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नाबालिग बच्ची से बलात्कार के दोषी विधायक को पचीस वर्ष की सजा, फैसले से इंसाफ के प्रति जगी उम्मीद
Pushplataकई बार बड़े नेताओं, खासकर विधायकों और सांसदों को किसी अपराध के मामले में सजा दिलाना कठिन होता है। कद-पद का लाभ उठा कर ऐसे नेता न केवल अपने अपराधों के खिलाफ उठने वाली आवाज को दबा देते, बल्कि कुछ मामलों में कानून की पकड़ से भी बचे रहते हैं। मगरमें दुद्धी से एकविधायक को बलात्कार के अपराध में जो सजा सुनाई गई, उससे साफ है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है।
गौरतलब है कि सोनभद्र के न्यायालय ने नाबालिग बच्ची से बलात्कार के दोषी साबित हुए एक विधायक को यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम यानी पाक्सो के तहत पच्चीस वर्ष की सजा सुनाई है। साथ ही उन पर दस लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। बलात्कार की इस घटना में नौ साल पहले प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। अब लंबी सुनवाई के बाद अदालत का यह फैसला आया है। जाहिर है, इतनी लंबी अवधि के बाद आए अदालत के फैसले के बाद भी इंसाफ के प्रति यह उम्मीद कायम रही कि कानून के कठघरे में सब बराबर हैं।
अब दोषसिद्धि और अदालत में सजा तय किए जाने के बाद विधायक की विधानसभा सदस्यता खत्म हो सकती है, क्योंकि अगर किसी जनप्रतिनिधि को कोई न्यायालय दो वर्ष से ज्यादा की सजा देती है तो उसकी सदस्यता चली जाती है। हालांकि इस मामले में विधायक की तरफ से ऊंची अदालत में अपील करने की बात कही गई है, मगर एक नाबालिग बच्ची से बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के बाद जैसी परिस्थितियां रहीं, उससे यह सवाल अपनी जगह है कि इसमें फैसला आने में इतना लंबा वक्त क्यों लगा।
खबरों के मुताबिक, इस मामले को दबाने के लिए विधायक की ओर से तमाम कोशिशें की गर्इं। बलात्कार के बाद पीड़िता किशोरी गर्भवती हो गई थी और बाद में उसने बच्ची को भी जन्म दिया। इसके बावजूद, मुकदमा चलने के दौरान पीड़िता को हत्या और गांव से बाहर फेंक देने जैसी अनेक तरह की धमकियां दी गईं और प्रलोभन भी दिया गया। आरोप यहां तक है कि पीड़िता को बालिग करार देने के लिए उसकी जन्मतिथि बढ़वा कर फर्जी स्कूल प्रमाण पत्र भी बनवा दिया गया।
यह कोई छिपी बात नहीं है कि साधारण लोगों के खिलाफ अपराध घटित होने के बाद पुलिस से लेकर प्रशासन के सभी स्तरों पर भेदभावपूर्ण रुख अख्तियार किया जाता है। कई बार पुलिस रसूख वाले अपराधियों के पक्ष में ही काम करती दिखती है और कमजोर तबके के लोगों को कानूनी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने से रोकने के लिए तरह-तरह से हतोत्साहित करती है।
खासकर ऊंचे कद वाले नेताओं और जनप्रतिनिधियों के आरोपी होने की स्थिति में पुलिस-प्रशासन के काम करने के तौर-तरीके पर्याप्त संवेदनशील नहीं होते। मगर इस मामले में पुलिस ने पाक्सो अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर अदालत में पत्रावली प्रस्तुत की थी। लंबी जद्दोजहद के बाद अदालत ने भी विधायक को दोषी पाया और सख्त सजा सुनाई।
हैरानी की बात है कि जो नेता आम जनता के सामने उनकी भलाई और कमजोर तबकों के कानूनी अधिकार सुनिश्चित करने के वादे करके उनका वोट हासिल करते हैं, मौका मिलते ही कई बार उनके खिलाफ अपराध करने से भी नहीं चूकते। इस लिहाज से पच्चीस वर्ष की कैद और दस लाख रुपए जुर्माने की सजा को रसूखदार और आपराधिक मानसिकता वाले जनप्रतिनिधियों के लिए एक सबक की तरह देखा जा सकता है।