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इंदिरा गाँधी ने नर्क बना दी थी इस एक्ट्रेस की ज़िन्दगी!, अटल, आडवाणी व दंडवते ने सुनी थी चीखें, जेल से छूटते ही हो गयी थी मौत

Paliwalwani
इंदिरा गाँधी ने नर्क बना दी थी इस एक्ट्रेस की ज़िन्दगी!, अटल, आडवाणी व दंडवते ने सुनी थी चीखें, जेल से छूटते ही हो गयी थी मौत
इंदिरा गाँधी ने नर्क बना दी थी इस एक्ट्रेस की ज़िन्दगी!, अटल, आडवाणी व दंडवते ने सुनी थी चीखें, जेल से छूटते ही हो गयी थी मौत

25 जून 1975 की सुबह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक ऐसा फैसला लिया था जिसकी दहशत की गूंज आज तक भारत की फ़िज़ा में मौजूद है, और एक नकारात्मक और लोकतंत्र एवं मानवता को नुकसान पहुंचाने वाले फैसले के रूप में हमेशा मौजूद रहेगी। इंदिरा गांधी का ये फैसला था देश में इमरजेंसी लगाने का।

अपने हाथ से सत्ता फिसलते देख इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल लागू करने की घोषणा की थी। इस फैसले की वजह थी 12 जून को इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा दिया गया निर्णय जिसपर 24 जून को सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी थी। कोर्ट के आदेश को मानते हुए कुर्सी छोड़ने के बजाय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाने का फैसला ले लिया। इंदिरा गांधी ने 25 जून की सुबह ऑल इंडिया रेडियो से देश के नाम संदेश देते हुए कहा- “भाइयों और बहनों, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है। लेकिन इससे आम लोगों को डरने की जरूरत नहीं है”।

इंदिरा गांधी के देश के नाम संदेश से साफ था कि देश की गरीब, निरीह आम जनता जिसमें अपने हक की आवाज उठाने की ताकत नहीं है, को छोड़कर हर शख्स को डरने की जरूरत है। इमरजेंसी के ऐलान के साथ ही शुरू हो गया अत्याचार के तांडव का खेल। विपक्षी दल के नेताओं, समाज सेवियों, पत्रकारों और लोकतंत्र के लिए आवाज उठाने वाले हर तबके के लोगों पर इमरजेंसी की आड़ में जुल्म ढाया गया। इमरजेंसी के दौरान अत्याचार की ऐसी कहानियां है जिन्हें सुनकर आपकी रूह कांप जाएगी। ऐसी ही एक कहानी कन्नड़ एक्ट्रेस स्नेहलता रेड्डी की है।

स्नेहलता रेड्डी का भयानक टॉर्चर

कन्नड़ एक्ट्रेस स्नेहलता रेड्डी का इमरजेंसी से कुछ भी लेना देना नहीं था, ना वो नेता थीं ना पत्रकार। उनका दोष सिर्फ इतना था कि वो इंदिरा गांधी के तानाशाही भरे कदमों का पुरजोर विरोध करने वाले समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नाडीस की दोस्त थीं। इंदिरा गांधी का विरोध करने वाले नेताओं में जॉर्ज फर्नाडीस एक बड़ा नाम था। जॉर्ज फर्नाडीस से दोस्ती ही स्नेहलता के लिए भारी पड़ गई। स्नेहलता रेड्डी को 2 मई 1976 को डायनामाइट केस में शामिल होने का आरोप लगा कर गिरफ्तार कर लिया गया। डायनामाइट केस के आरोपियों पर संसद भवन और उसके आसपास की बिल्डिंग्स को डायनामाइट से उड़ाने की साजिश रचने का आरोप पुलिस ने लगाया था। स्नेहलता को गिरफ्तार करने के बाद बैंगलोर के जेल में कैद कर लिया गया। बाद में स्नेहलता पर मीसा(मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सेक्योरिटी एक्ट) भी लगा दिया गया, इसी एक्ट के तहत उन्हें 8 महीने तक जेल में रखा गया। जेल में उनके ऊपर ऐसे अत्याचार किए गए जिससे सुनकर किसी का भी दिल दहल जाय।

स्नेहलता की चीख से गूंज जाती थी जेल

जेल में स्नेहलता को भयानक प्रताड़ना दी गई। उन्हें एक छोटी से कोठरी में रखा गया था, जिसमें टॉयलेट की जगह एक छोटा से छेद बना था। उन्हें कोई बिस्तर नहीं दिया गया था, वो जमीन पर ही सोती थीं। उनकी कोठरी में जेल के कर्मचारी आते थे और उनका टॉर्चर करते थे। उन्हें नग्न कर मार-पीटा जाता था। शरीर के साथ अभद्र व्यवहार किया जाता था। कभी-कभी वो इतनी जोर से चीखती थीं कि अगल बगल की बैरक में मौजूद कैदियों की रूह कांप जाती थी।

स्नेहलता ने कैद के दौरान एक छोटी सी डायरी लिखी थी, उन्होंने लिखा था-

जैसे ही एक महिला अंदर आती है, उसे बाकी सभी के सामने नग्न कर दिया जाता है। जब किसी व्यक्ति को सजा सुनाई जाती है, तो उसे पर्याप्त सजा दी जाती है। क्या मानव शरीर को भी अपमानित किया जाना चाहिए? इन विकृत तरीकों के लिए कौन जिम्मेदार है? इन्सान के जीवन का क्या मकसद है? क्या हमारा मकसद जीवन मूल्यों को और बेहतर बनाना नहीं है? इन्सान का उद्देश्य चाहे कुछ भी हो, उसे मानवता को आगे बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए।

अटल, आडवाणी व दंडवते ने सुनी चीख

इमरजेंसी के दौरान स्नेहलता की बगल की कोठरी में जनसंघ के नेता अटल बिहारी बाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी को भी कैद किया गया था। दोनों ने किसी महिला की तेज चीख होने का जिक्र किया है। जेल से छूटने के बाद उन्हें पता चला कि वो कन्नड़ एक्ट्रेस स्नेहलता रेड्डी थीं। उसी वक्त बैंगलोर जेल में बंद समाजवादी नेता मुध दंडवते ने भी अपनी किताब में स्नेहलता की चीखों का जिक्र किया है।

जेल से छूटते ही स्नेहलता की मौत

जेल के अत्याचारों ने अस्थमा की मरीज स्नेहलता की हालत को और बिगाड़ दिया था। जनवरी 1977 में उन्हें परोल पर रिहा किया गया।लेकिन जेल से छूटकर घर पहुंचने के 5 दिन बाद ही उनकी मौत हो गई और इस तरह एक प्रतिभाशाली अभिनेत्री इंदिरा गांधी के फैसले की बलि चढ़ गई।

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