इंदौर

पालीवाल समाज भी बना सोशल मीडिया का प्लेटफार्म : श्री शुभम व्यास के समर्थन में श्री सचिन व्यास का पत्र वायरल

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पालीवाल समाज भी बना सोशल मीडिया का प्लेटफार्म : श्री शुभम व्यास के समर्थन में श्री सचिन व्यास का पत्र वायरल
पालीवाल समाज भी बना सोशल मीडिया का प्लेटफार्म : श्री शुभम व्यास के समर्थन में श्री सचिन व्यास का पत्र वायरल

इंदौर. श्री पालीवाल ब्राह्मण समाज 44 श्रेणी इंदौर में दो पक्षों के बीच की लड़ाई अहंकार के रूप में अंगड़ाई ले चुकी हैं. सोशल मीडिया के माध्यम से एक दुसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर पालीवाल समाज की गरिमा खंड़ित करने का प्रयास लगातार जारी हैं. एक बार फिर सोशल मीडिया के प्लेटफार्म के माध्यम से सांवरिया मंडल इंदौर के सक्रिय सदस्य श्री सचिन व्यास ने श्री शुभम व्यास की सदस्यता बहाल करने तक अंतिम चरण तक लड़ाई लड़ने का मन बना लिया हैं. 

समाज के मंत्री श्री विजय जोशी के सोशल मीडिया में खुल्लासा करने के बाद एक बार फिर पत्र के जवाब में सोशल मीडिया पर पटलवार हुआ है. लेकिन दोनों पक्ष न्याय तर्क की बात कर रहे है, लेकिन वास्तविकता की सच्चाई कोशों दूर है. सवाल और प्रश्न यहां यह भी उभरता है कि समाज की निरिक्षण समिति आखिरकार मौन धारण करके क्या दर्शाना चाहती है. अगर निरिक्षण समिति भी निर्णय लेने में सक्षम नहीं है,..तो फिर जिम्मेदारों पर नकेल कौन कसेगा... यहां जात-पात की बात और रिश्तेदारी को छोड़कर प्रभु श्री चारभुजानाथ मंदिर के दरबार में ठोस निर्णय लिजिए और दोनों पक्ष के साथियों पर उचित कार्यवाही करते हुए जो परिपाठी चल रही है,.. उसे तत्काल बंद करा दिजिए... वरना एक ‘‘चिंगारी’’ कई घरों को ‘‘रोशन’’’ भी करती है,.. और वहीं चिंगारी पूरे वार्तावरण को ‘‘तबाह’’ भी करती है, जब आग लगती है, तो ‘‘चिंगारी रिश्तेदारी,, नहीं निभाती है,.. इस बात का भी ख्याल रखा जाए तो समाजहित में उचित होगा...फिर ना कहेना कि आते-आते देर हो गई... 

सोशल मीडिया में एक बार फिर कई प्रश्न करता हुआ दिखाई दिया वायरल पत्र

सम्माननीय

आदरणीय समाजजन, मार्गदर्शक

हम सभी समाजजनो के द्वारा आदरणीय मंत्री जी को पद पर निर्वाचित कर सभी सदस्यगण की ओर से प्रतिनिधित्व करने का अवसर प्रदान किया गया. परंतु जब जिम्मेदारो द्वारा न्याय के सिद्धांतो का पालन नही किया जा रहा हो एवं संस्था के सदस्यो को समान भाव से नही देखा जा रहा हो, उनके साथ भेदभाव किया जा रहा हो तो सभी सदस्यगणो की ही जिम्मेदारी बनती है कि जिम्मेदारो को यह संज्ञान में लाया जावे कि आपके द्वारा जो कार्य किया जा रहा है. वह समाज हितो के विपरित है, जिससे समाज सदस्यों के हितो का दमन हो रहा है. 

