Saturday, 12 July 2025

इंदौर

मां आनंदमयी पीठ पर चल रहे मातृ जन्म महोत्सव में आज मनेगा पूर्ण ब्रह्मनारायण का प्राकट्य दिवस

Paliwalwani
मां आनंदमयी पीठ पर चल रहे मातृ जन्म महोत्सव में आज मनेगा पूर्ण ब्रह्मनारायण का प्राकट्य दिवस
मां आनंदमयी पीठ पर चल रहे मातृ जन्म महोत्सव में आज मनेगा पूर्ण ब्रह्मनारायण का प्राकट्य दिवस

ओंकारेश्वर में 200 आदिवासी बालक-बालिकाओँ की सेवा का संकल्प

इंदौर : जो क्रिया हमें भगवान से जोड़ दे, वह पुण्य और जो अलग कर दे वह पाप। जीव सभी वस्तुओं को अलग-अलग स्वरूप में देखता है, लेकिन यदि सबको एक ही अर्थात एकात्म दृष्टि से देखें तो यह भगवान की दृष्टि हो जाती है। बुद्धि के ज्ञान से वांछित समाधान नहीं मिलता। स्वयं का अनुभव होने पर ही समाधान होता है। अपने को पाना ही भगवान को पाना है और स्वयं को जानना ही भगवान को जानना है, यह अदभुत चिंतन है। आत्म साक्षात्कार तभी संभव है जब हम ‘अपने मैं’ को छोड़ दें। अपनी सत्ता को परमात्म सत्ता में विलय करना महत्पूर्ण है। पुरुषार्थ उसे नहीं कहते, जो हम अपने स्वार्थ के लिए या अपनी जीविका के लिए करते हैं, बल्कि सही पुरुषार्थ वह है जो हम भगवान के लिए करते हैं।

ये दिव्य और प्रेरक विचार हैं श्रीश्री माता आनंदमयी पीठ के पीठाधीश्वर स्वामी केदारनाथ महाराज के, जो उन्होंने आज पीठ पर चल रहे मातृ जन्म महोत्सव में मातृवाणी की व्याख्या करते हुए वेदांत सम्मेलन में व्यक्त किए। महोत्सव का शुभारंभ महामंत्र संकीर्तन एवं मंगला आरती, ध्यान, मां वैष्णोदेवी, हनुमानजी और भैरवजी के अभिषेक पूजन तथा महिला भक्त मंडली द्वारा अष्टोत्तर शतनाम पाठ एवं मां चालीसा के साथ हुआ। आश्रम परिवार की ओर से स्वामी परिपूर्णानंद, जे.पी. फड़िया, मुकेश कचोलिया, नरेन्द्र माखीजा, मनोज भाया, राजू कुकरेजा, अशोक बवेजा, अनिरुद्ध चौहान, पूजा मित्तल, रमेश भाया, दीपक द्रविड़ एवं अनिता मित्तल सहित अनेक भक्तों ने वेदांत सम्मेलन में आए संतों का स्वागत किया। वेदांत सम्मेलन में उज्जैन से आए स्वामी वीतरागानंद, अमरकंटक से आए स्वामी मुक्तानंद, स्वामी योगेश्वरानंद, महाराष्ट्र से आए स्वामी हंसानंद एवं  बाल व्यास माधव ने भी अपने विचार व्यक्त किए। संचालन स्वामी कृष्णानंद ने किया। सम्मेलन में स्वामी दिव्यानंद, स्वामी परमानंद एवं स्वामी मुक्तानंद भी उपस्थित थे।

महोत्सव का समापन आज, मां का जन्मोत्सव मनेगा - महोत्सव में 19 मई 2022 गुरुवार को माता आनंदमयी के 127वें जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में सुबह 3 से 5 बजे तक मां आनंदमयी का जन्मोत्सव भगवान श्री पूर्ण ब्रह्मनारायण के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाते हुए श्रीपादुका अभिषेक, षोडशोपचार पूजन, ललिता सहस्त्रार्चन, 5.30 से 7 बजे तक मां आनंदमयी के अष्टोत्तर शतनाम से सामूहिक अर्चन, 8 से 9 बजे तक हवन एवं कुमारी पूजा, 9.30 से 10 बजे तक सामूहिक महाआरती, 10 से 12 बजे तक वेदांत सम्मेलन में आए संतों, विद्वानों के सम्मान एवं आशीर्वचन के साथ समापन होगा। समापन अवसर पर प्रसादी का वितरण भी होगा।

