दिल्ली
सरकार कहती है 'जरूरी नहीं है आधार- वोटर आईडी लिंक करना : मतदाता सूची से नाम हटाने की चेतावनी
Paliwalwani
भारत के चुनाव आयोग (Election Commission) ने मतदाता सूची में डुप्लीकेट मतदाता को हटाने के लिए 1 अगस्त 2022 से आधार (Aadhaar) को मतदाता पहचान पत्र (Voter IDs) से जोड़ने के लिए एक अभियान शुरू किया है. संसद में केंद्र सरकार ने कहा था कि यह प्रक्रिया स्वैच्छिक (Voluntary) होगी, लेकिन हाल के हफ्तों में, कई मतदाताओं को चुनाव अधिकारियों के फोन आए हैं. इसमें कहा गया है कि दोनों दस्तावेजों को जोड़ना जरूरी है, जिन मतदाताओं ने अभी तक इन दस्तावेजों को लिंक नहीं किया है, उन पर दबाव बनाने के लिए चुनाव अधिकारी सरकार के आधार-वोटर आईडी लिंकिंग स्वैच्छिक है आदेश का ही हवाला दे रहे हैं. यहां जानिए कैसे आधार-वोटर आईडी लिंक करना स्वैच्छिक होते हुए भी क्यों आसान नहीं है.
आधार- वोटर आईडी लिंक करने का दबाव
12 अगस्त 2022 को राज्य चुनाव आयोग के ब्लॉक लेवल के अधिकारी का फोन दिल्ली के एक लेखक और सार्वजनिक नीति पेशेवर मेघनाद एस को आया था. लेखक मेघनाद ने बताया अधिकारी ने मुझसे कहा कि अगर मैं ऐसा नहीं करता हूं, तो मेरा मतदाता पहचान पत्र एक साल में रद्द कर दिया जाएगा. आधार भारतीय निवासियों को उनके बायोमेट्रिक डेटा के आधार पर आवंटित 12 अंकों की विशिष्ट पहचान संख्या से बताता है. जब मेघनाद ने अधिकारी से पूछा कि इस प्रक्रिया को अनिवार्य क्यों बनाया गया है, तो उन्हें बताया गया कि ऊपर से आदेश आया है.
लेखक मेघनाद ने अपनी और इस अधिकारी के बीच आधार और वोटर आईडी लिंक करने की बातचीत को ट्विटर पर पोस्ट कर दिया. इस पोस्ट के बाद दिल्ली के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय से एक एक व्यक्ति ने उनसे संपर्क किया. इस व्यक्ति ने उन्हें बताया कि आधार और वोटर आईडी लिंक करने की प्रक्रिया स्वैच्छिक है और उनका मतदाता पहचान पत्र रद्द नहीं किया जाएगा. लेखक ने ब्लॉक स्तर के अधिकारियों को इस मामले में भ्रम की स्थिति पैदा करने के लिए जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा कि उन्हें फिर से प्रशिक्षित करने की जरूरत है.
दरअसल यह ब्लॉक स्तर के अधिकारियों की गलती नहीं है. यह प्रक्रिया ही एक ऐसे कानून से चलती है जिसने नागरिकों के लिए अपने आधार नंबर को अपने वोटर आईडी से जोड़ने से बचना लगभग असंभव कर दिया है. इसके अलावा ब्लॉक स्तर के अधिकारियों पर अपने वरिष्ठ अधिकारियों का इन दोनों दस्तावेजों को तेजी से जोड़ने का दबाव भी है.
कानूनी तंत्र
बीते साल दिसंबर में केंद्र सरकार विपक्ष के भारी विरोध के बीच इस लिंकिंग को सक्षम करने के लिए चुनावी कानून संशोधन विधेयक लेकर आई थी. तब विपक्ष ने तर्क दिया कि यह कदम निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करेगा. हालांकि उसी वक्त कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने दावा किया था कि यह प्रक्रिया स्वैच्छिक होगी. इस मुद्दे पर भारत का कानून कुछ और ही सलाह देता है. कानून कहता है कि मतदाता सूची (Electoral Roll) में नाम शामिल करने के लिए आने वाले किसी भी आवेदन को अस्वीकार नहीं किया जाएगा और न ही किसी व्यक्ति के नाम को आधार संख्या (Aadhaar Number) न देने या बता पाने पर मतदाता सूची से बाहर किया जाएगा.” हालांकि इसके साथ ही यह भी जोड़ दिया गया कि आधार न दे पाने वाले आवेदक को इसके पर्याप्त कारण बताने होंगे.
