दिल्ली

कर्मचार‍ियों की सैलरी काटने पर सुप्रीम कोर्ट नाराज : सरकार को सुनाई खरी-खरी

paliwalwani
कर्मचार‍ियों की सैलरी काटने पर सुप्रीम कोर्ट नाराज : सरकार को सुनाई खरी-खरी
कर्मचार‍ियों की सैलरी काटने पर सुप्रीम कोर्ट नाराज : सरकार को सुनाई खरी-खरी

नई दिल्ली. कई बार सरकारें कर्मचार‍ियों की सैलरी यूं ही काट लेती हैं. कई बार पुराने समय से ही सैलरी में कटौती मान ली जाती है. सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी चीजों पर नाराजगी जताई है. शीर्ष अदालत ने गुरुवार को कहा कि किसी सरकारी कर्मचारी के वेतनमान में कटौती और उससे वसूली का कोई भी कदम दंडात्मक कार्रवाई के समान होगा, क्योंकि इसके गंभीर परिणाम होंगे.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, न तो क‍िसी कर्मचारी की सैलरी को कम की जा सकती है और न ही सरकार ऐसा कोई फैसला कर सकती है क‍ि सैलरी में पिछले महीने या पिछले साल से कटौती होगी. जस्‍ट‍िस संदीप मेहता और जस्‍ट‍िस आर. महादेवन की पीठ ने एक र‍िटायर्ड कर्मचारी की सैलरी में कटौती संबंधी बिहार सरकार के अक्टूबर 2009 के आदेश को रद्द कर दिया. राज्य सरकार ने निर्देश दिया था क‍ि पहले तो सैलरी काट ली जाए, उसके बाद भी पूरा न हो, तो उनसे वसूली की जाए.

रिटायर्ड कर्मचारी ने पटना हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने माना था क‍ि वेतन तय करते समय उनके सैलरी में कटौती की गई. यह फरवरी 1999 में सरकार की ओर से जारी प्रस्‍ताव के मुताबिक थी. ज‍िसमें कहा गया था क‍ि वे ज्‍यादा सैलरी लेने के हकदार नहीं थे. उन्‍हें गलत तरीके से ज्‍यादा सैलरी दी जा रही थी.

इस शख्‍स को 1966 में बिहार सरकार में आपूर्ति निरीक्षक के पद पर नियुक्त किया गया था. 15 साल तक सेवा देने के बाद उन्हें प्रमोशन मिला. लेकिन अप्रैल 1981 से उन्हें जूनियर चयन ग्रेड में रखा गया. 25 साल की सेवा के बाद उन्हें 10 मार्च, 1991 से एसडीओ बना दिया गया. इसके बाद राज्‍य सरकार ने फरवरी 1999 में एक प्रस्‍ताव जारी कर दिया, जिसमें विपणन अधिकारी और एडीएसओ की सैलरी को जनवरी 1996 से संशोध‍ित कर दिया गया. यानी सैलरी बढ़ाने के बजाय घटा दी गई.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, जो व्‍यक्‍त‍ि 31 जनवरी, 2001 को एडीएसओ के पद से रिटायर हुआ, उसे अप्रैल 2009 में राज्य सरकार से एक पत्र मिला. बता दिया गया क‍ि उसकी सैलरी तय करने में गलती हुई है, उन्‍हें ज्‍यादा सैलरी दे दी गई है. इसल‍िए उनसे 63,765 रुपये वसूले जाने चाहिए. इसके बाद कर्मचारी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकि‍न हाईकोर्ट ने उसकी बात नहीं सुनी. तब वे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे.

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