ओंकारेश्वर आश्रम के अनूठे सेवा कार्यों की प्रशंसा – वेदांत सम्मेलन में आए संत-विद्वानों ने ओंकारेश्वर में चल रहे मां आनंदमयी पीठ के विद्यालय की खुले मन से प्रशंसा करते हुए कहा कि वहां करीब 200 आदिवासी बालक-बालिकाओं को पिछले कई वर्षों से भोजन, आवास, गणवेश एवं अन्य सभी तरह की सुविधाएं निःशुल्क उपलब्ध कराई जा रही हैं। इनमें से अधिकांश बालक-बालिकाएं पढ़-लिखकर समाज और अंचल की सेवा में जुटे हुए हैं। संतों ने मां आनंदमयी के जन्मोत्सव प्रसंग पर इस आश्रम और विद्यालय के लिए खुले हाथों से सहयोग करने का आव्हान भी किया। पीठ के न्यासी मुकेश कचोलिया ने बताया कि महोत्सव के समापन दिवस पर आश्रम के लिए आर्थिक सहयोग देने वालों का सम्मान भी किया जाएगा। इस मौके पर इन बच्चों की सेवा का संकल्प भी किया जाएगा।

वेदांत सम्मेलन में किसने क्या कहा – हरियाणा से आए आदर्श महामंडलेश्वर स्वामी विरागानंद ने कहा कि हम बाहर से भौतिक पदार्थों में बंधे हुए हैं और यही हमारे दुख का मूल कारण है। प्राकृतिक आपदाएं जैसे तूफान, बाढ़, ज्वालामुखी, भूकंप आदि तो प्रकृतिजन्य प्रकोप हैं, लेकिन दैहिक, दैविक और भौतिक पीड़ाओं को भी हमें समझना होगा। हम शरीर के साथ अहंकार से भी बंधे हुए हैं। संसार के चक्रव्यूह से बाहर आने के लिए हमें गुरु और शास्त्र के वचनों में श्रद्धा रखना होगी। श्रद्धा से चैतन्यता बढ़ेगी। परमार्थ के रास्ते पर चलना है तो छल-छिद्र और कपट का भाव छोड़ना पड़ेगा। यह जगत चलता-फिरता रहता है। ईश्वर बिम्ब है और जीव प्रतिबिम्ब। हमारा ज्ञान मंद है, सम्यक नहीं। काष्ट में अग्नि की तरह हमारे अंदर भी आत्म तत्व है, लेकिन उसे जागृत करने के लिए किसी ज्ञानी, सिद्ध और संत पुरुष के सानिध्य की जरुरत है। मां आनंदमयी के जन्मोत्सव पर वेदांत और संत सम्मेलन का आयोजन इसी उद्देश्य से किया जाता है। उज्जैन से आए स्वामी वितरागानंद ने कहा कि हमारे सभी दुखों का कारण अविद्या है।

रजो और तमो गुण का बाहुल्य होने से कई तरह की विषय-वासनाएं बनती रहती है। अज्ञान के कारण ही जीव अनेक तरह के ऐसे कार्य करते रहता है, जो नहीं करना चाहिए। अरमकंटक से आए स्वामी मुक्तानंद ने कहा कि शरीर की सभी इंद्रिया ब्रह्म के निर्देशन में काम करती है। माया ब्रह्म में प्रवेश नहीं कर सकती। फिल्म के पर्दे पर जो कुछ हम देखते हैं वह वास्तविक होते हुए भी सही नहीं होता। जगत में भी इसी तरह का मिथ्यावाद दिखाई देता है। सूर्य पृथ्वी पर नहीं है, लेकिन उसकी रोशनी अनुभूत होती है। ब्रह्म भी पृथ्वी पर नहीं है, लेकिन उसकी अनुभूति होती है। रोबोट में जीव नहीं होता, लेकिन वह जीव की तरह ही काम करता है, किन्तु उसमें आत्मा नहीं होती। मनुष्य और रोबोट में यही अंतर है।

स्वामी योगेश्वरानंद ने कहा कि परमात्मा और भगवान एक ही हैं, लेकिन उनके रूप अलग-अलग हैं। बुद्धि मनुष्य को भ्रमित करती है, जो नहीं करना चाहिए, वह जरूर करता है और जो करना चाहिए उसे नहीं करता है। बुद्धि पर माया का आवरण होता है। वेदांत इस आवरण को हटाने का काम करता है। हरियाणा से आए महामंडलेश्वर स्वामी विरागानंद ने कहा कि साधान धीरे-धीरें और एकाग्र चित्त से होना चाहिए। शक्ति उसी को मिलेगी जिसकी गति और मति सच्ची होगी। संसार के संस्कार बड़े प्रबल होते हैं। हमारी रुचि विषयों में नहीं, परमात्मा में होना चाहिए। बाहर के भौतिक पदार्थों में सुख के साधन खोजने में जुटकर हम भ्रमित हो रहे हैं।

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