धर्मशास्त्र
क्या आप जानते है 4 नहीं 5 संतानों के पिता थे राजा दशरथ?, यहां मौजूद है उनकी पांचवी संतान का मंदिर
Paliwalwaniआज तक हम सब को यही पता है कि, राजा दशरथ की 4 संतानें थीं, जिनमें से श्रीराम सबसे बड़े थे. लेकिन ऐसा नहीं है. वास्तव में राजा दशरथ की 4 नहीं बल्कि 5 संताने थी. उनकी इस पांचवी संतान के बारे में न तो आपको वाल्मीकि रामायण में कहीं जिक्र मिलेगा और न ही रामचरितमानस में.
लेकिन दक्षिण भारत में प्रचलित रामायण कथा में राजा दशरथ की इस पांचवीं संतान का जिक्र किया गया है. दक्षिण भारत में प्रचलित रामायण कथा के अनुसार राजा दशरथ की सबसे बड़ी संतान एक पुत्री थीं, जो भगवान राम से भी बड़ी थीं. उनकी बड़ी बेटी का नाम शांता देवी था और ये राजा दशरथ और माता कौशल्या की पुत्री थीं. हिमाचल प्रदेश के कुल्लू से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर उनका आज भी एक शानदार मंदिर बना हुआ है, यहाँ उनकी पूजा उनके पति के साथ की जाती है. आपको बताते है ये पूरी कथा.
ये है कथा
पौराणिक कथा की माने तो जब राजा दशरथ की पुत्री शांता देवी ने जन्म लिया तो पूरे अयोध्या में अकाल पड़ गया था. यह अकाल की स्थिति 12 वर्षों तक बनी रही. इसकी वजह से प्रजा को भी काफी कष्ट सहने पड़े थे. ऐसे में चिंतित राजा दशरथ को यह सलाह दी गई कि यदि वे शांता को दान कर दें तो उनके राज्य में अकाल की स्थिति टल सकती है.
ऐसे में प्रजा के कल्याण के लिए राजा दशरथ और कौशल्या ने अपनी प्रिय और गुणवान पुत्री को अंगदेश के राजा रोमपाद और वर्षिणी को दान कर दिया क्योंकि उनकी एक भी संतान नहीं थी. वर्षिणी माता कौशल्या की बहन थीं. ऐसे में राजा रोमपाद और वर्षिणी ने शांता का पालन पोषण बेहद ही प्रेम और स्नेह से किया और इसके बाद शांता को अयोध्या की नहीं बल्कि अंगदेश की राजकुमारी कहा जाने लगा. शांता वेद, कला तथा शिल्प में पारंगत थीं और वे अत्यंत सुंदर भी थीं.
जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह शृंगी ऋषि के साथ हुआ. ऐसा भी कहा जाता है कि एक बार अयोध्या से जाने के बाद शांता कभी वापस वहां नहीं आयीं. उन्हें रोमपाद और वर्षिणी की पुत्री के रूप में जाना गया. इसी वजह से आज भी राजा दशरथ की संतानों में सिर्फ 4 पुत्रों की गिनती की जाती है, जिनमें श्रीराम सबसे बड़े है.
कुल्लू में बना शांता देवी का मंदिर
हिमाचल के कुल्लू से 50 किलोमीटर की दूरी पर आज भी शांता देवी का एक मंदिर बना हुआ है. वहां इस देवी की प्रतिमा उनके पति शृंगी ऋषि के साथ स्थापित की गई है. भक्त दूर-दूर से यहां आकर माता शांता देवी और शृंगी ऋषि की पूजा अर्चना करते हैं. मान्यता है कि, यहां शांता देवी की पूजा करने से प्रभु श्रीराम की भी कृपा प्राप्त होती है और सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी हो जाती है.