इंदौर

जीवन में ईश्वर के प्रति डर एवं उसके दर को अनदेखा न करें- सुधांशुजी

Ayush Paliwal
जीवन में ईश्वर के प्रति डर एवं उसके दर को अनदेखा न करें- सुधांशुजी
जीवन में ईश्वर के प्रति डर एवं उसके दर को अनदेखा न करें- सुधांशुजी

विश्व जागृति मिशन द्वारा आयोजित भक्ति सत्संग के समापन में सहयोगी बंधुओं का सम्मान  

इंदौर. विश्व जागृति मिशन इंदौर मंडल द्वारा आयोजित सात दिवसीय भक्त् सित्संग के ऑनलाईन आयोजन का समापन आज रिंगरोड़ स्थित दस्तूर गार्डन पर सत्संग के सहयोगी बंधुओं के सम्मान के साथ हुआ। इस अवसर पर प्रख्यात आचार्य सुधांशु महाराज ने अपने आशीर्वचन में इंदौर मंडल के सेवा कार्यों एवं भक्ति भावना की खुले मन से प्रशंसा करते हुए कहा कि जीवन में डर एवं दर को कभी नहीं भूलना चाहिए। डर परमात्मा से हमेशा बना रहना चाहिए और परमात्मा के दर को कभी अनदेखा नहीं करना चाहिए।

गत 20 सितंबर से चल रहे इस भक्ति सत्संग के दिव्य एवं ऑनलाईन आयोजन का समापन आज सुबह दस्तूर गार्डन पर ऑफलाईन कार्यक्रम में हुआ। पूर्व मंत्री जीतू -रेणुका पटवारी, समाजसेवी किशोर सोनी एवं गोपाल नेमा के आतिथ्य में दीप प्रज्वलन के साथ कार्यक्रम का श्रीगणेश हुआ। इंदौर मंडल से जुड़े लगभग 300 साधकों ने पहले मेगा स्क्रीन पर आचार्य सुधांशुजी के प्रवचनों का पुण्यलाभ उठाया, बाद में समापन समारोह में इस आयोजन के सहयोगी बंधुओं का सम्मान किया गया। मंडल के महामंत्री कृष्णमुरारी शर्मा ने बताया कि इस अवसर पर इंदौर मंडल के प्रधान राजेंद्र अग्रवाल, राजेश विजयवर्गीय, दिलीप बड़ोले, विजय पांडे, ओमप्रकाश गंगराड़े, ईश्वर मोटवानी, गोविंद सोलंकी आदि ने अतिथियों का स्वागत किया। संचालन राजेश विजयवर्गीय एवं श्रीमती स्वीटी शर्मा ने किया। कार्यक्रम में समाजसेवी किशोर सोनी एवं बसंत कुमार खटोड़ सहित उन सभी बंधुओं का सम्मान किया गया, जिन्होने इस सत्संग में हर संभव सहयोग प्रदान किया। अंत में आभार माना महामंत्री कृष्णमुरारी शर्मा ने।    

प्रवचन- आचार्य सुधांशु महाराज ने अपने आशीर्वचन में कहा कि मन को स्थिर रखना बहुत कठिन है। हम अपने अंदर बैठे दुख का जितना अधिक चिंतन करेंगे, दुख उतना ही बढ़ता जाएगा। इसी तरह सुख का चिंतन करेंगे तो सुख भी बढ़ेगा। यह हम पर निर्भर है कि हम खुशी बढ़ाना चाहते या दुख।  जहां जहां मन जाता हैं, वहां उसे परमात्मा की लीला के दर्शन कराएं मन को बताएं  कि हमारे पास जो कुछ है वह परमात्मा की अनुकम्पा की फल है। नकारात्मक, दीनता एवं दुख को याद करने से उनका दायरा बढ़ जाता है। चिंतन हमें भक्त बन कर जीना है या विभक्त बन कर, गुनगुनाते हुए जीना है या रोते हुए, योगी बन कर जीना है या रोगी बन कर, यह हमें ही तय करना है। भगवान से डरना हमेशा याद रहना चाहिए, इसी तरह भगवान के दर को भी कभी नहीं भूलना चाहिए। मन को नियंत्रित करना हमें आना चाहिए।

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