Thursday, 26 June 2025

आपकी कलम

दान का मूल्य : धन के लालच में ब्राह्मण भूल गए अपना धर्म-कर्म

पालीवाल वाणी मीडिया नेटवर्क
दान का मूल्य : धन के लालच में ब्राह्मण भूल गए अपना धर्म-कर्म
दान का मूल्य : धन के लालच में ब्राह्मण भूल गए अपना धर्म-कर्म

राजा कृष्णदेव राय का दरबार लगा हुआ था.

राज्य की भलाई एवं समृद्धि के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति कौन होता है, इस पर बहस हो रही थी. सभी दरबारी अपने अपने विचार प्रकट कर रहे थे. एक दरबारी ने अपनी राय जाहिर की कि ‘‘राज्य की समृद्धि वहां के राजा पर निर्भर करती है.’’ इस पर राजा ने अपनी राय प्रकट कीः-‘‘राज्य की समृद्धि के लिए राजा तो जिम्मेदार होता ही है, पर इस बात का क्या भरोसा कि राजा दुष्ट या अत्याचारी नहीं होगा.’’ तभी एक दरबारी ने खड़े होकर कहाः-‘‘ महाराज...! साधारण जनता, किसान, लोहार, बढ़ई, मजदूर, कुम्हार, सुनार आदि भी राज्य की रीड की हड्डी होते हैं, क्योंकि यही लोग अपने परिश्रम से राज्य की उन्नति में चार चांद लगाते हैं.’’ राजा ने उत्तर दिया किन्तु ‘‘आम जनता के अनपढ़ होने के कारण यह संभव नहीं है. राजा को केवल मंत्रियों और ब्राह्मणों पर ही निर्भर रहना पड़ता है.’’

तभी सेनापति बोलाः-‘‘मेरी राय में राज्य की समृद्धि के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार व्यक्ति सेनापति होता है.’’ सेनापति की बात काटते हुए राजा ने कहा कि-‘‘यदि राजा, सेना व सेनापति पर नियंत्रण न रखे तो यह राज्य में कभी शांति स्थापित ही ना होने दें.’’

दूसरा दरबारी बोलाः-‘‘सबसे महत्वपूर्ण वस्तु राज्य के किले होते हैं, क्योंकि यह बाहरी आक्रमण के समय काम आते हैं.’’ राजा ने उत्तर दियाः-‘‘नहीं-नहीं! बहादुर जनता किलो से अधिक महत्वपूर्ण है.’’ राजगुरु का सुझाव था किन्तु ‘‘राज्य की उन्नति में सबसे महत्वपूर्ण अंग ब्राह्मण है.’’ इस पर राजा ने तेनालीराम से पूछाः-‘‘इस बारे में तुम्हारी क्या राय है...!’’ तेनालीराम ने कहाः-‘‘महाराज! मेरे विचार में अच्छा व्यक्ति चाहे वह ब्राह्मण हो या किसी अन्य जाति का हो वह राज्य को लाभ पहुंचाएगा. इस प्रकार अच्छा या बुरा हर जाति में मिलेगा. इसलिए यह कहना कि ब्राह्मण ही राज्य को लाभ पहुंचा सकता है, यह गलत है. कई बार ब्राह्मण होकर भी धन के लालच में राज्य को नुकसान पहुंचाया जा सकता है.’’ यह सुनकर राजगुरु ने क्रोधित होकर तेलानीराम से कहाः-‘‘तुम ब्राह्मणों पर आरोप लगा रहे हो...! राज्य का कोई भी ब्राह्मण अपने राजा या राज्य को हानि नहीं पहुंचा सकता. ब्राह्मण को धन का लालच होता ही नहीं. यह मेरा दावा है.’’ इस बात पर तेनालीराम बोलेः-‘‘मैं आपके इन दावों को झूठा साबित कर सकता हूँ. जो व्यक्ति मूल रूप से अच्छा न हो, वह ब्राह्मण होकर भी धन के लालच में कुछ भी कर सकता है.’’ राजा ने यह देख कर दरबार को भंग कर दिया कि बहस में जरूरत से ज्यादा कड़वाहट आ गई है. एक महीना बीत गया. सभी लोग बात को भूल गए लेकिन तेनालीराम ने अपनी योजना, राजा को समझाई और राज्य के 8 प्रमुख ब्राह्मणों के पास जाकर बोलेः-‘‘हमारे महाराज इसी समय 8 चांदी की थाली और कुछ स्वर्ण मुद्राएं देना चाहते हैं.’’ यह सुनकर ब्राह्मण बहुत प्रसन्न हुए और तेनालीराम के प्रति अपनी कृतज्ञता जताईः-‘‘महाराज ने हमें इस शुभ अवसर के लिए चुना है.’’ आठों चुने हुए ब्राह्मणों ने कहाः-‘‘हम अभी स्नान करके आपके साथ चलते हैं.’’

तेनालीराम बोलेः-‘‘स्नान करने का समय नहीं है. महाराज तैयार बैठे हैं. कहीं ऐसा ना हो कि दान का मुहूर्त निकल जाए और आप स्नान करते ही रह जाएं, इसलिए मैं जाकर दूसरे ब्राह्मणों को बुला लाता हूँ.’’ ‘‘रुकिए, रुकिए! हम अपने सिर पर पानी छिड़क कर कंघी कर लेते हैं. धर्म के अनुसार यह भी स्नान के बराबर ही है.’’ तेनालीराम चुपचाप कोई उत्तर दिए बिना उनकी प्रतीक्षा करने लगे. आठों ब्राह्मणों ने अपने सिर पर पानी छिड़का, तिलक लगाया और तेनालीराम के साथ दरबार के लिए चल पड़े. दरबार में पहुंचकर चांदी की 8 थालियों में स्वर्ण मुद्राएं देखकर सभी ब्राह्मणों की आँखें खुल गई. जिस वक्त महाराज दान करने के लिए तैयार हुए तो एकाएक तेलानीराम बीच में बोल पड़ेः-‘‘महाराज, मेरे विचार से आपको इस बात पर तो कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए कि इन ब्राह्मणों ने स्नान नहीं किया है. बेचारे जल्दी में यहां पहुंचने के कारण स्नान नहीं कर सके. ये अपने सिर पर पानी छिड़क कर स्नान के समान हो गए हैं. राजा ने उन आठों ब्राह्मणों से क्रोध में भरकर पूछाः-‘‘क्या तेनालीराम जो कह रहा है, वह सच है...!’’ महाराज का क्रोध देखकर ब्राह्मणों का खून सूख गया और उन्होंने इस बात को स्वीकार कर लिया कि उन्होंने स्नान नहीं किया है. सभी ब्राह्मण धीरे-धीरे से वहां से खिसक गए. ब्राह्मणों के चले जाने पर तेनालीराम राजगुरु से बोलेः-‘‘अब कहिए राजगुरु जी...! एक महीना पहले जो बहस छिड़ी थी, उसके बारे में क्या कहना है...! धन के लालच में यह आठों ब्राह्मण यह भी भूल गए, जिसे यह सब अपना अपना धर्म कर्म मानते है. इससे यह बात सिद्ध हो गई कि राज्य का सबसे महत्वपूर्ण अंग ब्राह्मण नहीं बल्कि साधारण परिश्रमी जनता होती है. यदि उन्हें समझदार मंत्री और योग्य राजा मिले तो राज्य, दिन दूनी और रात चौगुनी तरक्की करता है.’’

● पालीवाल वाणी मीडिया नेटवर्क...✍️

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