धर्मशास्त्र

श्राद्ध पक्ष : भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा, दिनांक 10 सितम्बर 2022 शनिवार से प्रारंभ

Paliwalwani
श्राद्ध पक्ष : भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा, दिनांक 10 सितम्बर 2022 शनिवार से प्रारंभ
श्राद्ध पक्ष : भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा, दिनांक 10 सितम्बर 2022 शनिवार से प्रारंभ

श्राद्ध पक्ष :-भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा, दिनांक 10 सितम्बर 2022, शनिवार से प्रारंभ होकर आश्विन कृष्ण अमावस्या, दिनांक 25 सितम्बर 2022, रविवार तक श्राद्ध पक्ष रहेंगे। अपराह्न काल सामन्यतया दोपहर 01ः38 से सायं 04ः05 बजे तक रहता है, अतः यदि उस समय कोई तिथि रहती है तो उसी समय श्राद्ध करने का विधान बताया गया है। इस वर्ष श्राद्ध पक्ष 16 दिनों तक चलेगा क्योंकि दिनांक 17 सितम्बर 2022, शनिवार को कोई श्राद्ध सम्पन्न नहीं होगा।

1. 10 सितम्बर :- प्रतिपदा का श्राद्ध, श्राद्ध प्रारम्भ

2. 11 सितम्बर :- द्वितीया का श्राद्ध

3. 12 सितम्बर :- तृतीया का श्राद्ध

4. 13 सितम्बर :- चतुर्थी का श्राद्ध

5. 14 सितम्बर :- पंचमी का श्राद्ध, भरणी नक्षत्र का श्राद्ध

6. 15 सितम्बर :- षष्ठी का श्राद्ध, कृतिका नक्षत्र का श्राद्ध

7. 16 सितम्बर :- सप्तमी का श्राद्ध

8. 17 सितम्बर :- इस दिन कोई श…

[8:54 AM, 9/10/2022] +91 95180 68407: गया : पूर्वजों को याद करने के साथ उन्हें श्रद्धा के साथ पिंडदान करने की परंपरा पौराणिक और प्राचीन होने के साथ अपने पितरों के प्रति आगाध आस्था और श्रद्धा का एक ऐसा संगम है, जिसे हर कोई अपने जीवन में देना चाहता है. पिता-माता आदि पारिवारिक पूर्वजों की मृत्यु के पश्चात उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक किये जाने वाले पिंडदान और कर्म को पितृ श्राद्ध कहते हैं.हिंदूधर्म की संस्कृति से जुड़ेपर्व,त्योहार के अलावा पूर्वजोंसे जुड़े पारंपरिक बातों  श्रद्धया इदं श्राद्धम्, यानी जो श्रद्धा से किया जाये और उसे अंत:करण से कर्मित किया जाये, वह प्रेत और पितरों के लिए, उनकी आत्मा के लिए श्राद्ध है. जिसमें आस्था के साथ पूर्वजों के प्रति निष्ठा का सार्थक समावेश हो.

पिंड दान हिंदू धर्म संस्कृति में मानव द्वारा किया जाने वाला एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्यहै. सनातन संस्कृति के मुख्य कार्यमें श्राद्ध से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं. मगर यह बातें श्राद्ध करने से पूर्व जान लेना बहुत जरूरी है क्योंकि कई बार विधिपूर्वक श्राद्ध न करने से पितृ श्राप भी दे देते हैं. जो इस प्रकार हैं--

1- श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए। यह ध्यान रखें कि गाय को बच्चा हुए दस दिन से अधिक हो चुके हैं. दस दिन के अंदर बछड़े को जन्म देने वाली गाय के दूध का उपयोग श्राद्ध कर्म में नहीं करना चाहिए.

2- श्राद्ध में चांदी के बर्तनों का उपयोग व दान पुण्यदायक तो है ही राक्षसों का नाश करने वाला भी माना गया है।पितरों के लिए चांदी के बर्तन में सिर्फ पानी ही दिये जाये तो वह अक्षय तृप्ति कारक होता है. पितरों के लिए अर्घ्य, पिण्ड और भोजन के बर्तन भी चांदी के हों तो और भी श्रेष्ठ माना जाता है.

3- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़ कर लाने चाहिए,एक हाथ से लाये अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षस छीन लेते हैं.

4- ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर एवं व्यंजनों की प्रशंसा किये बगैर करना चाहिए क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं जब तक ब्राह्मण मौन रह कर भोजन करें.

5- जो पितृ शस्त्र आदि से मारे गये हों उनका श्राद्ध मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी को भी करना चाहिए. इससे वे प्रसन्न होते हैं. श्राद्ध गुप्त रूप से करना चाहिए. पिंडदान पर साधारण या नीच मनुष्यों की दृष्टि पड़ने से वह पितरों को नहीं पहुंचता.

6- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाना आवश्यक है, जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन नहीं करते, श्राप देकर लौट जाते हैं. ब्राह्मण हीन श्राद्ध से मनुष्य महापापी होता है.ॉ

7- श्राद्ध में जौ, कांगनी, मटरसरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है. तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है. वास्तव में तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं. कुशा (एक प्रकार की घास) राक्षसों से बचाते हैं.

8- दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए। वन, पर्वत, पुण्यतीर्थ एवं मंदिर दूसरे की भूमि नहीं माने जाते क्योंकि इन पर किसी का स्वामित्व नहीं माना गया है। अत: इन स्थानों पर श्राद्ध किया जा सकता है.

9- चाहे मनुष्य देवकार्य में ब्राह्मण का चयन करते समय न सोचे, लेकिन पितृ कार्य में योग्य ब्राह्मण का ही चयन करना चाहिए क्योंकि श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों द्वारा ही होती है.

10- जो व्यक्ति किसी कारणवश एक ही नगर में रहनी वाली अपनी बहन, जमाई और भानजे को श्राद्ध में भोजन नहीं कराता, उसके यहां पितर के साथ ही देवता भी अन्न ग्रहण नहीं करते.

11- श्राद्ध करते समय यदि कोई भिखारी आ जाये तो उसे आदर पूर्वक भोजन करवाना चाहिए. जो व्यक्ति ऐसे समय में घर आये याचक को भगा देता है उसका श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता और उसका फल भी नष्ट हो जाता है.

12- शुक्ल पक्ष में, रात्रि में, युग्म दिनों (एक ही दिन दो तिथियों का योग)में तथा अपने जन्मदिन पर कभी श्राद्ध नहीं करना चाहिए. धर्म ग्रंथों के अनुसार सायंकाल का समय राक्षसों के लिए होता है, यह समय सभी कार्यों के लिए निंदित है. अत: शाम के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए.

13- श्राद्ध में प्रसन्न पितृगण मनुष्यों को पुत्र, धन, विद्या, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष और स्वर्ग प्रदान करते हैं। श्राद्ध के लिए शुक्लपक्ष की अपेक्षा कृष्णपक्ष श्रेष्ठ माना गया है.

14- रात्रि को राक्षसी समय माना गया है. अत: रात में श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए. दोनों संध्याओं के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए. दिन के आठवें मुहूर्त (कुतपकाल) में पितरों के लिए दिया गया दान अक्षय होता है.

15- श्राद्ध में ये चीजें होना महत्वपूर्ण हैं- गंगाजल, दूध, शहद, दौहित्र, कुश और तिल. केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है।सोने, चांदी, कांसे, तांबे के पात्र उत्तम हैं। इनके अभाव में पत्तल उपयोग की जा सकती है.

16- तुलसी से पितृगण प्रसन्न होते हैं. ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्णु लोक को चले जाते हैं. तुलसी से पिंड की पूजा करने से पितर लोग प्रलयकाल तक संतुष्ट रहते हैं.

17- रेशमी, कंबल, ऊन, लकड़ी, तृण, पर्ण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ हैं। आसन में लोहा किसी भी रूप में प्रयुक्त नहीं होना चाहिए.

18- चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध में निषेध हैं.

19- भविष्य पुराण के अनुसार श्राद्ध 12 प्रकार के होते हैं, जो इस प्रकार हैं-

1- नित्य, 2- नैमित्तिक, 3- काम्य, 4- वृद्धि, 5- सपिण्डन, 6- पार्वण, 7- गोष्ठी, 8- शुद्धर्थ, 9- कर्मांग, 10- दैविक, 11- यात्रार्थ, 12- पुष्टयर्थ

20- श्राद्ध के प्रमुख अंग इस प्रकार :

तर्पण- इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल पितरों को तृप्त करने हेतु दिया जाता है। श्राद्ध पक्ष में इसे नित्य करने का विधान है.

भोजन व पिण्ड दान-- पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता है. श्राद्ध करते समय चावल या जौ के पिण्ड दान भी किए जाते हैं.

वस्त्रदान-- वस्त्र दान देना श्राद्ध का मुख्य लक्ष्य भी है.

दक्षिणा दान-- यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है जब तक भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा नहीं दी जाती उसका फल नहीं मिलता.

21 - श्राद्ध तिथि के पूर्व ही यथाशक्ति विद्वान ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलावा दें। श्राद्ध के दिन भोजन के लिए आए ब्राह्मणों को दक्षिण दिशा में बैठाएं.

22- पितरों की पसंद का भोजन दूध, दही, घी और शहद के साथ अन्न से बनाये गये पकवान जैसे खीर आदि है. इसलिए ब्राह्मणों को ऐसे भोजन कराने का विशेष ध्यान रखें.

23- तैयार भोजन में से गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए थोड़ा सा भाग निकालें। इसके बाद हाथ जल, अक्षत यानी चावल, चन्दन, फूल और तिल लेकर ब्राह्मणों से संकल्प लें.

24- कुत्ते और कौए के निमित्त निकाला भोजन कुत्ते और कौए को ही कराएं किंतु देवता और चींटी का भोजन गाय को खिला सकते हैं। इसके बाद ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं. पूरी तृप्ति से भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों के मस्तक पर तिलक लगाकर यथाशक्ति कपड़े, अन्न और दक्षिणा दान कर आशीर्वाद पाएं.

25- ब्राह्मणों को भोजन के बाद घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करके आएं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ पितर लोग भी चलते हैं. ब्राह्मणों के भोजन के बाद ही अपने परिजनों, दोस्तों और रिश्तेदारों को भोजन कराएं.

26- पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है. पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में सपिंडो (परिवार के) को श्राद्ध करना चाहिए. एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्धकर्म करें या सबसे छोटा.

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