इंदौर

स्टूडेंट्स को राह दिखाता "कल की सुबह"

मिर्ज़ा ज़ाहिद बेग़
स्टूडेंट्स को राह दिखाता "कल की सुबह"
स्टूडेंट्स को राह दिखाता "कल की सुबह"

मिर्ज़ा ज़ाहिद बेग़

इन्दौर. 'आईआईएसटी ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूट्स' के तत्वावधान में 'डीएव्हीव्ही आडिटोरियम इन्दौर' में आयोजित किए जा रहे तीन दिवसीय 'अप्रतिम नाट्य महोत्सव' के पहले दिन शुभारम्भ सत्र के ठीक बाद पहला नाटक "कल की सुबह" 'अस्टरंग' नाट्य समूह द्वारा खेला गया।

नन्दन जोशी द्वारा लिखित और अनिल चापेकर द्वारा निर्देशित एक घण्टे के इस नाटक ने उपस्थित स्टूडेंट्स और यूथ को उम्मीद की नई राह दिखाई। नाटक का मुख्य संदेश यह था कि-परीक्षा में असफलता से जीवन का अंत नहीं होता। ज़िन्दग़ी किसी भी क्षणिक असफलता से बड़ी नियामत है।

अनुराग इंजीनियरिंग का छात्र है। परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने पर वह जीवन से निराश हो कर आत्महत्या करना चाहता है। अपनी असफलता के लिए वह यूनिवर्सिटी और विभाग की सड़ी-गली पॉलिसी,सिस्टम और प्रोफेसर्स के भेदभावपूर्ण रवैय्ये को ज़िम्मेदार मानता है। उसे उन पेरेंट्स से भी शिक़ायत है जो अपने बच्चों पर अपनी महत्वाकांक्षाओं का बोझ लाद देते हैं। उसके मित्रों को किसी तरह उसके आत्महत्या के इरादों की भनक लग जाती है।

वे ठीक उस समय उसके रूम का दरवाज़ा खटखटाते हैं जब वह फाँसी का फंदा अपने गले में डाल चुका होता है। मज़बूरी में अनुराग को दरवाज़ा खोलना पड़ता है। वे उसे निराशा के गर्त से उभारने के लिए उसी दिन एक छात्र द्वारा की गई आत्महत्या की काल्पनिक कहानी अनुराग के सामने रचते हैं। अनुराग के दोस्तों और उसमें इस आत्महत्या पर बहस होती है।

अनुराग मृतक के प्रति सहानुभूति का दृष्टिकोण रख तर्क देता है और उसके दोस्त मृतक की खिल्ली उड़ाते हुए उसका उपहास कर समाज का यथार्थवादी नज़रिया पेश करते हैं। उनकी यह बहस शिक्षा के दकियानूसी ढर्रे,प्रोफ़ेसर्स के पक्षपात,त्रुटिपूर्ण शिक्षा प्रणाली,आरक्षण,परीक्षा के तनाव,बच्चे पर पैरेंट्स की अपेक्षाओं के बोझ इत्यादि पर करारे कटाक्ष कर परत दर परत सबकी बखिया उधेड़ देती है। 

उसके दोस्तों का कहना है कि आत्महत्या करने वाले के प्रति किसी की हमदर्दी नहीं होती। समाज सुसाइड करने वाले को नपुंसक कहता है, मज़ाक उड़ाता है और दो-चार दिन में सब उसे भुला देते हैं। बस उसके माता-पिता ही जीते जी मर कर जीवन भर उसकी मृत्यु का दर्द भोगते हैं।

ज़िन्दग़ी की क़ीमत,बच्चों की पेरेंट्स के प्रति ज़िम्मेदारी के प्रति दोस्तों के तर्कों से अंततः अनुराग को अहसास होता है कि आत्महत्या किसी समस्या का हल नहीं है। यही इस सुखांत नाटक का संदेश था जिसे निर्देशक ने बख़ूबी 1200 दर्शकों की क्षमता वाले शिक्षाविदों और स्टूडेंट्स से खचाखच भरे आडिटोरियम की आख़िरी पँक्ति तक पहुँचाया। 

