इंदौर
ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के समापन पर आए गृहमंत्री शाह को लौटते वक्त अचानक याद आये ' कैलाश विजयवर्गीय' : एकांत बातचीत ने प्रदेश में बढ़ाई राजनीतिक जिज्ञासा
नितिनमोहन शर्मा
मायने तलाशती एक मुलाकात...
- शाह से विजयवर्गीय की एकांत बातचीत ने प्रदेश में बढ़ाई राजनीतिक जिज्ञासा
- ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के समापन पर आए शाह को लौटते वक्त अचानक याद आये ' कैलाश '
- शाह बिदा होते होते रुके, विजयवर्गीय को फोन कर बुलाया, सीहोर से लौटकर विमानतल पहुँचे कैलाश
- प्रदेश अध्यक्ष की चल रही कसरत के बीच शाह-विजयवर्गीय मुलाकात अहम
- सीएम से रिश्तों से लेकर सरकार से फिर संगठन में विजयवर्गीय के लौटने से जुड़ी मुलाकात
शाह और विजयवर्गीय के बीच की आत्मीयता किसी से छुपी नही हुई हैं। ये आत्मीयता आज कल की भी नही। ये शाह के गुजरे ' गुजरात दौर' के वक्त से जुड़ी हुई हैं। उस 'कठिन दौर' का रिश्ता अब 'अनुकूल हालातों' में भी उसी गर्मजोशी से निभाया जा रहा हैं, जैसा ' बुरे दौर ' में था। ये विजयवर्गीय के 10 बरस दिल्ली में गुजरने से स्पष्ट भी होता हैं।
जितने वक्त प्रदेश की सत्ता ने विजयवर्गीय को दूर रखा, उतने ही वक्त इसी रिश्ते ने दिल्ली में विजयवर्गीय को ' बनाये ' रखा। कद बनाये व बढ़ाए रखा। उसी आत्मीयता की एक झलक स्टेट हैंगर पर झलक आई और खबरों का बाज़ार गर्म हो गया। अमित शाह ने विजयवर्गीय को स्टेट हैंगर पर बुलाया और अकेले में बात की...इस एक लाइन ने प्रदेश में हुई ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के बराबर की चर्चा पा ली है।
सब तरफ उस ' 20 मिनट ' के चर्चे है, जो दोनों नेताओं ने बन्द कमरे में गुजारे। मुलाकात हुई, कुछ बात हुई, ये बात किसी से न कहना कि तर्ज पर दर्ज हो गई। लेक़िन इस ख़ामोश मुलाकात ने प्रदेश भाजपा की राजनीतिक गलियारों में शोर बहुत मचा रखा हैं। दो दिन होने आए मुलाकात के लेक़िन शोर खत्म होने की बजाय बढ़ता ही जा रहा हैं।
नितिनमोहन शर्मा...
'तिजारती' मेल-मुलाकात वाले समागम और माहौल में हुई एक राजनीतिक मुलाकात पूरे ' निवेश कुंभ' पर भारी पड़ गई। राज्य में कितना निवेश आया, कितने प्रस्ताव बने, किस सेक्टर में निवेशकों ने रुचि दिखाई, इससे ज़्यादा चर्चा इस राजनीतिक मुलाकात की हो रही हैं। जबकि ' समिट' का अगला दिन, निवेश की चर्चाओं का रहता है लेकिन मध्यप्रदेश में इसके उलट राजनीतिक चर्चाओं का बाज़ार गर्म हो गया।
निवेश कुंभ के समापन और इस मुलाकात को हुए दो दिन हो गए, पर इस पर चर्चा, कयास, समीकरण 25 से 27 फ़रवरी तक यथावत हैं। कुछ ठोस फ़िर भी सामने नही आ रहा हैं। लेकिन मायने तलाशती इस मुलाकात ने प्रदेश भाजपा के अंदर चल रही उठापटक का खुलासा तो कर ही दिया हैं। ये भी साफ़ कर दिया कि ', सरकार ' के रिश्ते अपने ' अधीनस्थों ' से वैसे नही, जैसे गर्मजोशी से पूर्व हुआ करते थे।
