इंदौर
कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर : कांग्रेस के लिए भीड़ जुटाना बड़ी चुनोती, बड़े नेताओं की सांसें भी ऊपर नीचे
नितिनमोहन शर्माबाबा के लिए भीड़ का टोटा...
कर्नाटक, केरल, तेलंगाना के बाद महाराष्ट्र में जुटी अप्रत्याशित भीड़ ने मध्यप्रदेश को दी चुनोती
गुटबाजी में बुरी तरह उलझी प्रदेश कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर
एनएसयूआई, यूथ कांग्रेस, महिला कांग्रेस के अते-पते नही, अध्यक्ष की भी नही सुन रहा कोई
नितिनमोहन शर्मा...
दक्षिण के राज्यों से उठा शोर आला रे आला...राहुल बाबा आला रे....मालवा निमाड़ के आंगन से नदारद है। वह भी तब, जब राहुल बाबा की यात्रा मालवा निमाड़ के मुहाने तक आ चुकी है। और उसकी पद्चाप इंदौर तक सुनाई दे रही है। कांग्रेस की सबसे बड़ी चिन्ता इस यात्रा में भीड़ जुटाने को लेकर हो गई है। दक्षिण के राज्यों के बाद पड़ोसी महाराष्ट्र ने प्रदेश कांग्रेस की मुश्किलों में बेतहाशा इजाफा कर दिया है।
कदमताल के जरिये देश को जानने और जोड़ने के लिए निकल रही भारत जोड़ो यात्रा के अंचल में आने में अब चंद दिन शेष है। लेकिन कांग्रेस में सब वैसा ही है, जैसा होना उसकी नियति बन गया है। न नेताओ में मतभेद कम हो रहे है और न नेताओ के समर्थकों की अंतर्कलह कम हो रही है। पार्टी के इतने बड़े मूवमेंट्स के बाद भी सबका मामला...अपनी अपनी ढपली-अपना अपना राग जैसा है। फिर चाहे दिग्विजयसिंह पसीना बहा ले या फिर कमलनाथ गुर्रा ले..!! सुधरने को कोई तैयार नही।
प्रदेश में बड़े नेताओं में तो अंचल में द्वितीय पंक्ति के नेताओ में मतभेद जस का तस बने हुए है और दांव पर है राहुल गांधी की वो यात्रा जिसके जरिये देश की सबसे पुरानी पार्टी स्वयम का पुनर्जन्म मान रही है। मध्यप्रदेश में ये यात्रा मालवा निमाड़ से ही प्रवेश कर रही है और प्रवेश द्वार पर ही भीड़ का संकट सामने आ गया है। पार्टी के बड़े नेताओं की भी इस मूददे पर साँसे ऊपर नीचे हो रही है कैसे भीड़ जुटाए?
कर्नाटक, केरल और तेलंगाना की बेतहाशा भीड़ के बाद जिस तरह महाराष्ट्र में राहुल गांधी की यात्रा में भीड़ उमड़ी, उसने मध्यप्रदेश के नेताओ की पेशानी पर नवम्बर महीने में भी पसीना ला दिया है। दक्षिण के राज्यों की तो छोड़ो, महाराष्ट्र के मुक़ाबके भीड़ जुटाने में कांग्रेस को पसीने छूट गए है।
नतीजतन ये तय हो रहा है कि राहुल गांधी की यात्रा जिस विधानसभा क्षेत्र से गुजरेगी, वहां के नेताओ की जवाबदारी भीड़ जुटाने की रहेगी। हालांकि इस तिकड़म का विरोध भी है कि ऐसे में एक दूजे को नीचा दिखाने की होड़ का शिकार यात्रा हों जायेगी ओर नेता अपनी भीड़, अपने क्षेत्र तक ही सीमित कर लेंगे। इन सब किंतु परन्तु के बीच भीड़ जुटाना अब भी बड़ा प्रश्न बना हुआ है।
उधर मैदान में कांग्रेस दौड़ती तो दिख रही है लेकिन मुकाम तक पहुंच नही पा रहीं है। न यात्रा को लेकर वैसा वातावरण बन पा रहा है, जैसा अपेक्षित किया गया था। बीते विधनासभा चुनाव में कांग्रेस को जिस मालवा निमाड़ से सत्ता की संजीवनी मिली थी, उसी हिस्से में पार्टी यात्रा आने के एन मौके तक हांफ रही है।
शहर ओर जिला अध्यक्ष की कोई सुनना पसंद नही कर रहा है। बड़े नेता आकर हवा भर तो रहे है लेकिन उनके जाते ही भरी हुई हवा फुस्स हो जाती है। स्टूडेंट्स के बीच काम करने वाली विंग एनएसयूआई के तो कई अते पते ही नजर नही आ रहे। न यूथ विंग यूथ कॉंग्रेस के। जुबानी जमा खर्च के अलावा इन दोनों सहयोगी संगठन की भूमिका इतने बड़े पार्टी आंदोलन में कही नजर नही आ रही। न इनसे कोई पूछने वाला की आप इस यात्रा को लेकर जमीनी स्तर पर क्या कर रहे हैं? कितने यूथ इससे जुड़ रहे है?
मुहाने पर यात्रा खड़ी है और महिला कांग्रेस की " नेताईनो " में रूठने-रुसने-मनाने का खेल बदस्तूर जारी है। आधी आबादी से जुड़े पार्टी के इस सहयोगी संगठन में आधा दर्जन महिला नेता भी यात्रा के नाम से दुबली होती नजर नही आई। अब तक कोई बड़ी बैठक का नजारा भी देखने को नही मिला। अध्यक्ष से नाराजगी का आलम ये है कि राहुल गांधी भी दांव पर लग जाये तो चलेगा..!! सेवादल की वर्दी की कलप...हमेशा की तरह कड़क ही है कि हम तो उसी दिन प्रकट होंगे, जिस दिन हम..पार्टी प्रोटोकॉल के हिसाब से जरूरी होंगे। अध्यक्ष विनय बाकलीवाल का होना न होना एक समान है। अन्यथा दिग्विजयसिंह जैसे नेता को इंदौर में एक के बाद एक बैठकों के दौर नही चलाना पड़ते।
निमाड़ के भी ये ही हाल है।अरुण यादव का वन मेन शो पर जैसे ही परदा पड़ा...सब गड्डमगड्ड हो गया। अब शेरा भी मैदान है। साधो भी है। जोशी भी है। और अरुण भी। सब है, बस भीड़ यहां भी नही है। कहने को सब हाथ मे हाथ डालकर एकजुट बता रहे है लेकिन ये कांग्रेसी तो क्या औसत निमाड़ी भी जानता है कि इन सब नेताओ में कितना "गहरा याराना" है।
प्रदेश में कमलनाथ ओर दिग्विजयसिंह के अलावा सुरेश पचौरी भी दौड़ तो रहे है लेकिन महाकोशल-विंध्य से यात्रा को लेकर कोई उत्साहवर्धक तस्वीरे सामने नही आई है। इन हिस्सो में निकली उपयात्राओ का क्या हश्र हुआ, ये भी सर्वविदित है। इतना सब होने के बाद भी औसत कांग्रेसी अब भी इस उम्मीद से है कि माहौल तो बन जायेगा। लेकिन बड़े नेताओं में चिंता है कि कैसे इतनी भीड़ जुट जाए जो दक्षिण के राज्यों की तो नही, महाराष्ट्र की बराबरी कर ले।