मध्य प्रदेश

भगोरिया का यह रंग सबसे निराला : 18 से 24 मार्च तक होगा आयोजित

paliwalwani
भगोरिया का यह रंग सबसे निराला : 18 से 24 मार्च तक होगा आयोजित
भगोरिया का यह रंग सबसे निराला : 18 से 24 मार्च तक होगा आयोजित

विदेशी पर्यटक भी हो जाते हैं इनके अंदाज के दीवाने

झाबुआ : भगोरिया मेला दुनिया का पहला ऐसा मेला होगा। जहां मदमस्त अंदाज और संगीत की धुन पर थिरकते युवा अपने जीवनसाथी की तलाश में निकलते हैं और अपने रिश्ते भी तय करते हैं। मेले में आने वाले युवा एक दुसरे को वहीं पसंद कर गुलाल लगा कर अपने प्यार का इजहार करते हैं।

उसके बाद साथी की सहमति और परिजनों की रजामंदी से रिश्ते के पुख्ता करने के लिए एक-दुसरे को पान खिलाते हैं। रंग-बिरंगे परिधानों में सजी युवतियां और भंवरों की तरह इनके आस-पास आदिवासी युवक मंडराते हैं। भगौरिया मेले में ये दृश्य आम है।

इस मेले में एक कहानी और ज्यादा प्रचलित है कि अगर लडक़ा और लडक़ी एक दुसरे को गुलाबी रंग का गुलाल लगा दें तो इसे प्यार का इजहार या प्रपोज माना जाता है। शहरों में आमतौर पर गुलाब देकर अपनी भावना प्रकट की जाती है तो वहीं आदिवासी अंचलों में गुलाबी गुलाल लगाकर भगोरिया पर्व की रस्म पूरी की जाती है। भगोरिया मेेले को देखने के लिए कई राज्यों के लोगों के साथ साथ ही विदेशी पर्यटक भी आपको इस मेले में घुमते-फिरते दिख जाएंगे। हालांकि अब बदलते वक्त के साथ मेले में रिवाज बदल रहा है। मेले में आधुनिकता का असर भी दिखने लगा है।

ऐसे हुई शुरूआत

दरअसल मान्यता है कि भगोरिया की शुरूआत राजा भोज के समय से शुरू हुई थी। उस समय दो भील राजा कासूमरा और बालून ने अपनी राजधानी में भगोर मेले का आयोजन किया था। इसके बाद दुसरे भील राजा भी अपने क्षेत्रों में इस मेले का आयोजन करने लगे। फिर इसके बाद से ही आदिवासी बहुल्य इलाकों में भगोरिया उत्सव मनाया जा रहा है।

ऐसा पड़ा भगोरिया नाम

पौराणिक कथाओं के मुताबिक झाबुआ जिले के ग्राम भगोर में एक प्राचीन शिव मंदिर है। मान्यता है कि इसी स्थान पर भृगुऋषि ने तपस्या की थी। कहा जाता है कि हजारों साल से आदिवासी समाज के लोग भव यानी शिव और गौरी की पूजा करते आ रहे हैं इसी से भगोरिया की उत्पत्ति हुई है।

मांदल की थाप पर झूमते हैं आदिवासी

इस भगोरिया मेले में आदिवासी संस्कृति की झलक देखने को मिल जाती हैथ। अगर आप आदिवासी संस्कृति को देखना चाहते हैं तो इस मेले में जरूर जाइये। आदिवासी लोग अलग-अलग टोलियों में आते हैं, मेले में रंग बिरंगी पारंपरिक वेश-भूषा होती है। इस मेले में लड़कियां अपने हाथ पर टैटू भी गुदवाती है। वहीं इस अनोखे मेले में आदिवासी युवतियां- महिलाएं खुलेआम देशी और अंग्रेजी शराब का सेवन भी करती हैं। वहीं ताड़ी (ताड़ के पेड़ के रस से बनी देसी शराब) के बगैर भगोरिया हाटों की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इसका सेवन मेले का मजा और दोगुना कर देता है।

18 से 24 मार्च तक होगा आयोजित

आदिवासी क्षेत्रों में इस वर्ष 18 से 24 मार्च 2024 तक भगोरिया पर्व आयोजित किया जाएगा। जो अलीराजपुर-पेटलावद से प्रारंभ होगा तो अंतिम भगोरिया छकतला-झाबुआ का रहेगा। 7 दिनों में भगोरिया पर्व झाबुआ और अलीराजपुर जिले के लगभग 60 स्थानों पर लगेगा।

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