हालांकि ये 'पर्याप्त कारण' क्या हो सकते हैं? सरकार ने यह साफ नहीं किया है. सरकार को इस बात को साफ करना चाहिए कि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से किन वजह से आधार देने को बाध्य नहीं है. केंद्र सरकार ने जून में कानून को लागू करने के लिए नियमों को अधिसूचित किया. नियमों के तहत इसमें इकलौता "पर्याप्त कारण" जिसके तहत कोई व्यक्ति अपने आधार को चुनावी कार्यालय में जमा करने से बच सकता है वो यह है कि उसके पास आधार ही न हो. हालांकि ऐसे मामलों में 11 अन्य पहचान प्रमाण जैसे ड्राइविंग लाइसेंस और पासपोर्ट, का इस्तेमाल मतदाता पहचान पत्र को प्रमाणित करने के लिए किया जा सकता है. यहां तक कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को 4 जुलाई 2022 को यह निर्देश भेजे गए कि आधार जमा करना स्वैच्छिक होगा. इसमें ये भी कहा गया कि वोटर आधार संख्या न होने पर ही इसे देने से इंकार कर सकता है.
आधार को बारीकी से ट्रैक करने वाले संगठन आर्टिकल 21(Article 21) की वकील और ट्रस्टी मानसी वर्मा (Maansi Verma) ने कहा, "नियमों और फॉर्मों को पढ़ने वाला कोई भी अधिकारी इस निष्कर्ष पर पहुंचेगा कि आधार और वोटर आईडी लिंकिंग जरूरी है." इसके अलावा नियमों के तहत इस लिंकिंग प्रक्रिया को पूरी करने के लिए 1 अप्रैल, 2023 की कट-ऑफ तारीख दी गई, लेकिन अगर कोई आधार या किसी अन्य पहचान पत्र को वोटर आईडी से लिंक करने में असफल रहता है तो क्या होगा यह साफ नहीं किया गया है. निर्वाचन अधिकारियों को निर्देश में कहा गया है कि यदि वे अपना आधार विवरण जमा नहीं करते हैं तो उन्हें मतदाता सूची से नाम नहीं हटाना चाहिए. ट्रस्टी वर्मा ने कहती कि आधार और वोटर आईडी पर बने इस भ्रम से सरकार को फायदा होता है: अगर लोग इस बारे में अनिश्चित हैं कि आधार- वोटर आईडी से न जोड़ने पर क्या होगा, तो वे दोनों दस्तावेजों को जोड़ देंगे.
मतदाता सूची से नाम हटाने की चेतावनी
देशभर के मतदाताओं को चुनावी अधिकारियों के फोन आते रहते हैं कि अगर वे अपने मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ने में विफल रहते हैं तो उनका नाम मतदाता सूची से हटा दिया जाएगा. कुछ मामलों में, अधिकारियों के पास पहले से ही मतदाताओं के आधार नंबर थे और उन्होंने केवल इसकी पुष्टि करने के लिए लोगों को फोन किए. दिल्ली के सुदीप्तो घोष (Sudipto Ghosh) के पास भी ऐसा ही फोन आया थ. तब उन्होंने कहा जब मैंने उनसे पूछा कि उन्हें मेरा नंबर कैसे मिला तो उन्होंने मुझे बताया कि बहुत से लोग अपना एपिक (Electors Photo Identification Card-EPIC) बनाने के लिए आधार नंबर का इस्तेमाल करते हैं. हालांकि, घोष इस बात से हैरान थे कि उन्होंने अपने आधार का इस्तेमाल कर अपना वोटर आईडी नहीं बनाया था. तो फिर उनके पास फोन कैसे आ गया. घोष बताया मैंने उनसे कहा कि वे मेरा आधार नंबर काट दें. हालांकि घोष को ये नहीं पता चल पाया कि अधिकारी ने उनकी बात मानी या नहीं.
सुरक्षा संबंधी चिंताएं : इसके अलावा, सुरक्षा संबंधी चिंताएं भी हैं, क्योंकि भारत में डेटा संरक्षण कानून नहीं है. इस वजह से मतदाता प्रोफाइलिंग और लक्षित प्रचार (Targeted Campaigning) के लिए इस जानकारी के दुरुपयोग की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है. आधार और मतदाता पहचान पत्र को जोड़ने से नागरिकों के मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन हो सकता है. 24 अगस्त 2017 को 9 जजों वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताया है. पीठ ने कहा था कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए जीने के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा है. ABP news