धर्मशास्त्र
आज का प्रेरक प्रसंग : माता के दूध का कर्ज
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बहुत कम पुत्र हुए हाँ जिन्होंने अपनी माता के दूध का कर्ज चुकाया है, लेकिन हनुमानजी एक ऐसे पुत्र है जिन्होंने अपनी माता का ऐसा कर्ज चुकाया है जो कि धरती पर आज तक कोई नहीं चुका पाया है। कहा जाता है कि माता अंजनी जी ने कठोर तप किया और तब भगवान शिव के आशीर्वाद से उन्हें एक पराक्रमी पुत्र प्राप्ति का वरदान प्राप्त हुआ था। इस तपस्या के फलस्वरूप वे हनुमानजी की माता बनीं।
माता अंजनी ने हमुमान जी को बहुत प्यार और दुलार से पालन करके बड़ा किया। हनुमानजी बड़े हुए, तो उन्होंने माता अंजनी से पूछा कि माता! मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ? आपके प्रति मेरा, आप का पुत्र होने का क्या कर्तव्य है? तब माता अंजनी ने प्रेमपूर्वक कहा कि "वत्स, जब तक मैं इस पृथ्वी पर हूं, मेरा पालन-पोषण और देखभाल तुम्हारी ज़िम्मेदारी है। लेकिन मेरा एक और ऋण है जो तुम्हें चुकाना होगा।"
हनुमानजी ने जिज्ञासा से पूछा, "मां, वह कौन सा ऋण है? माता अंजनी ने उत्तर दिया कि "हर माता को अपने पुत्र से एक ही अपेक्षा होती है कि वह अपना जीवन, धर्म, भक्ति और परोप कार में लगाए। जब तुम भगवान श्रीराम की सेवा करोगे और उनकी भक्ति में लीन रहोगे, तभी मैं समझूंगी कि तुमने मेरा ऋण चुका दिया।"
हनुमानजी ने अपनी माता को वचन दिया कि वे अपना संपूर्ण जीवन भगवान श्रीराम की सेवा में समर्पित कर देंगे। फिर हनुमान जी रामभक्ति में लग गए और एक दिन उनकी मुलाकात एक पर्वत पर श्रीराम और लक्ष्मण से हुई। इसके बाद उन्होंने श्रीराम की आज्ञा से लंका दहन किया, संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण को जीवन दान दिया और राम एवं रावण युद्ध में सहायता की। फिर जब युद्ध समाप्त हो गया तो प्रभु श्रीराम ने कहा कि कहो हनुमान तुम्हारी क्या इच्छा है।
हनुमानजी ने कभी भी अपने लिए कुछ नहीं मांगा, बल्कि निस्वार्थ भाव से अपने प्रभु श्रीराम की सेवा में लगे रहे।हनुमानजी ने कहा प्रभु यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं अपनी माता के पास जाना चाहता हूं और यदि आप भी मेरे साथ चलेंगे तो मेरे अहोभाग्य!
प्रभु श्रीराम ने कहा तथास्तु फिर हनुमानजी अपने प्रभु श्रीराम को लेकर अपने घर गए और उन्होंने माता अंजनी से भगवान श्रीराम को मिलाया माता अंजनी यह देखकर आश्चर्य, भक्तिभाव से भावविभोर होकर दोनों को देखने लगी।
तब माता अंजनी ने हनुमानजी से कहा कि बेटा तुमने आज मेरा सारा कर्ज चुका दिया। तुमने न सिर्फ प्रभु श्रीराम की सेवा की और उन्हें यहां लाकर मुझे उनका दर्शन भी करवाया। लोग तो मरने के बाद प्रभु के धाम जाकर उनसे मिलते हैं तू तो प्रभु को ही यहां ले आया। लोग तीर्थ में यात्रा करके प्रभु के दर्शन करने जाते हैं तू तो समस्त तीर्थ जिनके चरणों में हैं उन्हें ही ले आया मेरे द्वार पर।
यह कथा हमें सिखाती है कि माता-पिता का सबसे बड़ा ऋण उनकी आज्ञा और उनकी इच्छाओं का सम्मान करके चुकाया जाता है। हनुमानजी ने माता की सेवा के लिए भगवान श्रीराम की भक्ति को चुना, जो हर भक्त के लिए प्रेरणादायक है। यही नहीं उन्होंने जिस प्रभु की तलाश में लोग तप और ध्यान करते हैं वे उन्हें ही अपने माता पिता के लिए अपने घर ले आए।