रतलाम/जावरा

सबसे चर्चित जावरा : भाजपा अब मुझे मिल रहे जन समर्थन को बोखला गए है : वीरेन्द्रसिंह

जगदीश राठौर
सबसे चर्चित जावरा : भाजपा अब मुझे मिल रहे जन समर्थन को बोखला गए है : वीरेन्द्रसिंह
सबसे चर्चित जावरा : भाजपा अब मुझे मिल रहे जन समर्थन को बोखला गए है : वीरेन्द्रसिंह

आरोप सिद्ध करने को बोला था, पुराने आदेश दिखाने को नहीं

अब भी यदि विधायक और पुरी भाजपा में दम है तो आलोट नगर पालिका को लेकर जो आरोप लगा रहे है उसे सिद्ध करके बताए 

जगदीश राठौर M.9425490641

जावरा : रतलाम जिले की सबसे चर्चित जावरा विधानसभा सीट पर अब वीरेन्द्रसिंह को ग्रामीण अंचलों में मिल रहे जनसमर्थन से भाजपा बोखला गई है, भाजपा के विधानसभा प्रभारी महेश सोनी ने गुरुवार को पत्रकार के समक्ष मुझे राजनीतिक गुंडा बताया है, लोग इनसे भयभीत है, लेकिन आज तक मैने किसी जमीन पर अवैध कब्जा नहीं किया, एक भी व्यक्ति यह बात नहीं कह सकता है, मैने कभी अवैध शराब नहीं बेची, ना ही कोई अवैध कट्टा बेचा है, गुंडा किसे कहते है, ये जनता भलीभांति जानती है।

2015 में मेरी माताजी पर आलोट नगर पालिका में गबन का आरोप लगाया था, कानुन में प्रावधान है कि जो भी मुकदमा बनता है, उसमें तीन माह में जांच कर चालान पेश करना पड़ता है, लेकिन आज 8 साल बीतने के बाद भी अब तक चालान तक पेश नहीं कर पाए, यदि भाजपा के विधायक और सरकार में ताकत है तो आज 8 साल बाद भी चालान पेश कर करने में सक्षम है तो कर दे। यदि आरोप सिद्ध भी हो गया तो मैं राजनीति करना छोड़ दुंगा और कांग्रेस का यह टिकट पुन: वापस कर दुंगा।

भाजपा मंंडल अध्यक्ष के भाई का विडियो वायरल कर बदनाम कर रहे 

ताल भाजपा मंडल अध्यक्ष गोपाल काला का भाई मनोज काला आलोट अवैध कॉलोनी काटता है, जिससे जनता परेशान हो रही थी, लोगों को सुविधा नहीं मिल रही थी, जिसको लेकर मैने काला पर कॉलोनियों में काम करने के लिए था, जब उसने काम नहीं किया तो उस पर मैने आलोट थाने पर प्रकरण दर्ज करवाया, चुुंकी वह भाजपा नेता है, इसलिए मुझ पर अर्नगल आरोप लगा रहे है। मै आज भी अपनी बात पर कायम हूं, यदि भाजपा और विधायक मुझ पर लगाए आरोप सिद्ध कर देती है तो मैं चुनाव नहीं लडुंगा।  

हाई कोर्ट ने जिला प्रशासन को कार्रवाई से भटका माना और याचिका रद्द करने का आदेश दे दिया 

न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर ने 26 अक्टुबर को दायर याचिका संख्या 26479 जो कि वीरेन्द्रसिंह पिता स्व. अजीतसिंह सोलंकी ने अपने अभिभाषक वैभव भागवत शासकीय अधिवक्त के माध्यम से न्यायालय में दायर की थी। जिसमें बताया कि मध्यप्रदेश राज्य जिला मजिस्ट्रेट के माध्यम से भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत धारा 5(ए) और 5(बी) के तहत दिनांक 09.09.2021 को मध्यप्रदेश राज्य सुरक्षा अधिनियम 1990 के तहत निर्वासन की कार्रवाई को लेकर लंबीत 6 मामलो को लेकर कारण बताओं सूचना पत्र जारी किया था। जिसमें वीरेन्द्रङ्क्षसह ने 01.01.2021 को प्राधिकरण के समक्ष उपस्थित होकर 10.10.2021को अपना जवाब प्रस्तुत किया, तदोपरांत 19.11.2021 के लिए मामले को रखा गया। जिस तारिख को आदेश रखा था, उसकी तारिख याचिकाकर्ता को नहीं दी गई, जिस पर याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में उक्त नोटिस को रद्द करने की याचिका दायर की थी।

न्यायालय ने मामले में सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के आधार पर विवादित आदेश की वैधता का परीक्षण करने पर यह स्पष्ट रुप से पाया कि जिला मजिस्ट्रेट का आदेश त्रुटिपूर्ण है, इसे बरकरार नहीं रखा जा सकता है क्यों इस आदेश के जारी होने के बाद इसे करीब दो साल तक लंबित रखा गया, आदेश पारित होने में अत्यधिक देरी हुई है। जिसके कारण इसकी प्रभावशीलता कम हो गई है। न्यायाधीश ने अपने आदेश में लिखा कि न्यायालय द्वारा दिए गए पूर्वोक्त निर्णय की कसौटी पर वर्तमान मामले के तथ्यों का परीक्षण किया तो यह पाया कि 09.09.2021 को कारण बताओं सूचना पत्र किया जिसमें 01.10.2021 को याचिकाकर्ता ने उपस्थित होकर 10.10.2021को अपना जवाब भी पेश कर दिया था, लेकिन यही नोटिस पुन: एक अलग तारिख 11.10.2023 को फिर से वही कारण बताओं सूचना पत्र जारी करते हुए जिला मजिस्ट्रेट उक्त कार्रवाही से भटक गए और केवल दो साल बाद उपरोक्त मामले को केवल पुर्नर्जीवित करने की दृ़ष्टि से उक्त मामले को ताजा करने के लिए 11.10.2023  को यह नोटिस जारी किया है।

नोटिस में वर्णित अंतिम अपराध किए जाने के डेढ़ साल बाद आदेश पारित किया गया था। जिला मजिस्ट्रेट को इस आदेश पारित करने के निष्कर्ष तक पहुंचने में आठ महिने लग गए। वहीं 09.09.2021 में वर्णित अपराधों के बाद नवीन आदेश दिनांक 11.10.2023 में कोई नया अपराध नहीं जुड़ा है। ऐसे मे जिला मजिस्ट्रेट के निर्वासन संबधि आदेश को शब्दश: 11.10.2023 को जारी किए गए आदेश को रद्द करने में कोई हिचकिचाहट नहीं है। ऐसे में 2021 के ही नोटिस को पुन: 2023 में जारी किए जाने के मामले में याचिकाकर्ता वीरेन्द्रसिंह सोलंकी द्वारा हाईकोर्ट में निर्वासन आदेश को रद्द करने की याचिका को स्वीकार करते हुए आदेश को रद्द करने का निर्णय 26.10.2023 को जारी किया गया।

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