आप श्री के द्वारा कथन कहा गया है कि आप एवं प्रबंध कार्यकारिणी के सदस्य व्हाट्सएप बाजी पर उत्तर देने के पक्ष में नहीं है, क्योंकि इससे समाज की गरिमा धूमिल होती है, यह जानकारी देने के लिये आप भी व्हाटसएप का ही उपयोग कर रहे है, आप स्वयं अपना पक्ष रखते हुए व्हाटसएप का उपयोग करें.  इसमें कोई समस्या नही है वही कोई अन्य इस माध्यम का प्रयोग करे, तो आपको समस्या हो जाती है. मेरे इस संदेश के माध्यम से आप यह बताने का कष्ट करें, कि आपके जिम्मेदार पदाधिकारीयो द्वारा उत्तर दिए ही कहा जाते है, आपको लिखित में कई व्यक्तियों ने आवेदन दिए. जिसमें आप श्री से लिखित में उत्तर चाहे गए, परंतु आप श्री ने उक्त आवेदनों के जवाब आज दिनांक तक नहीं दिए. इसलिए मजबूरन संस्था सदस्यो को सोशल मीडिया का सहारा लेना पड़ा. 

आप व्हाट्सएप का इस्तेमाल और नोटिस बोर्ड की सुविधा हमारे पास क्या...

एक और तो आप संस्था सदस्यो को संस्था की चर्चा व्हाट्सएप पर करने से रोकते है, वहीं दूसरी और आपश्री को जब संस्था के बारे में कोई जानकारी देनी होती है, तो आप व्हाट्सएप का इस्तेमाल करते हैं. जबकि आपके पास नोटिस बोर्ड की सुविधा है. आम सदस्य के पास तो कोई नोटिस बोर्ड की सुविधा भी नहीं है और पत्र आपको देने पर आप लेने से मना कर देते है, यदि संस्था सदस्य प्रयास करे. तो आप कह देते है कि अभद्रता की गई या दबाव बनाया जा रहा है. अब आप ही बताए आम सदस्य अपनी बात कहा रखे. यहां यह भी विचारणीय प्रश्न है कि जब समस्त समाजजनों ने मिलकर योग्य व्यक्तियों को पद पर निर्वाचित किया गया था, तो यह कैसे संभव है कि ऐसे योग्य व्यक्तियों द्वारा कोई ऐसा कार्य किया गया हो. जिससे समाज की गरिमा धूमिल हो... 

नियुक्त मैनेजर नियम विरूद्व कार्य क्यों करते है, आखिरकार इसका जिम्मेदार कौन...

अगर आपके द्वारा नियुक्त मैनेजर नियम विरूद्ध कार्य करें तो समाज की गरिमा धुमिल नही होती. परंतु यदि उस कार्य को यदि कोई संस्था सदस्य सोशल मिडिया के द्वारा संस्था सदस्यो को अवगत कराये तो आपके द्वारा कहा जाता है कि संस्था की गरिमा धुमिल हो रही है. 

आपश्री द्वारा अपनी व्यक्तिगत राय अनुसार उक्त समाचार झूठे एवं भ्रामक बताये गये है. क्या आपने उक्त समाचार प्रदर्शित करने वाले सज्जन से तथ्य जानने का प्रयास किया या अपने स्वयं एक पक्षीय होते हुए यह मान लिया कि उक्त समाचार झूठे एवं भ्रामक है? यहां में आप श्री से यह विनती करना चाहता हूं कि आप संस्था के एक जिम्मेदार पद पर आसीन है एवं समस्त समाजजन आपसे स्नेह एवं न्याय की आशा रखते है. उक्त जो भी कार्य हो रहे है. 

व्यक्तिगत ना समझते हुए सामाजिक दृष्टिकोण रखे...