मंच पर अनुराग- अजय शिव(यादव),तन्वी- सयाली देव,अभिनव -अभिषेक सोनी,रचित-यश रोकड़े,श्रेयस-वेदांत और रविराज के रोल में विक्की ने बख़ूबी अपनी भूमिकाओं का निर्वहन किया। उनकी आपसी बॉन्डिंग और ट्यूनिंग देख कर लगता था कि वे वास्तविक जीवन में या तो अभी भी स्टूडेंट थे या अभी-अभी ही उन्होंने कैम्पस छोड़े थे। यूँ यह परफेक्ट टीम वर्क था पर केंद्रीय पात्र अनुराग के रोल में अजय शिव(यादव) ने मंच पर अभिनय के नए मानदण्ड स्थापित किए।

सुसाईड करने के ठीक पूर्व आत्महत्या करने के लिए गले में फंदा डालते समय उन्होंने सुसाइड करने वाले  व्यक्ति के अन्तर्द्वन्द को अपने कंपकँपाते हाथों,विकृत होते चेहरे,लरज़ती आवाज़ से साकार कर दिया। उनका अभिनय इतना जीवंत था कि उस दृश्य में पूरे समय दर्शक स्तब्ध बैठे उनके अभिनय को देखते रहे उनका बस चलता तो वे मंच पर पहुँच कर स्वयं अनुराग के गले से फंदा निकाल कर फेंक देते। 

लेखक नन्दन जोशी ने होस्टलर स्टूडेंट्स को मद्देनज़र रखते हुए सटीक डायलॉग लिखे। डायरेक्टर अनिल चापेकर ने महज़ 1 टेबल,1 बेंच,2 कुर्सी,1 क़िताब,एक मोबाईल फ़ोन और एक रस्सी की मदद से प्रभावी मंच संरचना की। उन्होंने स्टेज का बख़ूबी उपयोग किया। उनकी रंगमंचीय ईमानदारी इस बात में भी प्रदर्शित हुई कि उन्होंने नाटक के प्रारम्भ में ही बता दिया कि होस्टलर छात्रों की बातचीत में कुछ असंसदीय शब्दों का प्रयोग हुआ है जो संवाद को यथार्थपरक बनाने के लिए आवश्यक था।

यही वज़ह थी कि गालियों के प्रयोग के समय दर्शक सहज बने रहे। विद्यार्थियों और हॉस्टलर्स के बीच उनकी ही सबसे बड़ी समस्या पर नाटक खेलना आसान नहीं होता पर हर डायलॉग और दर्शयान्तर पर बजने वाली तालियाँ निर्देशक,अदाकारों की मेहनत और प्ले की क़ामयाबी की ग़वाह थीं। 

प्रकाश संयोजन नवीन घोड़पकर और बैकग्राउंड म्यूजिक निर्देशक अनिल चापेकर का ही था। दोनों के सम्मिलित प्रयासों से प्ले और प्रभावी हो गया। कहा जा सकता है कि 'अस्टरंग' ने समारोह के पहले ही नाटक से अन्य 18 नाट्य ग्रुप्स के लिए स्टेंडर्ड सेट कर दिया है। उम्मीद है कि दर्शकों को शेष दोनों दिन स्तरीय नाटकों की दावत मिलेगी।

एक बात और इस प्ले को हर यूनिवर्सिटी,कॉलेज़ और विशेषकर सुसाईड फेक्ट्री बने कोटा के कोचिंग इंस्टिट्यूट में खेलना चाहिए जिससे नोज़वान छात्रों को सुसाईड करने से रोका जा सके। उक्त जानकारी श्री अजय शिव ने दी.

नाट्य समीक्षा-मिर्ज़ा ज़ाहिद बेग़

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