राजसमन्द
फैशन डिजाइनर के क्षेत्र 1000 महिला बनी स्वावलंबी-भावना पालीवाल
किशन पालीवाल ✍देवगढ़। श्रीमती भावना महेश पालीवाल का अरमान था फैशन डिजाइनर के क्षेत्र में बड़ा नाम पाने का, इसीलिए सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण लेने मध्यप्रदेश, इंदौर तक गई। हालात कुछ ऐसे बने कि मनचाहा मुकाम नहीं मिल सका, मगर इस हुनर की बदौलत आज वे खुशियों का खजाना लुटा रही हैं। खुद तो आत्म निर्भर हैं ही, 1000 से ज्यादा जरूरतमंद युवतियों को प्रशिक्षण देकर आत्म निर्भर बना चुकी हैं। इनमें कई महिलाएं ऐसी हैं जो सिलाई-कढ़ाई के रोजगार भी स्थापित कर चुकी हैं और तमाम अबलाओं का सहारा बनी हैं। अबलाओं को सबल बनाने का भावना पालीवाल का कारवां सतत् आगे बढ़ रहा है, डिग्री नहीं जज्बे से मिलती है कामयाबी।
संक्षिप्त परिचय :-
नाम:- श्रीमती भावना पालीवाल
योग्यता:- स्नातकोत्तर (इतिहास), स्नातकोत्तर (कम्प्युटर),
पति का नाम:- महेश पालीवाल, देवगढ़, राजस्थान
मुकाम:- जिद्द ओर जुनून ने ठानी दुनिया में कुछ अलग करना
जिला राजसमंद की तहसील देवगढ़ की रहने वाली श्रीमती भावना पालीवाल बचपन से ही सिलाई-कढ़ाई में रुचि रखने वाली श्रीमती भावना पालीवाल ने अपनी शिक्षा स्नातकोत्तर तक ही ली। श्रीमती भावना महेश पालीवाल ने पालीवाल वाणी को बताया की स्वयं की उच्च स्तरीय शिक्षा होने के बावजूद घर की जिम्मेदारियों के कारण ओर बढ़ते प्रतियोगिता के कारण अच्छी नौकरी नहीं मिल पाई। जिसकी कसक मन में इस तरह उभरी की ओर वे सिलाई-कढ़ाई का डिप्लोमा करने मध्यप्रदेश के इंदौर चली गईं। उनकी प्रबल इच्छा थी कि वे नामचीन फैशन डिजाइनर बनें। सिलाई-कढ़ाई में उन्होंने महारत हासिल की, मगर कुछ हालात ऐसे बने कि फैशन डिजाइनर के क्षेत्र में वे ऊंचाई हासिल नहीं कर सकीं लेकिन श्रीमती भावना पालीवाल ने हिम्मत नहीं हारी ओर सोच लिया की आज के दौर में कई महिलाए है जो शिक्षित होते हुए भी आत्मनिर्भर नहीं है ओर जो बिलकुल अनपढ़ है उनका क्या वो तो घर के चार दिवारी में बंद है। अपने अरमानो के साथ बस फिर क्या श्रीमती भावना पालीवाल ने ठान लिया की उन सभी महिलाआंे को आत्मनिर्भर बनाएगी भले ही किसी को नौकरी न मिले, लेकिन स्वरोजगार के दरवाजे हर किसी के लिए खुले हैं जिस से वे उनके सपनों को पूरा करेगी और निरंतर आगे बढ़ रही है।
संघर्ष का संदेश देती है :- श्रीमती भावना पालीवाल
श्रीमती भावना महेश पालीवाल ने पालीवाल वाणी को बताया की हमारे यहा पुरुष प्रधान समाज मे रूढ़िवादिता इतनी है कि यह सोचा जाता है की महिलाए वह काम नहीं कर सकती जो पुरुष कर सकते है समाज के इसी मिथक को तोड़ने के लिए श्रीमती भावना महेश पालीवाल ने कदम उठाया भावना ने कहा की विवाह पश्चात तो महिलाओं पर और भी भारी जिम्मेदारियां आ जाती है। पति, सास-ससुर, देवर-ननद की सेवा के पश्चात उनके पास अपने लिए समय ही नहीं बचता। वे कोल्हू के बैल की तरह घर-परिवार की चार दिवारी में ही कैदी की तरहा कैद हो कर रह जाती हैं। संतान के जन्म के बाद तो उनकी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। घर-परिवार, चैके-चूल्हे में खटने में ही एक आसरा महिला के जीवन में कब बीत जाता है, पता ही नहीं चलता। कई बार वे अपने अरमानों का भी गला घोंट देती हैं घर-परिवार के खातिर। उन्हें इतना समय भी नहीं मिल पाता है वे अपने लिए भी जिएं इतना कुछ करने के बाद भी उन्हे अपनी आर्थिक मदद ओर समाज में पहचान के लिए पुरुषों से मदद मांगनी पड़ती हैं। इसलिए आपने अपने कौशल के द्वारा डिप्लोमा करने के बाद अपने गांव में ही आसपास रहने वाली युवतियों को सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण देना शुरू किया था। इसकी शुरुआत उनकी दो सहेलियों से हुई। उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। उनके प्रशिक्षण से जब वे सिलाई-कढ़ाई करना सीख गईं तो गांव में ही लेडिज कपड़े आदि सिलने लगीं। इससे दोनों सहेलियों के परिवारों को लगातार मदद मिलती रही। उनसे प्रशिक्षण लेकर गांव की कुछ और लड़कियों ने भी इसे अपनी आय का साधन बनाया। अपने कौशल के द्वारा ओर चल पड़ी महिलाओ को हूनरमंद बनाने शुरुआत में काफी आलोचना का सामना करना पड़ा पर हिम्मत नहीं हारी...अपने सपने खुद बुने...घर-परिवार-समाज...की सारी जिम्मेदारियां...निभाते हुए... अपने कॅरिअर को...अपने शौक को...एक नया आयाम दिया...आलोचनाओं से घबराई नहीं...बल्कि अपने काम और व्यवहार से उन्हें...भी अपना मुरीद बना लिया।
कौशल केंद्र की स्थापना-ससुराल में मिला प्रोत्साहन
श्रीमती भावना पालीवाल जब पहली बार ससुराल आईं तो शुरुआत में कुछ माह घर के अंदर ही रहीं, मगर जब बाहर का नजारा देखा तो आसपास तमाम घर ऐसे नजर आए...जिनमें लड़कियां पढ़ी लिखी होने के बावजूद भी उनका गुजारा नही हो रहा था...उन्होंने अपने पति व परिवार वाली के समक्ष ऐसे परिवारों की मदद का सुझाव रखा और अपनी काबिलियत के बारे में बताया...परिवार वालों ने उनकी सोच की सराहना की और उन घरों में बातचीत कर लड़कियों को प्रशिक्षण लेने के लिए प्रेरित किया। देखते ही देखते उनके यहां कई युवतियां प्रशिक्षण लेने के लिए आने लगीं। काम सीखने के साथ वे कमाने भी लगीं तो फिर उनके यहां प्रशिक्षण लेने के लिए युवतियों की संख्या भी बढ़ने लगी। ओर उन्होने अपने परिवार की मदद से एक कौशल केंद्र की स्थापना की जो आज राजस्थान में धूम मचा रहा है। अभी तक इस तरह वे करीब 1000 युवतियों को प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बना चुकी हैं। जो राजस्थान क्षैत्र में गौरव की बात है, वही पालीवाल समाज को श्रीमती भावना पालीवाल से प्रेरणा लेकर समाज की महिलाओं को भी प्रेरित करते हुए आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
श्रीमती भावना पालीवाल को मिला सम्मान
* वर्ष 2018 मे आपको अलवर मे महिला शशक्तिकरण के लिए डिजिटल सहेली सम्मान से सम्मानित किया गया
* महिला दिवस पर देव जागरण संस्थान देवगढ़ द्वारा आपको महिलाओ के लिए किए गए कार्यो के लिए प्रोत्साहन दिया गया
* आप जिले की पहली सेल्फ एम्प्लोयी टेलरिंग में मास्टर ट्रेनर बनी जिसका सरकार द्वारा आयोजित राष्ट्रीय प्रशिक्षण के लिए आपका चुनाव हुआ ओर अभी हाल ही मे मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में यह प्रशिक्षण पूरा हुआ।
इनका कहना है :-
" सिलाई कभी नहीं सीखिए लेकिन आस-पास वालों से पता चला तब भावना जी से प्रशिक्षण लिया ओर मेरी जिंदगी में सबेरा बन कर आई भावना जी। अब खुद का ही नहीं बलिक अन्य लोगो का काम भी करती हुं - गायत्री रेगर
" में बीपीएल परिवार से हुं मेरे पिता जी मजदूरी करते इस सिलाई प्रशिक्षण से मुझे आय का सहारा मिला है ओर अब में अपने परिवार की हर तरह से मदद कर पा रही हुं - खुशबू सालवी
" महिलाओं को निरंतर आत्मनिर्भर बनाने के लिए श्रीमती भावना पालीवाल की मेहनत का नतीज है जो 1000 हजार युवतियां आज अपने आत्म सम्मान के साथ परिवार का कंधे से कंधा मिलाकर रोजगार के मध्याम से व्यापार कर रही है। श्रीमती भावना पालीवाल एवं उनके परिजनों को कोटि...कोटि बधाई सहित पालीवाल वाणी समाचार पत्र की ओर से शुभकामनाएं... संगीता सुनील पालीवाल-पालीवाल वाणी इंदौर
पालीवाल वाणी-किशन पालीवाल ✍
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