मायने तलाशती ये मुलाकात देश के गृहमंत्री अमित शाह और प्रदेश भाजपा के कद्दावर नेता, मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के बीच हुई थी। ये मुलाकात सामान्य न थी। लिहाजा चर्चा में हैं। मुलाकात के तौर तरीकों ने इसे चर्चा में ला दिया। ये मुलाकात ऐसे समय हुई जब शाह, ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के समापन सत्र को खत्म कर भोपाल से बिदा ले रहे थे। विमानतल पर पहुँचे वे तो उन्हें बिदा करने आये नेताओ में विजयवर्गीय नज़र नही आये। जबकि वे समिट मंच पर थे।
स्टेट हैंगर पर निवेश से जुड़े महकमे के वरिष्ठ मंत्री को न पा कर गृहमंत्री ने विजयवर्गीय का पूछा। उन्हें ये तो बताया गया कि वे इंदौर के लिए निकल गए लेकिन शाह को ये नही बताया कि उनका नाम बिदा करने वाले नेताओं की लिस्ट में नही था। जबकि शाह के आगमन पर स्वागत वाली लिस्ट में विजयवर्गीय का नाम मौजूद था। लिहाज़ा वे भी आगमन के वक्त मौजूद थे।
गृहमंत्री शाह ने फोन कर विजयवर्गीय को बुलावा भेजा। तब तक विजयवर्गीय बैरागढ़ को पार कर सीहोर के रास्ते आ पहुँचे थे। तुरंत वे लौटे ओर सीधे स्टेट हैंगर पहुँचे जहां शाह उनका इंतजार कर रहें थे। यहां दोनों नेताओं के बीच करीब 20 मिनिट बातचीत हुई और वह भी एकांत में। बस इसी एकांत की खामोश मुलाकात ने, मुलाकात खत्म होते ही ऐसा शोर मचाया...जो आज तक खत्म नही हुआ। जबकि नेताओ की तरफ़ से इसे हमेशा की तरह सामान्य मेल मुलाकात करार दिया लेक़िन प्रदेश की राजनीति के जानकारों के दिल मे इत्ते से जवाब से करार नही आ रहा। वे इस मुलाकात के एक नही अनेक मायने निकाल रहे हैं।
इस मुलाकात को कुछ मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव व नगरीय प्रशासन मन्त्री कैलाश विजयवर्गीय के बीच चल रहे शीत युद्ध से जोड़ रहें हैं कि दोनों के बीच अब रिश्ते ' उस्ताद-चेले' जैसे नही रहें। लेक़िन इस कयास को ' चित्रकूट समिट ' के कारण बल नही मिल रहा। क्योंकि इस तरह की ' सुलह जाजम' साल की शुरुआत में रामजी की नगरी में बिछ चुकी थीं। उसके बाद एक तरह से सब सामान्य है भी।
कुछ न इस मुलाकात को प्रदेश भाजपा में अध्यक्ष पद पर बदलाव से जोड़ा। क्योंकि प्रदेश भाजपा का नया अध्यक्ष सन्निकट हैं, लिहाज़ा इस बात को बल मिला भी। लेक़िन इसे भी ये कहते ख़ारिज कर दिया कि इसके लिए स्टेट हैंगर जैसा स्थान और घर लौटते नेता को वापस बुलाया नही जाता। ऐसे मसले फ़ोन पर भी निपट जाते हैं।
मुलाकात के मायने विजयवर्गीय के पुनः संगठन में लौट जाने से भी जोड़े जा रहें हैं। लेक़िन ' कैलाश ' की बॉडी लेंग्वेज इशारा नही कर रही है कि वे सत्ता से किनारा करने जा रहें हैं। न प्रदेश के अभी राजनीतिक हालात कोई चुनावी है जो वे संगठन को पकड़ ले, सत्ता त्याग दे।
' सरकार ' से उनके रिश्ते कम ज्यादा हो सकते है लेक़िन सरकार में उनका रुतबा तो कायम ही है और रहना भी हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष की चल रही रेस तक से जाकर इस मुलाकात को जोड़ा गया। लेक़िन इस बात को बल इसलिए नही मिल रहा कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का राष्ट्रीय अध्यक्ष चयन में कुछ हटकर व बड़ा करने का मन बना हुआ हैं और वह उत्तर नही, दक्षिण की तरफ़ देख रही हैं। ऐसे में फिर से ' हिंदी पट्टी' को अध्यक्षी का ' पट्टा ' मिले, संभावनाएं कम नज़र आ रही हैं। हा, नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की नई टीम का हिस्सा होना इसमे शामिल नही हैं।