राजस्थान

विवाहिता के हाथों की मेहंदी का रंग फीका भी नहीं पड़ा : अभागी को मिला सिर्फ नो दिन का ससुराल : कमबख्त विधाता को यही मंजूर था

राजीव श्रीवास्तव
विवाहिता के हाथों की मेहंदी का रंग फीका भी नहीं पड़ा : अभागी को मिला सिर्फ नो दिन का ससुराल : कमबख्त विधाता को यही मंजूर था
विवाहिता के हाथों की मेहंदी का रंग फीका भी नहीं पड़ा : अभागी को मिला सिर्फ नो दिन का ससुराल : कमबख्त विधाता को यही मंजूर था

अलवर.

भारतीय कल्चर में रची बसी युवती का शादी को लेकर विशेष आत्मीय क्रेज होता है।प्रत्येक भारतीय युवती को ज्ञान है कि एक समय ऐसा आएगा कि बाबुल का घर छोड़ने के बाद उसका अपना घर परिवार होगा और सजना है सजना के लिए...!

दरअसल महान होती है, ऐसी भारतीय युवतियां जो शादी से पहले बाबुल के घर के लिए जीती है, इसके बाद अनजान को समर्पित होकर तमाम बाधाओं को पार करते हुए उसी की चार दीवारी में अंतिम सांस लेती है. हर परिस्थितियों में अपने परिवार को सिर्फ खुश रखने के लिए स्ट्रगल करती है. लेकिन चेहरे पर बराबर खुशी झलकती रहती है. युवती से बनी महिला का उस अदृश्य शक्ति में अटूट विश्वास उसे निर्णय लेने के काबिल बना देता है. मंगलवार और शनिवार को शाकाहारी बनने वाले ध्यान दें. नारी का सम्मान महत्वपूर्ण है. दोहरी जिंदगी जीने वाले लोग कभी सन्तुष्ठ नहीं हो सकते है खैर...!

अलवर जिले में एक युवती की 10 मई 24 को शादी हुई. वह अपने बाबुल के घर की तमाम खुशियों को ओझल कर एक नई जिंदगी की शुरुआत करने के लिए पति के घर आ गई. नवविवाहिता अपने पति के साथ शुक्रवार को बाइक पर सवार होकर पीहर जा रही थी. रास्ते में बाइक के ब्रेकर पर उछल कर गिरने से नवविवाहिता की मौके पर ही मौत हो गई. शादी के सिर्फ 9 दिन बीतने के बाद नवविवाहिता की मौत पर दोनों घरों में मातम छा गया.

कमबख्त हो सकता है, नवविवाहिता ससुराल में नो दिन रहने के बाद ससुराल के सदस्यों की मानसिकता, व्यवहार सहित अन्य जानकारी शेयर करने विशेष कर अपनी माँ से दिल की बातें करने प्रत्येक नवविवाहिता की तरह ही अपने पीहर जा रही हो, लेकिन विधाता को यही मंजूर था. अफसोस विधाता ने शायद उसे सिर्फ नो दिन के लिए ही ससुराल भेजा था.

दुःखद,अति दुःखद....सूट बूट में जबरन आधुनिक बनने का ढोंग करने वाले आधुनिक की चकाचौंध में रहने वाले लोग वास्तविक आधुनिक बनने का प्रयास करें और बेटा-बेटी में फर्क की मानसिकता को दूर करें. कालू लाल की माई भी कैलाश की माँ की बजाए ललिता की माईं कहलवाने में गर्व महसूस करें.

राजीव श्रीवास्तव

दैनिक अलवर न्यूज

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