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बिग ‘बी’ की ‘कमला पसंद’ से तौबा और गुटखा चिंतन : अजय बोकिल

Paliwalwani
बिग ‘बी’ की ‘कमला पसंद’ से तौबा और गुटखा चिंतन : अजय बोकिल
बिग ‘बी’ की ‘कमला पसंद’ से तौबा और गुटखा चिंतन : अजय बोकिल

‘सदी के महानायक’ और बीती तथा वर्तमान सदी में भी अपनी सक्रियता से धुआंधार कमाई करने वाले बिग ‘बी’ यानी स्टार अभिनेता अमिताभ बच्चन ने हाल में एक पान मसाले (गुटखा) के विज्ञापन से तौबा करने और उसकी फीस भी लौटाने की खबर मीडिया में कुछ इस तरह नमूदार हुई कि उन्होंने कोई महान देश सेवा कर दी हो। बताया जाता है कि अमिताभ बच्चन ने यह कदम नेशनल ‘एंटी-टोबैको ऑर्गनाइजेशन’ के आग्रह पर उठाया। संगठन ने उन्हें बताया कि गुटखे में तम्बाकू होती है, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है।

हालांकि गुटखे के प्रमोशन से  बिग बी द्वारा हाथ खींचने के पीछे प्रकट कारण यह बताया गया कि यह ‘सरोगेट एडवर्टाइजिंग है।‘ सरोगेट विज्ञापन बोले तो किसी प्रतिब‍ंधित उत्पाद का परोक्ष रूप से प्रचार। चूंकि भारत में शराब और तम्बाकू का सीधा विज्ञापन वर्जित है, इसलिए इसका दबे छुपे तरीके से प्रचार किया जाता है। समझने वाले समझ जाते हैं। मसलन शराब की जगह सोडे के विज्ञापन के जरिए शराब के ब्रांड को प्रमोट करना। पान मसाले और गुटखे में भी तम्बाकू कम या ज्यादा मात्रा में होती है। कुछ गुटखों के बारे में दावा है कि उनमें तम्बाकू नहीं होती है। लेकिन दूसरे हानिकारक पदार्थ मिलाए जाते हैं। चूंकि गुटखा कंपनियां फिल्मी सितारों को उनके उत्पाद के प्रचार की मुंह मांगी फीस देती हैं, इसलिए ये सितारे पान मसाले/ गुटखे आदि का विज्ञापन खुशी-खुशी करते हैं। करोड़ों लोगों के दिलों पर राज करने वाली इन फिल्मी हस्तियों को खतरनाक गुटखा/ पान मसाला खाते देख लाखों नए ग्राहक तैयार होते हैं और इस लत को वैधता मिलती है। उधर पान मसाला/ गुटखा कंपनियों की चांदी होती जाती है। वैसे गुटखा शब्द में भाव कोई भी चीज गटकने से है। हालांकि लोग इसे मुंह घंटो दबाए रखकर उसका चर्वण करते रहते हैं। एक लौ सी लगी रहती है। गुटखे का ही अभिजात्य नाम पान मसाला है। 

पिछले कुछ सालों से हर शहर, कस्बे और गांव में ऐसे पचासों लोग मिल जाएंगे, जो एक हाथ से गुटखे का पाउच लेकर उसे देर तक हिलाते रहते हैं। कई बार तो लगता है कि कहीं इन्हें पार्किंसन की बीमारी तो नहीं। जबकि वास्तव में वो गुटखा फांकने के पहले उसे देर तक ‘मिलाने’ का उपक्रम करते रहते हैं। माना जाता है कि इस तरह ‘शेक’ करने से पान मसाले का ‘नशा’ कई गुना बढ़ जाता है। पान मसाले की यह ‘बीमारी’ अब देश में इस हद तक बढ़ चुकी है कि हमारे यहां ग्रामीण क्षे‍त्र में हर तीसरा और शहरी इलाके में हर पांचवां व्यक्ति गुटखा फांकने का लतियल है। आलम यह है कि हर छोटी बड़ी दुकान पर पान मसाले के पाउच की रंगीन लड़ियां दूल्हे के सेहरे की माफिक लटकी दिखती हैं। कई दफा तो दुकानदार का चेहरा भी इन लड़ियों में छिपा रहता है। ग्राहक भी पान मसाले या गुटखे की जगह सिर्फ उसका ब्रांड बोलता है और पाउच लेते ही उसे ‘हिलाने’ का कर्मकांड शुरू कर देता है। कलारी के विपरीत पान मसाले और गुटखे की दुकान आजू बाजू देखने एहतियात बरतना भी जरूरी नहीं होता है। कुछ वैसी ही बेफिकरी जो दारू की जगह बीयर पीने को लेकर रहती है।  