सामाजिक पद पर आसीन मंत्री जी से संबंधित है, आप इसे व्यक्तिगत ना समझते हुए सामाजिक दृष्टिकोण रखे... किसी का भी उद्देश्य आपके व्यक्तिगत मान सम्मान पर आघात करना नहीं है... आप कह रहे है कि श्री शुभम जी द्वारा मंत्री कार्यालय में नियम विरुद्ध कार्य हेतु दबाव बनाया जा रहा था. में यह जानना चाहता हूं कि ऐसा कौनसा नियम विरुद्ध कार्य करने के लिए श्री शुभम आपसे दबाव बना रहे थे और वह नियम कहा लिखा है... क्या वह हमारे समाज के विधान में लिखा है या जिस अधिनियम के अंतर्गत हमारी संस्था पंजीकृत है... उस अधिनियम में लिखा है? 

प्रबंध कार्यकारिणी सदस्यों की उपस्थिति में आपश्री को एवं आपके साथियों को अपमानित किया...

आप लिखते है कि मंत्री कार्यालय में उपस्थित प्रबंध कार्यकारिणी सदस्यों की उपस्थिति में आपश्री को एवं आपके साथियों को अपमानित किया तो भी आपने कोई गहन आपत्ति नहीं ली. क्योंकि समाज का बालक है. यहां विचारणीय प्रश्न यह है कि जब आपने इस विषय पर कोई आपत्ति नहीं ली तो श्री शुभम की सदस्यता क्यों समाप्त की गई, क्योंकि आपके कहे अनुसार श्री शुभम ने आपके साथ अभद्र व्यहवार किया और आपने बड़ा मन रखते हुए उसे क्षमा कर दिया, तो जिसके साथ अभद्रता की गई. वही कोई कार्यवाही नहीं चाहता तो सदस्यता समाप्ति की कार्यवाही न्यायोचित्त नही थी. यहां आपके द्वारा संस्था सदस्यो को असत्य एवं भ्रामक जानकारी देकर गुमराह किया जा रहा है...

आपने आपत्ति नहीं ली या फिर माननीय अध्यक्ष जी का कथन गलत

क्योंकि माननीय अध्यक्ष जी के कथन अनुसार आपने संस्था के रजिस्टर में पुर्व में यह लिखा है कि सदस्यों द्वारा आपसे अभद्रता की अतः या तो आप असत्य कथन कह रहे है कि आपने आपत्ति नहीं ली या फिर माननीय अध्यक्ष जी का कथन गलत है...यहां एक विचारणीय प्रश्न यह भी है कि जब यह घटना हुई, तो क्या केवल कार्यकारिणी सदस्य ही उपलब्ध थे या अन्य कोई संस्था सदस्य मौजूद थे. यदि कोई अन्य सदस्य मौजूद थे, तो क्या एक पक्षीय कार्यवाही करने से पूर्व उन सदस्यों के बयान लिए गए या आपने उचित नहीं समझा और क्या वास्तव में अभद्रता की गई... 

क्यों 2 माह का इंतजार कर इस तरह की कार्यवाही की गई? 

क्योंकि जब किसी के सम्मान को ठेस पहुंचती हैं, तो व्यक्ति तुरंत अपनी और से योग्य कार्यवाही करता है...जिस प्रकार से श्री शुभम की सदस्यता समाप्ति के अगले दिन से ही व्यास बंधुओं द्वारा किया जा रहा है... जब किया गया, कार्य इतना कष्टदायक था तो अपने तुरंत ही अपनी कार्यकारिणी सभा क्यों नहीं आमंत्रित की एवं क्यों 2 माह का इंतजार कर इस तरह की कार्यवाही की गई? 

सभी कार्यकारिणी सदस्य एवं पदाधिकारी उक्त सभा में मौजुद थे...

