धर्मशास्त्र
क्यों जलाते है होली, ब्रह्मा के वरदान के बाद भी कैसे जल गईं होलिका, सबसे पहली होली कहा जली, विदेशो में भी खेलते है होली, जानिए
PushplataHoli History Facts: हम सभी होलिका दहन करते हैं। पर क्या आप जानते हैं कि भारत में कब से होली जलाने की शुरुआत हुई। यदि नहीं तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि होली जलाने की शुरुआत कब से हुई। साथ ही जानेंगे कि कैसे ब्रह्मा जी के वरदान के बाद भी होलिका जल गई।
हर साल हम क्यों जलाते हैं होली har sal holi kyu jalai jati hai
होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत और दूरियों को मिटाकर एक साथ रहने का त्योहार है। इस बात की शिक्षा लेने और इस जीत को याद करने के लिए हम हर साल होली जलाते हैं।
कैसे तय होती है होली की तिथि holi dates kaise tay hoti hai
हिन्दू कैलेंडर में होली की तिथि कैसे तय होती है इसका भी आधार होता है। दरअसल होली का त्योहार हर साल फाल्गुन माह के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। लेकिन फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष में जब सूर्योदय के समय पूर्णिमा तिथि आती है उसी तिथि में होलिका दहन होता है।
भारत में कब और कैसे शुरू हुई होलिका दहन की परंपरा bharat me kabse holi kheli jati hai
ज्योतिषाचार्य के अनुसार होली की शुरुआत त्रेता युग से हुई थी। हमारे हिन्दु धर्म शास्त्रों में चार युगों का उल्लेख है। पहला सतयुग, दूसरा त्रेता युग, द्वापर युग और कलियुग। त्रेता युग में हिरण्यकश्यप का जन्म हुआ था। तब से ही होली की शुरुआत मानी जाती है। हालांकि कुछ जगह पर इसकी शुरुआत सतयुग से भी बताई गई है।
कितने साल का कौन सा युग
हिन्दू पंचांग के अनुसार चार युग होते हैं। हमारे शास्त्रों में बताए अनुसार 1 युग लाखों वर्षों का है।
- सतयुग का समय: 17 लाख 28 हजार वर्ष
- त्रेतायुग का समय: 12 लाख 96 हजार वर्ष
- द्वापर युग का समय: 8 लाख 64 हजार वर्ष
- कलियुग का समय: 4 लाख 32 हजार वर्ष का होना है।
धुरेड़ी यानी धूल-राख की होली dhulendi kauna parv hai
होलिका दहन के दूसरे दिन धुरेड़ी होती है। धुरेड़ी का मतलब है धूल से खेली जाने वाली होली। यहां धूल का अर्थ होलिका दहन की राख से है। बुंदेलखंड में अभी भी यह प्रथा प्रचलित है। धुरेड़ी खेलने के पीछे धार्मिक और वास्तविक कारण यह भी है कि जब होलिका दहन के बाद उसकी अग्नि शांत हो जाती है। तो उसकी राख बन जाती है। जिले हम धूल के रूप में संज्ञा देते हैं। इसी राख को होलिका दहन के दूसरे दिन लेकर एक दूसरे के सिर और माथे पर लगाया जाता है। इससे मौसमी रोगों से मुक्ति मिलती है।
रंगपंचमी से होती थी रंग खेलने की शुरुआत kaise hui holi khelne ki shuruwat
होली (Holi) का त्योहार रंगों का त्योहार है। इसलिए वास्तविक रूप से होली का त्योहार रंगपंचमी के दिन होता है। पर आज कल समय की कमी के चलते लोग होली के दूसरे दिन से ही रंग और गुलाल के साथ होली खेलने लगे हैं। जबकि रंगों का त्योहार रंग पंचमी के दिन होता है। इस दिन भगवान को रंग गुलाल लगाकर फिर लोग एक दूसरे के साथ रंग खेलना शुरू किया जाता है।
होलिका दहन की पौराणिक कथा holika dahan ki pauranik katha
राजा हिरण्यकश्यप ने त्रेता युग में जन्म लिया था। वह हिरण्यकश्यम बेहद अहंकारी था। स्वयं को ईश्वर मानता था और सभी को खुद को ईश्वर मानने के लिए विवश करता था। पर हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। वह विष्णु जी को ही अपने सबसे बड़ा भगवान मानता था। ये बात हिरण्यकश्यप को पसंद नहीं थी।
