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Supreme Court : बिहार में जातिगत जनगणना को रोकने से सुप्रीम कोर्ट का इंकार

Paliwalwani
Supreme Court : बिहार में जातिगत जनगणना को रोकने से सुप्रीम कोर्ट का इंकार
Supreme Court : बिहार में जातिगत जनगणना को रोकने से सुप्रीम कोर्ट का इंकार

बिहार :

बिहार सरकार (Bihar Government) ने जातिगत जनगणना की शुरुआत करके 2024 के आम चुनावों का एजेंडा सेट कर दिया. इसको चुनौती देने वाली सभी PIL को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इन्हें राजनीति प्रेरित बताया. जजों ने याचिकाकर्ता से कहा कि वे इस मामले में पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सकते हैं. इस फैसले के बाद अन्य राज्यों में भी जातिगत जनगणना शुरू करने का सियासी दबाव बन सकता है.

भारत की आबादी 1.41 अरब

UN के आंकड़ों के अनुसार भारत की आबादी 1.41 अरब हो गई है. इस साल 2023 में भारत चीन से बड़ी आबादी वाला देश बन रहा है. बिहार भारत की तीसरी सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य है. बिहार के युवा जयप्रकाश नारायण (JP) की सम्पूर्ण क्रान्ति में अगुआ रहे हैं. उसके बाद परिवर्तन लाने में विफल नेताओं ने बिहार और दूसरे राज्यों की जनता को मंडल और कमण्डल के दायरे में बांध दिया. संविधान में जाति और धर्म के नाम पर भेदभाव की मनाही है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के अनेक फैसलों के बाद जाति ही अब पिछड़ेपन का आधार बन गई है. बिहार सरकार का कहना है कि सरकारी योजनाओं के सफल क्रियान्यवन के लिए उन्हें सामाजिक, आर्थिक सर्वे और आंकड़ों को इकठ्ठा करने का अधिकार है. इसलिए बिहार की जातिगत जनगणना को अदालती आदेश से रोक पाना मुश्किल ही होगा.

जनगणना में विलम्ब से राज्यों में जातिगत गणना की होड़

चुनावी रेवड़ियां हों या फिर जाति-धर्म की राजनीति. गैर-कानूनी होने के बावजूद इन मुद्दों पर वोट हासिल करने की होड़ में अधिकांश पार्टियां भेड़चाल में शामिल हो जाती हैं. संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार जनगणना का विषय केन्द्र सरकार के अधीन आता है. सन् 2011 के बाद हुए जातिगत सर्वे और सामाजिक, आर्थिक आंकड़ों को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया. अंग्रेजों के समय से हर 10 साल में केन्द्रीय स्तर पर भारत में जनगणना हो रही है. लेकिन 2021 में होने वाली जनगणना अभी तक नहीं हुई. जनगणना और NPRNPR बनाने में लाखों कर्मचारियों की ड्यूटी के साथ 25 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का खर्च और एक साल का समय लग सकता है. इसलिए केन्द्रीय स्तर पर जनगणना का काम अगले साल 2024 के आम चुनावों के बाद ही सम्भव दिखता है.

आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं करने से सरकारी धन की बर्बादी

2011 में सामाजिक, आर्थिक और जातिगत जनगणना हुई थी, उसके आंकड़ों को सार्वजनिक करने से केन्द्र सरकार ने इंकार कर दिया है. संसद में दिये गये बयान और सुप्रीम कोर्ट में दिये गये हलफनामे के अनुसार वह रिपोर्ट गलतियों से भरी होने के साथ अनुपयोगी भी है. सरकार के अनुसार 1931 में हुई जनगणना में कुल जातियों की संख्या 4147 बताई गई थी. जबकि 2011 में हुई केंद्रीय जातिगत जनगणना के अनुसार देश में 46 लाख से ज्यादा जातियां हैं. रोहिणी आयोग के अंतरिम रिपोर्ट के अनुसार ओबीसी की 2633 जातियां हैं. सनद रहे कि केन्द्रीय जनगणना का काम भी राज्य सरकार के कर्मचारियों के माध्यम से होता है. केन्द्र-राज्य और विभिन्न आयोगों की रिपोर्टों में इतने बड़े फासले से जनगणना से जुड़ी प्रशासनिक प्रक्रिया सवालों के घेरे में आ जाती है. बिहार के पहले कनार्टक में भी 2015 में जातिगत जनगणना हुई थी, जिसके आंकड़ें सार्वजनिक नहीं हुए. अरबों रुपये खर्च करने के बाद आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं करने का रिवाज सार्वजनिक धन की बर्बादी है.

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