यहां विचारणीय प्रश्न यह है कि दिनांक 09.03.2025 को जब सर्वसहमति से निर्णय लिया गया, तो क्या वे सभी कार्यकारिणी सदस्य एवं पदाधिकारी उक्त सभा में मौजुद थे... जो घटना के प्रत्यक्षदर्शी थे, अगर कोई ‘‘प्रत्यक्षदर्शी पंच परमेश्वर’’ उक्त सभा में मौजूद नही था तो क्या यह संभावना नही है कि वह आपके अन्याय के खिलाफ हो एवं श्री शुभम के विरूद्ध हो रही एक पक्षीय कार्यवाही के विरोध स्वरूप सभा का बायकाट किया हो...आपने अपने अगले कथन में यह आरोप लगाया है कि श्री शुभम व्यास को उनके साथियों के उत्तेजित करने के कारण समाज विरुद्ध शिकायत कलेक्टर कार्यालय एवं फर्म एंड सोसाइटी को दी गई..., 

एक बार उन्हें खोलकर पढ़े कि शिकायतकर्ता कौन है... 

आपश्री से निवेदन है कि आप जिन पत्रों की बात कर रहे है. एक बार उन्हें खोलकर पढ़े कि शिकायतकर्ता कौन है... जब आप उन संबंधित शिकायतो को पढ़ेंगे... तो आप यह पाएंगे कि उक्त विभागों को शिकायत ‘‘श्री शुभम व्यास’’, ने नहीं की है. वरन पीड़ित सदस्यों द्वारा की है. उन शिकायतो को, संबंधित समस्याओं को यदि आप योग्य निपटान उचित समय में कर देते, तो समाज को नीचा नहीं देखना पड़ता. श्री शुभम द्वारा जो भी शिकायत की गई है, वह आपके द्वारा बिना सुनवाई एक पक्षीय कार्यवाही कर उनकी सदस्यता समाप्त करने के कारण मजबूर होकर करना पड़ी. क्योंकि उनके पास अन्य कोई विकल्प ही नहीं था... 

संतोषजनक उत्तर नहीं देने के कारण, सर्वसम्मति से सदस्यता समाप्ति का निर्णय 

आपके अगले कथन अनुसार आपने श्री शुभम व्यास को पूर्व नोटिस जारी किया एवं संतोषजनक उत्तर नहीं देने के कारण सर्वसम्मति से सदस्यता समाप्ति का निर्णय लिया गया. मेरा आपसे कहना यह है कि आप केवल समाज सदस्यों को गुमराह नहीं कर रहे वरन अपने साथी कार्यकारिणी सदस्यों को भी गुमराह कर रहे हैं और आपने राजनीति, कूटनीति एवं श्री शुभम व्यास जी के प्रति आपके मन में जो हीनभाव है... इस कारण शुभम को आज दिनांक तक कोई नोटिस नहीं दिया... आपने सदस्यता समाप्ति के पश्चात जो सूचना श्री व्यास के घर भेजी... वह यह बताती है कि उक्त जो भी घटना घटी. वह 30.12.2024 की थी, परन्तु इसके पूर्व आपने जो उत्तर देने हेतु जो नोटिस जारी किया... वह किसी अन्य तिथि का था, जिसका उत्तर श्री शुभम व्यास जी ने तय समय पर दिया. 

जब शुभम को सुना ही नहीं गया, तो न्याय कैसे कर दिया... 

आपने जानबूझकर गलत तारीख का नोटिस जारी किया... ताकि शुभम अपना जवाब नहीं दे सके... रही बात सर्वसम्मति से निर्णय की तो में केवल इतना जानना चाहता हूं कि क्या सभी पदाधिकारियों एवं कार्यकारिणी सदस्यों ने श्री शुभम का पक्ष जाना... जब शुभम को सुना ही नहीं गया, तो न्याय कैसे कर दिया... आपने न्याय नहीं किया... वरन अपने सत्ता के मद में चूर होकर...,, अपनी शक्तियों का प्रदर्शन किया. क्योंकि में स्वयं श्री सुरेश जी दवे के साथ अपने अन्य कार्य हेतु वहां मौजूद था. 

में मंत्री रहूंगा या शुभम समाज में रहेगा...