इस देश में बरसों तक खैनी, गुड़ाकू, हुक्का आदि तम्बाकू के उत्पाद खाए खिलाए और पीए जाते थे। लेकिन पान मसाला और गुटखा जैसे नाम और उन्हें बनाने वाले उद्योग विशुद्ध आजाद भारत की उपलब्धि हैं। बताया जाता है ‍कि इस गुटखा उद्योग की नींव सर्वप्रथम पुणे के माणकचंद उद्योग समूह ने साठ साल पहले रखी थी। तब वो तम्बाकू का पोली पैक बेचा करते थे। अस्सी के दशक में उन्होंने गुटखा लांच किया। उसके बाद तो कई ब्रांड बाजार में आए। एक पान मसाले के विज्ञापन में तो घरातियों से आग्रह का था कि वो बारात का स्वागत फलां पान मसाले से करें। अब तो विदेशों में भी लोग इसके आदी हो गए हैं। देश में पान मसाले का यह कारोबार कितनी तेज गति से बढ़ रहा है, इसे इन आंकड़ों से समझा जा सकता है ‍कि भारत में 2020 में 45 हजार 585 करोड़ रू. के पान मसाले और गुटखे बिके। जानकारों का कहना है कि देश में पान मसाले का कारोबार हर साल 10.4 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। यह साल 2026 तक यह 70 हजार करोड़ रू. से भी ज्यादा होने की उम्मीद है। पान मसाले के कारोबार में कर चोरी भी खूब होती है। इसी कारण इसके निर्माता चंद सालो में ही खरब पति बन जाते हैं। दूसरी तरफ कैंसर व अन्य बीमारियों का इलाज करने वाले अस्पतालो की ग्राहकी भी तेजी से बढ़ रही है।  

बिग बी ने ‍जिस कमला पसंद पान मसाले का ‍विज्ञापन करने से हाथ खींचा, उसके निर्माता की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। इस पान मसाले का नामकरण ‘कमला’ भी निर्माता कंपनी के मालिक कमलाकांत चौरसिया के नाम पर है। कमलाकांत 35 साल पहले यूपी के कानपुर शहर के फीलखाना इलाके में घर में बना पान मसाला बेचते थे। उनका राजश्री गुटखा खूब चला। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। ऐसे कई गुटखा मालिक बीते ‍तीन दशकों में उगे हैं। ‍मप्र में ‍पिछले साल एक खबर आई थी कि कुछ गुटखा कंपनियों ने एक बड़ी राजनीतिक पार्टी को दो सौ करोड़ रू. का चंदा दिया था। बाद में मामला दब गया। 

अब सवाल यह कि पान मसाले या गुटखे में ऐसा क्या होता है, जो  लोग इसे दिन भर मुंह में दबाए रहते हैं। जहां तक कि इसे बनाने की बात है तो इसमें मुख्य रूप से रंगी और पिसी हुई सुपारी,चूना, कत्‍था या फिर उसकी जगह हानिकारक रसायन, मोम, तम्बाकू या बिना तम्बाकू वाले पान मसाले में कुछ सुंगधित पदार्थ और रसायन मिलाए जाते हैं। कुछ पान मसालों में ज्यादा नशे के लिए कांच या प्लास्टिक का चूरा भी मिलाया जाता है। इस ‍मिश्रण की चमकदार कागज में बढ़िया पैकिंग की जाती है। कुछ गुटखे नशे के लिए खाए जाते हैं तो कुछ केवल मुंह बंद रखने के लिए खाए जाते हैं। इसकी लत लगने पर इंसान पाउच के लिए हरदम बैचेन रहता है। इन्हें खाने के परिणामस्वरूप में मुंह का कैंसर और मुंह हमेशा के लिए बंद होने जैसे भयानक रोग बढ़ रहे हैं। गुटखे आपके हार्मोन्स को भी प्रभावित करते हैं। हर साल हजारों लोग इससे होने वाले कैंसर व अन्य रोगों से असमय मरते हैं, लेकिन पान मसाला प्रेमी इसकी चिंता शायद ही करते हैं। इसका कारण कि इन्हें ‘तम्बाकू ‍विहीन’ तथा आतिथ्य के जरूरी घटक के रूप में प्रचारित करना है। कई शौकीनो की टेबल, ट्रे, जेब या बैग में आपको पान मसाला हर वक्त मिल जाएगा। कई लोग इसे खाकर तरन्नुम में रहते हैं। पान मसाला और गुटखा खाने की लत से दीवारें और सड़के अलग खराब होती है। लेकिन गुटखाप्रेमी इसे धुएंवाली तम्बाकू का शालीन और अहानिकारक विकल्प मानकर सेवन करते और कराते हैं। 

