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महालक्ष्मी मंदिर : 51 शक्तिपीठों में से एक प्रमुख शक्तिपीठ, दो असुरों ने किया था मंदिर का निर्माण
Paliwalwaniकोल्हापुर : कोल्हापुर का महालक्ष्मी मंदिर यह दुनिया के 51 शक्तिपीठों में से एक प्रमुख शक्तिपीठ है। इस साल नवरात्र में यहां रोजाना 2 से 3 लाख श्रद्धालुओं के आने की संभावना है। दूसरे नवरात्र पर आज पढ़िए महालक्ष्मी मंदिर से रिपोर्ट।
पौराणिक कथा के अनुसार, दो असुरों ने किया था महालक्ष्मी मंदिर का निर्माण
कोल्हापुर शहर में मौजूद यह शक्तिपीठ जम्बू द्वीपांतर्गत ‘शिव’ के क्षेत्र में बसा हुआ है। देवी का यह मंदिर 1700 से 1800 साल पुराना है। मंदिर में स्थित द्वारपालों की दो भव्य मूर्तियों को लेकर भी एक कहानी है। कहा जाता है कि ये मूर्तियां दो असुरों की हैं। इन्ही असुरों ने केवल एक रात में इस भव्य मंदिर का निर्माण किया था। हालांकि, इस कहानी के अलावा भी एक कहानी है।
माना जाता है कि तैलन नाम के व्यक्ति ने लगभग वर्ष 1140 में देवी के सामने महाद्वार का निर्माण किया था। पुरातन लेखों के अनुसार- मंदिर के पूर्व द्वार का निर्माण तत्कालीन सरदार दाभाडे ने किया था। वहीं देवी महालक्ष्मी के सामने गरुड़मंडप का निर्माण दाजी पंडित ने सन 1838 से 1842 के बीच में किया था। आदिलशाह के समय में देवी की मूर्ति को छिपाकर शहर के कपिल तीर्थ क्षेत्र में रहने वाले एक पुजारी के घर में रखा गया था। कहा जाता है कि बाद में विजयादशमी के दिन देवी की मूर्ति को दोबारा मंदिर में विराजित किया गया था।
महालक्ष्मी मंदिर में और भी देवी-देवताओं के मंदिर
महालक्ष्मी मंदिर को त्रिकुट मंदिर भी कहा जाता है। महालक्ष्मी मंदिर के अंदर और बाहर कई अन्य देवी- देवताओं के मंदिर भी स्थित हैं। इस मंदिर के प्रमुख गर्भगृह में करवीर वासिनी, आदिमाया, आदिशक्ति देवी महालक्ष्मी अर्थात अंबाबाई की काले पत्थर में बनाई सुंदर चतुर्भुज मूर्ति विराजित की गई है।
महालक्ष्मी मंदिर की विशेषता :
ऐसी मान्यता है कि देवी सती के इस स्थान पर तीन नेत्र गिरे थे। यहां भगवती महालक्ष्मी का निवास माना जाता है। इस मंदिर की एक खासियत यह भी है कि वर्ष में एक बार मंदिर में मौजूद देवी की प्रतिमा पर सूर्य की किरणें सीधे पड़ती हैं। कहा जाता है कि महालक्ष्मी अपने पति तिरुपति यानी विष्णु जी से रूठकर कोल्हापुर आईं थीं। यही कारण है कि तिरुपति देवस्थान से आया शाल उन्हें दीपावली के दिन पहनाया जाता है।
यह भी कहा जाता है कि किसी भी व्यक्ति की तिरुपति यात्रा तब तक पूरी नहीं होती है जब तक व्यक्ति यहां आकर महालक्ष्मी की पूजा-अर्चना ना कर ले। यहां पर महालक्ष्मी को अंबाबाई नाम से भी जाना जाता है। दीपावली की रात मां की महाआरती की जाती है। मान्यता है कि यहां पर आने वाले हर भक्त की मुराद पूरी होती है।
महालक्ष्मी मंदिर की प्रचलित कथा :
केशी नाम का एक राक्षस था जिसके बेटे का नाम कोल्हासुर था। कोल्हासुर ने देवताओं को बहुत परेशान कर रखा था। इसके अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवगणों ने देवी से प्रार्थना की थी। तब महालक्ष्मी ने दुर्गा का रूप धारण किया और ब्रह्मशस्त्र से कोल्हासुर का सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन कोल्हासुर ने मरने से पहले मां से एक वरदान मांगा। उसने कहा कि इस इलाके को करवीर और कोल्हासुर के नाम से जाना जाए। यही कारण है कि मां को यहां पर करवीर महालक्ष्मी के नाम से जाना जाता है। फिर बाद में इसका नाम कोल्हासुर से कोल्हापुर किया गया। इस मंदिर में
जानें मंदिर की बनावट के बारे में :
इस मंदिर में दो मुख्य हॉल हैं जिसमें पहला दर्शन मंडप और दूसरा कूर्म मंडप है। दर्शन मंडप हॉल की बात करें तो यहां श्रद्धालु जन माता के दिव्य स्वरूप का दर्शन करते हैं। वहीं, कूर्ममंडप में भक्तों पर पवित्र शंख द्वारा जल छिड़का जाता है। यहां मौजूद माता की प्रतिमा के चार हाथ हैं और उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल का पुष्प है। मां चांदी के भव्य सिंहासन पर विराजमान हैं। इनका छत्र शेषनाग का फन है। मां को धन-धान्य और सुख-संपत्ति की अधिष्ठात्री माना जाता है।