आपने कहा कि या तो में मंत्री रहूंगा या शुभम समाज में रहेगा और इस तरह की एक पक्षीय कार्यवाही कर उसे सुनवाई का अवसर दिये, बिना आपने श्री शुभम के प्रति आपके मन में जो द्वेष था... उसका ‘‘प्रदर्शन’’ कर दिया...आपके द्वारा पुनः यह कथन कहा गया कि आपके ऊपर ‘‘नियम विरुद्ध’’ कार्य करने का दबाव बनाया जा रहा है...आपसे पुनः ये निवेदन है कि कौनसा नियम विरुद्ध कार्य करने हेतु दबाव बनाया जा रहा है... वह कौनसा नियम है एवं कहा लिखित है, बताने का कष्ट करे. आपका अगला कथन है कि पहले भी चुनाव हारने पश्चात भोपाल में पेशियां हुई, जिसमें समाज का ‘‘अनावश्यक खर्चा’’ हुआ.

समाज के विरुद्ध नहीं थी ‘‘चुनाव अधिकारी’’ एवं चुनाव लडने वाले व्यक्तियो के विरुद्ध थी...

मेरा आपसे प्रश्न है कि जो अपील माननीय रजिस्ट्रार के समक्ष प्रस्तुत की गई थी वह समाज के विरुद्ध नहीं थी ‘‘‘चुनाव अधिकारी’’’’ एवं चुनाव लडने वाले व्यक्तियो के विरुद्ध थी एवं जब शिकायत व्यक्तिगत थी... तो व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर उक्त व्यक्ति को र्ख्चा वहन करना था ना कि यह भार समाज के ऊपर डाला जाना था... यदि उक्त खर्च समाज द्वारा वहन किया गया है, तो आपके द्वारा श्री चारभुजाजी का पैसे का उपयोग अपने व्यक्तिगत कार्य में किया. 

समाज में जीत-हार की बात कहां आ रही हैं...

में आपका ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहता हूं कि समाज में जीत-हार की बात कहां आ रही हैं... क्योंकि दावे जो भी लगाए गए थे... वह व्यक्तिगत थे, ना कि सामाजिक, यह तो उन महानुभावो की उदारता थी कि उन्होने जिम्मेदार व्यक्तियों को ‘‘क्षमा’’ करते हुए अपने दावे को सक्षम न्यायालय में नही लगाया... आपश्री को उन महानुभावो से कितनी घृणा है, 

चारभुजाजी के दरबार में दुसरा न्यायाधीश नही हो सकता

यह इस संदेश से पता चलता हैं एवं आप चुंकि उनका कोई अहित नही कर पा रहे थे... तो आपने अपना सारा गुस्सा बौखलाकर उनसे संबंधित व्यक्ति श्री शुभम व्यास जो कि ‘‘जिम्मेदारो की विसंगतियां’’ आपको बताते आ रहे है...उन पर निकाल दिया, जबकि आप तो श्री चारभुजानाथ की सेवा कर रहे है, और रही बात... दंडात्मक कार्यवाही की तो क्या वह आपके अधिकार क्षेत्र में है. क्योंकि दंड देने का अधिकार माननीय न्यायाधीष का है क्या आप ‘‘स्वयं को न्यायाधीष’’ समझते है... चारभुजाजी के दरबार में दुसरा न्यायाधीश नही हो सकता... आपके इस संदेश के माध्यम से यह प्रदर्षित हो रहा है कि आप हमें धमकाने का प्रयास कर रहे हैं....