पान मसालों के पीछे यह खतरों से भरी  सत्यकथा बिग बी को मालूम नहीं होगी, ऐसा मानना मूर्खता की हद तक भोलापन है। सोशल मीडिया पर ‍किसी यूजर ने बिग बी पूछा भी कि इतना कमाने के बाद भी आपको कमला पसंद को अपनी पसंद बताने की क्या जरूरत पड़ गई। जवाब में अमिताभ ने तर्क दिया कि इस विज्ञापन से मेरी कमाई के साथ इस उद्दयोग में लोगों लगे हजारो लोगों  की भी कमाई होती है, इसलिए। यकीनन यह बहुत यथार्थवादी विचार है। लेकिन इससे गुटखा हेल्दी फूड में शामिल नहीं हो जाता।  कमला पसंद गुटखे का कांट्रेक्ट रद्द कर अमिताभ ने ‍कितनी फीस लौटाई, यह गोपनीय है, फिर भी चर्चा है कि बिग बी एक विज्ञापन के 7 करोड़ रू. लेते हैं। वैसे भी फिल्मों में लीड रोल, रियलिटी शो, दूसरे विज्ञापनों आदि से औसतन हर माह 35 करोड़ रू. कमाने वाले अमिताभ बच्चन के लिए 7 करोड़ की तिलांजलि बहुत मायने नहीं रखती। उन्होंने ऐसा करके भी खुद को चर्चा में बनाए रखा, यह भी शायद उनकी मार्केटिंग स्ट्रेटजी का हिस्सा है। अभिताभ को ‘एंग्री यंग मैन’ के रूप में गढ़ने वाले मशहूर स्क्रिप्ट राइटर सलीम खान ने 79 वर्षीय बिग बी अब आराम करने की सलाह दी है। सलीम खान ने कहा कि अमिताभ जिंदगी के इस मोड़ पर कुछ वक्त खुद के लिए भी निकालें। आशय यह कि  कमाने के लिए खटते रहने की भी एक उम्र होती है। इसमें शक नहीं कि अमिताभ बहुत बड़े अभिनेता होने के साथ-साथ बाजारवादी सोच के भी आलातरीन रोल मॉडल हैं। ऐसा रोल मॉडल जिसे एक्टिंग की ऊंचाइयां हासिल करने के बाद भी चैन नहीं है। लिहाजा वह ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में सूत्रधार बनता है तो नवरतन तेल से लेकर कमला पसंद गुटखे तक की खूबियां गिनाने से परहेज नहीं करता। ऐसे में कमला पसंद का विज्ञापन ठुकराने का यह मतलब कतई नहीं है कि बिग बी ने कमला ( लक्ष्मी का एक नाम) को लौटाने और अपने स्व. पिता और हिंदी के बड़े साहित्यकार हरिवंशराय बच्चन की तरह केवल सरस्वती की आराधना का व्रत ले लिया है। दरअसल पैसे की दुनिया फिर चाहे वो कोई सा चोला ओढ़े हुए क्यों न हो, का कोई एथिक्स नहीं होता, सिवाय इसके कि आप खुद को किसी भी तरह से प्रासंगिक और ‘कमाऊ पूत’ बनाए रखने की जी तोड़ मेहनत करते रहें और फिसलते वक्त की पूंछ को पकड़े रहें। 

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