इसके लिए उसने प्रहृलाद को कई बार समाप्त करवाने की कोशिश की। जब सभी प्रयास विफल हुए तो अपनी बहन होलिका को प्रहृलाद को समाप्त करने की जिम्मेदारी दी। चूंकि होलिका को न जलने का वरदान प्राप्त था। इसलिए होलिका को प्रहृलाद को लेकर अग्नि में बैठने का आदेश दिया गया।
पर अग्नि में बैठने के बाद भगवान विष्णु का परम भक्त होने के चलते प्रहृलाद को बच गया। लेकिन होलिका अग्नि की चपेट में आ गई। इसी दिन से होलिका की शुरुआत मानी जाती है।
इस स्थान पर पहली बार खेली गई होली sabse pehli holi kha mani
अगर आपको नहीं पता है कि पहली बार होली कहां खेली गई तो आपको बता दें पौराणिक कथाओं के अनुसार पहली बार होलिका दहन झांसी के एरच में हुआ था।
राजा हिरण्यकश्यप के आदेश पर एरच के पास स्थित डिकौली पर्वत पर पहली बार अग्नि जलाई गई थी। इसी अग्नि में हिरण्यकश्यप की बहन होलिका भक्त प्रह्लाद को लेकर अग्नि में कूद पड़ी थी। चूंकि ब्रह्मा के जी दिए वरदान के अनुसार होलिका के पास एक ऐसी चुनरी थी, जिसे पहनने पर वह आग के बीच बैठ सकती थी। इससे उस पर अग्नि का असर नहीं होता।
होलिका वही चुनरी ओढ़ प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई। पर भक्त प्रहृलाद की भक्ति के चलते प्रहृलाद इस अग्नि से बच गया। लेकिन भगवान की माया के चलते तेज हवा चलने से होलिका की चुनरी उड़ गई और वह आकर प्रहृलाद के ऊपर लिपट गई। इस तरह प्रहलाद फिर बच गया और होलिका जल गई। इस घटना के बाद भगवान विष्णु ने नरसिंह के रूप में अवतार लेकर गौधुली बेला में यानी उस समय जब न दिन होता है और न रात, अपने नाखूनों से डिकौली स्थित मंदिर की दहलीज पर हिरणाकश्यप का वध कर दिया।
इसलिए हर साल मनाते हैं होली Har sal holi kyu manate hai
होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का त्योहार है। इसलिए हर साल इससे शिक्षा लेने और बुराई पर अच्छाई की जीत को याद रखने के लिए होली का त्योहार मनाया जाता है। इसी पौराणिक कथा के अनुसार होलिका दहन झांसी से करीब 45 मिली दूर एरच कस्बे में हुआ था। इसलिए होली का उद्गम स्थल एरच है। झांसी के डिकौली पर्वत पर यह जगह आज भी मौजूद है। इसके प्रमाण आजभी यहां मिलते हैं।
विदेशों में होली के ये रंग videsho me bhi holi kheli jati hai
भारत की तरह ही विदेशों में भी होली के अपने रंग है। स्पेन में टमाटर की होली, तो ऑस्ट्रेलिया में वाटर मेलन फेस्टिवल होता है। जो होली के रूप में मनाया जाता है। इसी तरह दक्षिण कोरिया में रंगों का त्योहार बोरयॅान्ग मड फेस्टिवल के रूप में मनाया जाता है। इटली में होली को ऑरेंज बैटल के रूप में मनाते हैं। इसमें भी टमाटर की होली खेली जाती है।
इटली की होली Itlay ki holi
भारत की तरह ही इटली में भी HOLI खेली जाती है। यहां पर टमाटर की होली होती है। इसे ऑरेंज बैटल कहा जाता है। जनवरी में होने वाले इस त्योहार में लोग एक दूसरे को रंग नहीं बल्कि स्पेन की तरह टमाटर फेंककर होली खोलते हैं।
दक्षिण कोरिया की होली korea ki holi
दक्षिण कोरिया की होली को बोरयॅान्ग मड फेस्टिवल के नाम से जाना जाता है। हर साल जुलाई में होने वाले इस फेस्टिवल में लोग एक दूसरे को रंग नहीं बल्कि कीचड़ लगाते हैं। इसके लिए कीचड़ का एक बड़ा टब बनाया जाता है, जिसमें लोग तैरकर एक दूसरे पर कीचड़ फेकते हैं।
ऑस्ट्रेलिया की होली australia ki holi
ऑस्ट्रेलिया में होली के त्योहार को वाटरमेलन फेस्टिवल के रूप में मनाया जाता है। भारत से उल्टा ये साल में एक बार नहीं, बल्कि दो साल में एक बार फरवरी में मनाया जाता है। इसमें तरबूज का उपयोग रंग की जगह किया जाता है। लोग एक दूसरे पर तरबूज फेंककर मस्ती करते हैं।
स्पेन की होली spain ki holi
भारत की होली की तरह की स्पेन की होली भी काफी फेमस है। यहां रंग नहीं बल्कि टमाटर से होली खेली जाती है। जिसे ला टोमाटीना कहते हैं। ये हर साल अगस्त में होता है।