व्हाट्सएप वजीर प्रक्रिया की शुरुआत आपश्री के द्वारा 

व्हाट्सएप वजीर प्रक्रिया की शुरुआत आपश्री के द्वारा पूर्व में की गई है, हम आपका ही अनुसरण कर रहे हैं... आपने कहा कि ़ढाई वर्ष के कार्यकाल में कोई कमी नही दिखी...माननीय कमी तो तभी दिखेगी, जब कार्य होंगे... क्योंकी ढाई वर्ष के कार्यकाल में आपके द्वारा नये कार्य किए ही कहां गए, जो भी कार्य हुए,, वह सम्माननीय समाज के ‘‘‘उदार एवं दानी व्यक्तियों’’’ द्वारा किये गये... जिसका सत्यापन समाज भवन का हर कोना कर रहा है, जहां पर उन सम्माननीय दानदाताओ के नाम अंकित है... में उनकी उदारता को ‘साष्टांग प्रणाम,, करता हूॅं एवं हम सोभाग्याशाली है, जिन्हें ऐसे दानदाताओ का सानिध्य प्राप्त है... कार्यकारिणी द्वारा कार्य करना उनका नैतिक दायित्व है, जिन कर्तव्यों का पालन करने के लिए वह स्वयं ही चुनाव प्रक्रिया के द्वारा निर्वाचित हुए है... क्या आप समाज का भला करने के लिये चुनाव लडे या स्वयं की महिमा का बखान कराने के लिये...

कई बार त्रैवार्षिक चुनाव विलंब से हुए हैं...

आपके द्वारा सदस्यता देना कब आरंभ करना है, कब बंद करना है... यह आपके कार्यालयीन निर्णय है... आपके कार्यालयीन निर्णयों से जब तक किसी अन्य सदस्य के हितों का दमन ना हो, तब तक हमें आपके कार्यालयीन निर्णयों कं संबंध में कोई आपत्ति नही है... चुनाव की चर्चा तो आपके द्वारा की जा रही है, यदि आप व्हाट्सएप के माध्यम से नहीं बताते तो हमें पता ही नहीं चलता कि आप चुनाव कराना चाहते हैं... क्योंकि पहले कई बार त्रैवार्षिक चुनाव विलंब से हुए हैं... हमारा आपसे पुनः आग्रह है कि इस पूरे प्रकरण को चुनाव के नजरिए से नहीं बल्कि न्याय के नजरिए से देखे और श्री शुभम व्यास को सुनवाई का अवसर प्रदान करे, यह अनुरोध आपसे बार-बार किया जा रहा हैं...

विकास कार्य कराये है, हम उसके लिये सभी दानदाताओ के ‘‘आभारी’’

समाजबंधुओ नें जो समाज विकास कार्य कराये है, हम उसके लिये उन सभी दानदाताओ के ‘‘आभारी’’ है एवं उनकी उदारता का बखान हमारे द्वारा उचित मंचों पर किया जाता रहा हैं. रसीद क्रमांक 565 जिसमें श्री मुरलीधर जी से सदस्यता के पैसे ले लिए गए थे एवं आपके पूर्व कोष मंत्री ने सदस्यता नंबर नहीं दिया... जब यह मामला दिनांक 17.12.2024 को श्री शुभम व्यास ने आपके संज्ञान में दिया, तो आपका यह कर्तव्य था कि आप पूर्व कोष मंत्री से जो भूल हुई... उसे सुधारते एवं श्री मुरलीधर जी को सदस्यता प्रदान करते,, जैसा कि आपने रसीद क्रमांक 1605 दिनांक 23.08.2022 के मामले में किया... रसीद क्रमांक 1605 दिनांक 23.08.2022 को काटी गई थी... उसमें सदस्य बनाने हेतु श्री ज्ञानेंद्र से पैसे लिए गए थे एवं उन्हें सदस्यता नंबर प्रदान नहीं किया गया एवं उनसे पुनः पैसा जमा करने का दबाव आपके द्वारा बनाया गया,, जब यह बात समाजजन को पता चली... तो उन्होंने दिनांक 29.12.2024 को एक पत्र श्रीमान अध्यक्ष महोदय को लिखा... जिस कारणवंश आपको अपना ‘‘हठ त्याग’’ कर उन्हें सदस्य बनाना पड़ा.

आपको अपना ‘‘हठ त्याग’’ कर उन्हें सदस्य बनाना पड़ा...

