाया तप, साधना के लिए ऋषियों का प्रिय स्थल माना जाता था।महात्मा बुद्ध का बोधक्त निर्वाण पीपल की घनी छाया से जुड़ा हुआ है। शास्त्रों के अनुसार पीपल में भगवान विष्णु का निवास माना गया है और विष्णु को पितृ के देवता माना गया है क्योंकि प्रसिद्ध ग्रन्थ व्रतराज की अश्वत्थोपासना में पीपल वृक्ष की महिमा का उल्लेख है।
इसमें अर्थवणऋषि पिप्पलादमुनि को बताते हैं कि प्राचीन काल में दैत्यों के अत्याचारों से पीडि़त समस्त देवता जब विष्णु के पास गए और उनसे कष्ट मुक्ति का उपाय पूछा, तब प्रभु ने उत्तर दिया-मैं अश्वत्थ के रूप में भूतल पर प्रत्यक्ष रूप से विद्यमान हूं। इसलिए यह मान्यता हैं विष्णु भगवान के स्वरूप पीपल को पितृ निमित्त जो भी चढ़ाया जाता है। उससे हमारे पूर्वजों को तृप्ति मिलती है। इसलिए इस पूर्वजों की तृप्ति के लिए पीपल को दूध और जल चढ़ाया जाता है।
शाम के समय घर में दीपक जरूर लगाना चाहिए क्योंकि...
दीपक में अग्नि का वास होता है। जो पृथ्वी पर सूरज का रूप है। धर्म की लगभग हर एक प्रसिद्ध पुस्तक में संध्या पूजन का विशेष महत्व बताया गया है। साथ ही संध्या के समय घर में दीपक लगाना या प्रकाश करना भी आवश्यक माना जाता है। संध्या का शाब्दिक अर्थ संधि का समय है यानि जहां दिन का समापन और रात शुरू होती है, उसे संधिकाल कहा जाता है।
ज्योतिष के अनुसार दिनमान को तीन भागों में बांटा गया है- प्रात:काल, मध्याह्न और सायंकाल।संध्या पूजन के लिए प्रात:काल का समय सूर्योदय से छह घटी तक, मध्याह्न 12 घटी तक तथा सायंकाल 20 घटी तक जाना जाता है।
एक घटी में 24 मिनट होते हैं। प्रात:काल में तारों के रहते हुए, मध्याह्न में जब सूर्य मध्य में हो तथा सायं सूर्यास्त के पहले संध्या करना चाहिए। संध्या से तात्पर्य पूजा या भगवान को याद करने से हैं शास्त्रों की मान्यता है कि नियमपूर्वक संध्या करने से पापरहित होकर ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है।
रात या दिन में हम से जाने अनजाने जो बुरे काम हो जाते हैं, वे त्रिकाल संध्या से नष्ट हो जाते है। घर में संध्या के दीपक जलाना या प्रकाश रखना आवश्यक माना गया है क्योंकि घर में शाम के समय अंधेरा रखने पर घर में नकारात्मक ऊर्जा का निवास होता है।
घर में बरकत नहीं रहती और घर में अलक्ष्मी का वास होता है। इसलिए शाम को घर में अंधेरा नहीं रखना चाहिए। साथ ही संध्या के समय घी का दीपक भी इसी उदेश्य से लगाया जाता है। कहते हैं इस समय घर में घी का दीपक लगाने से घर में उपस्थित नकारात्मक ऊर्जा तो दूर होती ही है। घर में सुख-समृद्धि बढ़ती हैऔर घर में लक्ष्मी का स्थाई निवास होता है।
शिव मंदिर के बाहर बैठे नंदी की मूर्ति क्यों होती है?
शिव परिवार के बारे में सबसे अद्भुत बात यह है कि शिवजी के परिवार के हर एक सदस्य का वाहन दुसरे के वाहन का भोजन है शिव को महाकाल माना जाता है लेकिन उनका वाहन बैल है। जिसे नंदी कहते हैं। इसीलिए हर शिव मंदिर में शिवजी के सामने नंदी बैठा होता है। दरअसल शिवजी का वाहन नंदी पुरुषार्थ यानी मेहनत का प्रतीक है। अब सवाल यह बनता है कि नंदी शिवलिंग की ओर ही मुख करके क्यों बैठा होता है? जानते हैं दरअसल नंदी का संदेश है कि जिस तरह वह भगवान शिव का वाहन है। ठीक उसी तरह हमारा शरीर आत्मा का वाहन है।
जैसे नंदी की नजर शिव की ओर होती है, उसी तरह हमारी नजर भी आत्मा की ओर हो। हर व्यक्ति को अपने दोषों को देखना चाहिए। हमेशा दूसरों के लिए अच्छी भावना रखना चाहिए। नंदी का इशारा यही होता है कि शरीर का ध्यान आत्मा की ओर होने पर ही हर व्यक्ति चरित्र, आचरण और व्यवहार से पवित्र हो सकता है। इसे ही आम भाषा में मन का साफ होना कहते हैं। जिससे शरीर भी स्वस्थ होता है और शरीर के निरोग रहने पर ही मन भी शांत, स्थिर और दृढ़ संकल्प से भरा होता है। इस प्रकार संतुलित शरीर और मन ही हर कार्य और लक्ष्य में सफलता के करीब ले जाता है।