इंदौर

सहकारिता विभाग में भष्ट्राचार : दीपकुंज नामक कॉलोनी के सदस्य सहकारिता और भू-माफियाओं के इस माया-जाल में फंसे

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सहकारिता विभाग में भष्ट्राचार : दीपकुंज नामक कॉलोनी के सदस्य सहकारिता और भू-माफियाओं के इस माया-जाल में फंसे
सहकारिता विभाग में भष्ट्राचार : दीपकुंज नामक कॉलोनी के सदस्य सहकारिता और भू-माफियाओं के इस माया-जाल में फंसे

इंदौर । सहकारिता विभाग के संरक्षण में किस प्रकार गृह निर्माण सहकारी संस्थाओं द्वारा भू-माफियाओं की तरह, न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग कर गरीब लोगों के भूखंडों पर कब्जा किया जा रहा है। जिन संस्थाओं का गठन गरीब लोगों की रहवासी समस्याओं के समाधान के लिये किया गया था। भू-माफियाओं ने उन्हें धन कमाने का जरिया बना लिया। जय लक्ष्मी को-ऑप. हाउसिंग सोसायटी लि. इंदौर सहकारिता विभाग में पंजीकृत गृह निर्माण सहकारी संस्था होकर उसका मुख्य उद्देश्य उसके सदस्यों को भूखण्ड/भवन उपलब्ध करना था। उसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु संस्था द्वारा ग्राम पिपल्याहाना, तहसील व जिला इंदौर में दीपकुंज नामक कॉलोनी का पंजीयन कराया गया और सदस्य बना भूखंडो का आबंटन 28-30 वर्षों पूर्व किया गया एवं भूखंड धारको से कॉलोनी विकास के नाम पर विभिन्न शुल्कों की प्राप्ति की गई। वर्ष 1999 में नगर निगम इंदौर द्वारा संस्था को विकास की अनुमति 1 वर्ष में विकास कार्य पूर्ण करने की शर्त पर दी गई, किंतु विकास कार्य पूर्ण नहीं किया गया ताकि भूखंड धारक भवन ना बना सके। पीड़ित भूखंड धारकों ने वर्षों तक प्रशासनिक विभागों में शिकायतें की गई किंतु कोई सुनवाई नहीं हुई। जिस वजह से भूखंड धारकों ने अपनी रहवासी समस्याओं का समाधान ना होने और आर्थिक समस्याओं के चलते कई मूल सदस्यों ने भूखंडों का विक्रय कर दिया। धन कमाने के लालच के चलते संस्था द्वारा नए भूखंड धारकों का नामांतरण नहीं किया गया और जानते-बुझते सहकारिता के नियमों का गलत तरीके से उपयोग किया गया। वर्तमान भूखंड धारक का नाम संस्था ने सहकारिता के भू-अभिलेखों में नहीं दर्ज कराया। पूर्व में मूल सदस्यों से संस्था द्वारा विकास के नाम पर जो राशि वसूली गई उसका तो कोई हिसाब नहीं है, किंतु 13 वर्ष पश्चात वर्ष 2012 में संस्था द्वारा नगर निगम से पुनः विकास की अनुमति प्राप्त की गई। विकास की जो राशि तय की गई थी उससे कहीं अधिक राशि की मांग संस्था द्वारा भूखंड धारकों से की गई। 10 से 15 साल में भी भवन ना बना पा रहे मूल सदस्यों ने तो भूखंड को विक्रय कर दिया और यह जानते हुए संस्था ने इस बात का फायदा उठाया और मूल सदस्य पर पुनः विकास शुल्क की राशि जमा न किए जाने के विरुद्ध प्रकरण दर्ज कराते हुए सहकारिता न्यायालय से लगभग 94000/की बकाया राशि के एवज में 55 से 60 लाख बाजार मूल्य की संपत्ति को कुर्की कर राशि दिलवाने हेतु अपने हित में आदेश पारित करवा लिया गया। यह न्याय उचित नहीं है कि संस्था द्वारा पूर्व में ली गई राशि के आधार पर विकास कार्य नहीं किया गया था तो पुनः विकास शुल्क लेने का संस्था को कोई अधिकार नहीं है किंतु 25-30 वर्ष पश्चात शहर के विकसित हो जाने की वजह से जमीनों के भाव काफी बढ़ गए जिस वजह से संस्था की नियत खराब होने लगी और इसी तरह कई भूखंडों पर उन्होंने कब्जा कर लिया और आज तक विकास कार्य पूर्ण नहीं किया गया हैं। संस्था द्वारा कब्जा किए भूखंडों को बाजार भाव से करोड़ों रुपये में बेचा जा रहा है किंतु भूखंडों का पंजीयन वर्षों पुराने मूल्यों पर कर संस्था की आय को कम दिखाया जा रहा है। यह कहां का इंसाफ है कि एक बार विकास के नाम पर शुल्क दिए जाने के बाद पुनः शुल्क मांगा जाए और शुल्क ना दे पाने की स्थिति में महज कुछ हजार रुपयों के एवज में लाखों-करोड़ों की संपत्ति पर कब्जा कर लिया जाए...? सहकारिता और भू-माफियाओं के इस माया-जाल से आम आदमी को कब मुक्ति मिलेगी...?

● पालीवाल वाणी ब्यूरो- paliwalwani.com...✍️

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