परंतु चूंकि श्री मुरलीधर जी के साथ हुई घटना जिम्मेदार समाज जनों के बीच नहीं आ पाई और आपने अपना रवैया न्यायसंगत नहीं रखते हुए... उनसे पुनः सदस्यता शुल्क जमा करा लिया गया, जबकि आपको न्यायसंगत करना यह था कि आप श्री मुरलीधर जी से कहते चूंकि आपका सदस्यता शुल्क पूर्व में जमा हो चुका है यह बात हमारे संज्ञान में है... हम कार्यकारिणी के समक्ष इसका निर्णय लेंगे... परन्तु आपने उनसे ‘‘नया फॉर्म भरकर पुनः पैसे’’ लिए गए और आपने लिख दिया कि उन्होंने फार्म नहीं भरा... हम यह जानना चाहते हैं कि जब फार्म भरा ही नहीं गया था तो, तत्कालीन कोषमंत्री जी ने सदस्यता के पैसे क्यों लिए और ऐसे कितने सदस्यों से बिना फार्म भरवाए पैसे ले लिए गए यह जांच का विषय है...डबल सदस्यता राशि की रसीद सलंग्न हैं.

बिंदु क्रमांक 1 से 4 का उल्लेख था. परंतु आप आक्रोशित हो गए...

आपके द्वारा यह कहना सर्वदा अनुचित है कि शुभम जी द्वारा अपने जीजाजी के संबंध में निवेदन किया...आप अपने पत्रों को ठीक से ‘‘पढ़िए’’, जो भी निवेदन किये गये है... वह लक्ष्मीकांतजी द्वारा किए गये है, यदि शुभम के कही हस्ताक्षर होतो हमें अवगत कराने का कष्ट करे... हां यह बात सत्य है कि श्री शुभम अपने जीजा जी के साथ आए थे, परंतु उन्हें सुना ही नहीं गया और आपने पत्र लिया ही नहीं शुभम जी जो पत्र लेकर आए थे, उसमें श्री सचिन व्यास द्वारा पालीवाल वाणी को दिए बिंदु क्रमांक 1 से 4 का उल्लेख था. परंतु आप आक्रोशित हो गए एवं न तो आपने उनकी बात सुनी ना ही पत्र लिया एवं उन्हें कार्यालय से बेइज्जत करके भगा दिया गया...

बेबुनियाद आरोप लगाये गये है, जिसकी चर्चा आप उनसे करेंगे...

आपके द्वारा कथन कहा गया कि श्री पुरूषोत्तम जी द्वारा समाज पर बेबुनियाद आरोप लगाये गये है, जिसकी चर्चा आप उनसे करेंगे...आपका यह कथन आपकी तानाशाहीपुर्ण मानसिकता का प्रदर्शन करता हैं... समाज द्वारा आपको लोकतांत्रिक प्रक्रिया द्वारा प्रतिनिधित्व करने का अवसर दिया गया है, यदि आप लोकतांत्रिक होते तो पहले श्री जोशी जी से विषय पर चर्चा करते एवं उनका पक्ष जानने के पश्चात कोई निर्णय देते... परंतु आपने तो सीधा निर्णय प्रदान कर दिया, कि श्री जोशी जी के आरोप बेबुनियाद है... क्योंकी जिम्मेदारो द्वारा नियुक्त मैनेजर से आपकी रिश्तेदारी है एवं उसकी गलतीयां आप छुपाना चाहते हैं... श्रीमान मैनेजर द्वारा समाज की संपत्तियों का दुरूपयोग किया जा रहा है एवं जिम्मेदार भंडारमंत्री द्वारा उक्त मामला आपके संज्ञान में दिया जा चुका हैं...

शुभम को समझाया नही जा रहा था, वरन दबाव बनाया... 

