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डॉलर के आगे फिर रुपया धड़ाम! ऐतिहासिक गिरावट के साथ बंद हुआ रुपया
Paliwalwaniनई दिल्ली : डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट थमने का नाम नहीं ले रहा. गुरुवार के करेंसी मार्केट में डॉलर के मुकाबले रुपये एतिहासिक गिरावट के साथ बंद हुआ है. कच्चे तेल के दामों में आई मजबूती के बाद डॉलर की मांग बढ़ने के चलते रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 32 पैसे गिरकर 81.94 अब तक के अपने निचले स्तर पर क्लोज हुआ है.
सुबह के कारोबार में रुपया 81.52 के स्तर पर खुला था. लेकिन कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण रुपये पर दबाव देखा गया। कारोबार के दौरान रुपये ने 81.51 का उच्चस्तर और 81.94 का निचला स्तर भी देखा. करेंसी मार्केट के बंद होने पर रुपया 81.94 रुपये प्रति डॉलर के सर्वकालिक निचले स्तर पर बंद हुआ. इस तरह रुपये में पिछले कारोबारी दिन के मुकाबले 32 पैसे की भारी गिरावट दर्ज की गई. मंगलवार को रुपया 81.62 प्रति डॉलर के स्तर पर बंद हुआ था.
अमेरिकी डॉलर में मजबूती आने से रुपये में गिरावट देखी
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के विदेशी मुद्रा एवं सर्राफा विश्लेषक गौरांग सोमैया ने कहा कि मंगलवार को रुपये में थोड़ी मजबूती देखी गई थी लेकिन आज यह फिर से दबाव में आ गया. अमेरिकी डॉलर में मजबूती आने से रुपये में गिरावट देखी गई. दरअसल, अमेरिका में सेवा पीएमआई और निजी नौकरियों के आंकड़े उम्मीद से बेहतर रहने से डॉलर को मजबूती मिली. सोमैया ने कहा कि डॉलर के मुकाबले यूरो और पाउंड में भी ऊपरी स्तरों पर बिकवाली का दबाव देखा गया. उन्होंने कहा कि अब यूरोपीय केंद्रीय बैंक (ईसीबी) की बैठक के ब्योरे पर नजरें टिकी रहेंगी. सोमैया ने कहा कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये का हाजिर भाव 81.20 से लेकर 82.05 के दायरे में रहने की उम्मीद है.
क्यों टूट रहा है रुपया
गिरावट का एक और कारण डॉलर सूचकांक का लगातार बढ़ना भी बताया जा रहा है। इस सूचकांक के तहत पौंड, यूरो, रुपया, येन जैसी दुनिया की बड़ी मुद्राओं के आगे अमेरिकी डॉलर के प्रदर्शन को देखा जाता है। सूचकांक के ऊपर होने का मतलब होता है सभी मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूती। ऐसे में बाकी मुद्राएं डॉलर के मुकाबले गिर जाती हैं।इस साल डॉलर सूचकांक में अभी तक नौ प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जिसकी बदौलत सूचकांक इस समय 20 सालों में अपने सबसे ऊंचे स्तर पर है। यही वजह है कि डॉलर के आगे सिर्फ रुपया ही नहीं बल्कि यूरो की कीमत भी गिर गई है।
रुपये की गिरावट का तीसरा कारण यूक्रेन युद्ध माना जा रहा है। युद्ध की वजह से तेल, गेहूं, खाद जैसे उत्पादों, जिनके रूस और यूक्रेन बड़े निर्यातक हैं, की आपूर्ति कम हो गई है और दाम बढ़ गए हैं। चूंकि भारत विशेष रूप से कच्चे तेल का बड़ा आयातक है, देश का आयात पर खर्च बहुत बढ़ गया है। आयात के लिए भुगतान डॉलर में होता है जिससे देश के अंदर डॉलरों की कमी हो जाती है और डॉलर की कीमत ऊपर चली जाती है।
कहां तक टूट सकता है रुपया?
बैंक ऑफ अमेरिका के अनुसार, भारतीय रुपया साल के अंत तक 81 प्रति डॉलर तक टूट सकता है। इस साल अब तक भारतीय रुपया 9% से अधिक लुढ़क चुकी है। डॉलर में मजबूती और कच्चे तेल कीमतों में तेजी ने रुपया को कमजोर करने का काम किया है। भारत अपनी जरूरत का लगभग 80% कच्चा तेल आयात करता है। इससे रुपये पर दबाव बढ़ा है।
रुपये में कमजोरी का क्या होगा असर
भारत तेल से लेकर जरूरी इलेक्ट्रिक सामान और मशीनरी के साथ मोबाइल-लैपटॉप समेत अन्य गैजेट्स आयात करता है। रुपया कमजोर होने के कारण इन वस्तुओं का आयात पर अधिक रकम चुकाना पड़ रहा है। इसके चलते भारतीय बाजार में इन वस्तुओं की कीमत में बढ़ोतरी हो रही है। भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी कच्चा तेल विदेशों से खरीदता है। इसका भुगतान भी डॉलर में होता है और डॉलर के महंगा होने से रुपया ज्यादा खर्च होगा। इससे माल ढुलाई महंगी होगी, इसके असर से हर जरूरत की चीज पर महंगाई की और मार पड़ेगी।
रुपये पर सीधा असर
व्यापार घाटा बढ़ने का चालू खाता के घाटा (सीएडी) पर सीधा असर पड़ता है और यह भारतीय रुपये के जुझारुपन, निवेशकों की धारणाओं और व्यापक आर्थिक स्थिरता को प्रभावित करता है। चालू वित्त वर्ष में सीएडी के जीडीपी के तीन फीसदी या 105 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। आयात-निर्यात संतुलन बिगड़ने के पीछे रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध से तेल और जिसों के दाम वैश्विक स्तर पर बढ़ना, चीन में कोविड पाबंदियों की वजह से आपूर्ति श्रृंखला बाधित होना और आयात की मांग बढ़ने जैसे कारण हैं। इसकी एक अन्य वजह डीजल और विमान ईधन के निर्यात पर एक जुलाई से लगाया गया अप्रत्याशित लाभ कर भी है।