राजस्थान

मेनारिया ब्राह्मणों ने उठाई थी तलवार ज़मराबीज़ के दिन

sunil paliwal-Anil Bagora
मेनारिया ब्राह्मणों ने उठाई थी तलवार ज़मराबीज़ के दिन
मेनारिया ब्राह्मणों ने उठाई थी तलवार ज़मराबीज़ के दिन

मेनार. “जमराबीज” मेनार में एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व रखने वाला दिन है. यह दिन विशेष रूप से मेनारिया ब्राह्मणों द्वारा मनाया जाता है, जो एक महत्वपूर्ण युद्ध और विजय के प्रतीक के रूप में प्रसिद्ध है. यह घटना विक्रम संवत 1657 (सन् 1600) में हुई, जब होली के दूसरे दिन, यानी जमराबीज पर, मेनारिया ब्राह्मणों ने मुगलों की एक क्रूर चौकी को समाप्त करने के लिए साहसिक कदम उठाया.

मेनार गांव में मुगलों की चौकी स्थापित थी, जिसका सूबेदार ग्रामीणों को परेशान करता था. इस स्थिति से तंग आकर, मेनारिया ब्राह्मणों ने एकजुट होकर मुगलों पर हमला किया और उनकी सेना को नष्ट कर दिया. इस वीरता से प्रभावित होकर महाराणा अमर सिंह ने मेनारिया समाज को विशेष सम्मान प्रदान किया. उन्होंने उन्हें लाल जाजम, रणबांकुरा ढोल, सिर पर कलंकी पहनने की मान्यता दी और मेवाड़ की 17वीं उमराव की उपाधि दी.

इस प्रकार, जमराबीज का दिन मेनारिया समाज के लिए शौर्य और विजय का प्रतीक बन गया और इसे हर साल इस घटना की याद में मनाया जाता है. यह दिन मेनार और मेवाड़ के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में प्रसिद्ध है, जो साहस और संघर्ष की प्रेरणा देता है. मान्यता दी और मेवाड़ की 17वीं उमराव की उपाधि दी.

होली पर गरजती तोप और बरसती गोलियां, 450 साल पुरानी परंपरा आज भी निभा रहा यह समाज

(संजय व्यास) रंगों के इस त्योहार होली को अनूठे अंदाज में मनाया गया. राजस्थान में एक ऐसी भी जगह है जहां बंदूकों और तोप की गर्जना के बीच होली के बाद जमरा बीज का त्यौहार मनाया जाता है. मेनारिया ब्राह्मण समाज के लोग बीते 450 वर्षों से कुछ इसी अंदाज से होली का त्यौहार मना रहे हैं. 

राजस्थान में एक ऐसी भी जगह है जहां बंदूकों और तोप की गर्जना के बीच आतिशबाजी के साथ होली के बाद त्यौहार मनाया जाता है. यह नजारा उदयपुर के मेनार गांव में देखने को मिलता है. राजा महाराजाओं के रियासत काल से चली आ रही यह परंपरा आज भी मेनारिया ब्राह्मण समाज के लोग बदस्तूर निभा रहे हैं.

इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग मेनार गांव पहुंचते हैं. इस दौरान मेनारिया ब्राह्मण समाज के 52 गांवों के लोग पंच मेवाड़ की पारंपरिक धोती, (अंगरखी)झब्बा और पगड़ी पहनते हैं. मान्यता है कि महाराणा प्रताप के पिताजी उदय सिंह के समय मेनार गांव से आगे मुगलों की एक चौकी हुआ करती थी. मुगलों की इस चौकी से मेवाड़ साम्राज्य की सुरक्षा को खतरा था. मेवाड़ की रक्षा करने के लिए मेनारिया ब्राह्मण समाज के लोग रणबांकुरे बन कर मुगलों की चौकी पर धावा बोला और उसे पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया था. मेनारिया समाज के लोगों ने अपने कुशल रणनीति से मेवाड़ राज्य की रक्षा की थी इस हमले में मेवाड़ की रक्षा में समाज के कुछ लोग भी शहीद हुए. उसके बाद से ही समाज के लोग मुगल चौकी पर अपनी जीत के जश्न को आज भी उसी अंदाज के साथ मना रहे हैं.

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