मुम्बई
बेटे ने किया फर्जीवाड़ा : बॉम्बे हाईकोर्ट ने बेटे से कहा- मां-बाप को 50 हज़ार रुपये दो, कोर्ट ने कहा कि बेटे का आचरण लालच, कटुता और छल से भरा
Paliwalwaniमुंबई : बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने प्रॉपर्टी के एक केस में एक शख्स को जमकर फटकार लगाई है. हाईकोर्ट ने अवमानना याचिका को खारिज करते हुए बेटे से कहा है कि वो अपने मां-बाप को 50 हज़ार रुपये दे. ये पैसे केस में लगने वाले खर्चे के तौर पर देने को कहा गया है. साथ ही कोर्ट ने कहा कि बेटे का आचरण लालच, कटुता और छल से भरा है. याचिकाकर्ता बेटे मनोज कुमार डालमिया ने कथित तौर पर अपने माता-पिता के साथ सहमति की शर्तों का पालन न करने का आरोप लगाया था.
अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक न्यायमूर्ति शाहरुख कथावाला और न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव ने अपने 21 मार्च के आदेश में कहा, ‘ये एक बेहद दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है जहां एक तरफ बेटा और दूसरी तरफ माता-पिता 22 साल से अधिक समय से मुकदमेबाजी कर रहे हैं.’ न्यायमूर्ति जाधव ने सुनवाई के दौरान कहा, ‘ये एक दिन में नहीं हुआ है. किसी दिन कोई इस पर फिल्म बनाएगा. बूढ़े माता-पिता के साथ कैसा व्यवहार करें. पिता की उम्र 78 साल, मां की 74 और बेटे की 56 साल है.
22 साल पुराना विवाद
विवाद की शुरुआत साल 1999 में हुई. एक कंपनी में पारिवारिक संपत्तियों और शेयरों से संबंधित पक्षों के बीच झगड़े शुरू हुए. 2007 में, सिटी सिविल कोर्ट द्वारा नियुक्त मध्यस्थ ने दंपति को अपने परिवार के साथ सांताक्रूज फ्लैट में उसका हिस्सा खाली करने पर बेटे को लगभग 38 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया. अगस्त 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने बेटे को फ्लैट की चाबियां कोर्ट में लाने का निर्देश दिया. चाबी नहीं देने पर माता-पिता ने फिर से उच्च न्यायालय का रुख किया. अप्रैल 2015 में, एचसी ने पुलिस को बेटे और उसके परिवार को फ्लैट का शांतिपूर्ण कब्जा सौंपने के लिए सुनिश्चित करने का निर्देश दिया.
2019 में बेटे ने अवमानना का मामला दायर किया
बेटे ने अर्जी दाखिल की. उन्होंने 23 अक्टूबर, 2015 को अपने माता-पिता के साथ सहमति की शर्तें पेश कीं, जिसके तहत वह अपने परिवार के साथ सांताक्रूज फ्लैट में रहेंगे, और एक भायंदर फ्लैट और साथ ही एक कालबादेवी कमरा उन्हें ट्रांसफऱ कर दिया जाएगा. उसी दिन, एचसी ने सहमति की शर्तों को रिकॉर्ड में लिया और उसकी अपील का निपटारा किया. 2019 में, बेटे ने अवमानना का मामला दायर किया और सहमति की शर्तों को लागू करने का आग्रह किया. माता-पिता ने सहमति की शर्तों को मानने से इनकार किया. उनके हस्ताक्षर फर्जी थे और उन्होंने वकील को उनके लिए पेश होने के लिए अधिकृत नहीं किया था.
बेटे ने किया फर्जीवाड़ा
माता-पिता ने कहा कि 2012 में, HC ने एक बैंक को फर्म के खाते में 1 करोड़ रुपये से अधिक की राशि HC में जमा करने का निर्देश दिया था. माता-पिता ने लगभग 52 लाख रुपये निकाले. करीब 38 लाख रुपये के हकदार होने पर बेटे ने बाकी 51 लाख रुपये से अधिक वापस ले लिया. उन्होंने कहा कि वकील एम एस हादी के साथ मिलकर ऐसा किया.
सहमति की शर्तें एकतरफा
न्यायाधीशों ने कहा कि सहमति की शर्तें एकतरफा हैं, प्रत्येक खंड बेटे के पक्ष में है और “प्रथम दृष्टया, सहमति की शर्तें वास्तविक नहीं लगती हैं और इसलिए सहमति की शर्तों को लागू करने का सवाल ही नहीं उठता. ये देखते हुए कि बेटे और हादी के खिलाफ माता-पिता द्वारा दायर एक आपराधिक मामला लंबित है, उन्होंने माता-पिता को सहमति की शर्तों को चुनौती देने की छूट दी.