धर्मशास्त्र

जानिए क्यों : मां क्यों नहीं देखती अपने ही बेटे के फेरे?

Paliwalwani
जानिए क्यों : मां क्यों नहीं देखती अपने ही बेटे के फेरे?
जानिए क्यों : मां क्यों नहीं देखती अपने ही बेटे के फेरे?

हिंदू धर्म में शादी विवाह का बहुत ज्यादा महत्व है और शादी को लेकर कई तरह की रस्में रिवाज है. अक्सर ऐसा देखा जाता है कि शादी सिर्फ दो लोगों की नहीं होती है, बल्कि दो परिवारों का मिलन होता है.

इस वक्त शादियों का सीजन चल रहा है. तमाम लोग शादी के बंधन में बंध रहे हैं. शादी में कई तरह के रीति-रिवाज भी अपनाए जाते हैं.  हिंदू धर्म में हर मांगलिक कार्य करने को लेकर बहुत से रीति-रिवाज हैं. विवाह के दौरान किए जाने वाले रिवाजों को सबसे पवित्र रिवाज माना जाता है. विवाह के दौरान बहुत से रीती-रिवाज निभाए जाते हैं. जैसे कन्यादान, सात फेरे, मंगलसूत्र पहनना और गृह प्रवेश. इन रीती-रिवाजों के पूरा होने पर ही विवाह संपन्न माना जाता है. विवाह को हिन्दू धर्म में दो लोगों का नहीं, बल्कि दो परिवारों का मिलान माना जाता है, लेकिन आपने अक्सर देखा होगा बेटों की शादी में माता शामिल नहीं होती है. मतलब अपने बेटे की शादी में माताएं उनके फेरे नहीं देखती हैं, इसके पीछे क्या कारण है? 

कई मां अपने बेटे की शादी में चली जाती

हर मां का सपना होता है कि वह अपने बेटे की शादी कराई और उसका घर बस्ता हुआ देखें. लेकिन हिंदू धर्म के अनुसार मां अपने बेटे के फेरे को नहीं देखती है ना ही अपने बेटे की शादी में जाती है. आजकल बदलते जमाने के अनुसार कई मां अपने बेटे की शादी में चली जाती है लेकिन शास्त्रों में ऐसा लिखा है कि मां बेटे की शादी में नहीं जाती है. 

मुगल काल से यह परंपरा शुरू हुई थी जब महिलाएं बेटे की शादी में जाती थी तो उनके पीछे से घर में लूटपाट हो जाती थी यही कारण थी कि महिलाएं घर में रहकर घर की रखवाली करने लगी. जब बारात चली आती है तो महिलाएं घर पर रहकर ढोल नगाड़े बजाकर तय करती है. इसी को ध्यान में रखते हुए और घर की रखवाली के लिए महिलाओं ने घर में रहना शुरू कर दिया. इसी वजह से शादी वाले दिन लड़के के घर में सभी महिलाएं एकत्रित होकर मनोरंजन के लिए गीत गाती हैं. ऐसा भी है कि शादी के बाद जब दुल्हन आती है तो गृह प्रवेश का रास्ता मा ही कराती है. इसलिए कई बार ऐसा देखा जाता है कि मां घर पर रुक जाती है, क्योंकि वहां गृह प्रवेश का रस्म बहु के आने पर समय से करा सके और मुहूर्त ना खत्म हो.

कहां-कहां आज भी प्रचलित है ये परंपरा?

भारतवर्ष में ये परंपरा आज भी उत्तराखंड, बिहार, मध्यप्रदेश और राजस्थान में देखने को मिलती है. इन जगहों पर बेटे की शादी में माताएं नहीं जाती. हालांकि अब समय के साथ-साथ लोगों की सोच में बदलाव आने लगा है. आजकल माताएं अपने बेटों की शादी में जाती हैं और उसे पूरी तरह से इंजॉय भी करती हैं.

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