श्रीमान अध्यक्ष महोदय द्वारा श्री शुभम को समझाया नही जा रहा था, वरन दबाव बनाया जा रहा था कि, बिना गलती के ‘‘माफीनामा’’ लिख दिजिये नही तो आपके विरूद्ध कार्यवाही की जावेगी... जिसके हमारे पास साक्ष्य मौजुद हैं, यदि हमारी सुनवाई होती... तो हम आपके समक्ष यह साक्ष्य प्रदान करते... परंतु चुंकि निर्णय लोकतंत्र से नही वरन तानाशाहीपूर्ण हैं, इस कारण हम यह साक्ष्य सक्षम अधिकारी को प्रषित करेंगें...

उपाध्यक्ष महोदय के साथ भी एक जिम्मेदार पदाधिकारी ने अभद्रता की थी...

समाजजनो को यह सुचित हो पुर्व में उपाध्यक्ष महोदय के साथ भी एक जिम्मेदार पदाधिकारी ने अभद्रता की थी... जिसका विरोध कई पदाधिकारियों द्वारा किया गया था... परंतु आपने अपने पदाधिकारी द्वारा किये गये, अनैतिक कार्य पर उनकी सदस्यता नही समाप्त की... वही दुसरी और श्री शुभम नें तो ऐसा कोई अनैतिक कार्य नही किया...आमजन को सजा एवं पदाधिकारी को क्षमा आपके द्वारा इस तरह का कृत्य आपकी दोहरी मानसिकता का प्रदर्शन करता हैं...उक्त घटना ना तो आपके द्वारा सामाजिक संज्ञान में लायी गयी और ना ही आपके द्वारा प्रषित संदेश में उक्त घटना का जिक्र आपके संदेश में नही किया गया... जबकि शुभम व्यास का कार्य तो ऐसा था ही नही कि उसकी सदस्यता समाप्त की जावे...

किसी व्यक्ति की आवाज दबाना, उसके मौलिक अधिकारो का हनन...

श्रीमान से निवेदन है कि किसी व्यक्ति की आवाज दबाना, उसके मौलिक अधिकारो का हनन है एवं यदि आप समय पर श्री शुभम पर आक्रोषित नही होते, उनके द्वारा जो पत्र प्रेषित किये जा रहे थे... वह ले लिये जाते... उनकी समस्याओ का निराकरण कर दिया जाता... तो आज आपके समक्ष उक्त परिस्तिथी निर्मित ही नही होती...

संदेश से किसी व्यक्ति की भावना को आघात पहुंचता हैं, तो में उनसे ‘‘क्षमाप्रार्थी हुॅ’’...

मेरे द्वारा प्रेषित इस संदेश का उद्देश्य किसी भी संस्था, संस्था सदस्यो, प्रबंधकार्यकारिणी, निरिक्षण समिती या अन्य किसी भी व्यक्ति की ‘‘भावनाओ को ठेस पहुंचाना नही’’ है वरन मेरा उद्देश्य केवल ओर केवल श्री शुभम व्यास के साथ जो अन्याय हुआ है उसके प्रति आमजन को अवगत कराना हैं... यदि इस संदेश से किसी व्यक्ति की भावना को आघात पहुंचता हैं, तो में उनसे ‘‘क्षमाप्रार्थी हुॅ’’... अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना हम सभी का परम कर्तव्य हैं... 

इस संदेश के माध्यम से में सचिन व्यास समस्त पालीवाल बंधुओ से निवेदन करता हुं कि वे इस मामले को संज्ञान में लेवे एवं पीडित को न्याय दिलाने का प्रयास करें. जब तक श्री शुभम व्यास को न्याय नही मिल जाता तब तक में उसके सर्मथन में हर उन संसाधनों (सोशल मिडिया) का प्रयोग करूगां जो न्याय के लिये आवश्यक हैं...

सचिन व्यास : सदस्य 

सांवरिया पैनल इंदौर

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सक्रियता : सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लोगों को विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने और अपनी राय व्यक्त करने के लिए एक मंच प्रदान करते हैं. 

मनोरंजन : सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लोगों को मनोरंजन के लिए विभिन्न प्रकार की सामग्री प्रदान करते हैं. 

 

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