इंदौर
मेडिकल कॉलेज बिक़ता हैं, बोलो खरीदोगे क्या..? : मेडिकल कॉलेज की फर्जी मान्यता दिलाने का भदौरिया देखते ही देखते बन गया मास्टरमाइंड
नितिनमोहन शर्मा
फर्जी मान्यता : बस चलाते, होटल चलाते, शराब बेचते बेचते मेडिकल कॉलेज चलाने लगा भदौरिया
भागा भागा फ़िर रहा अब भदौरिया
- 30-40 बरस पहले आया इंदौर भदौरिया, देखते ही देखगे खड़ा कर लिया शहर में रसूख
- राजनीतिक प्रश्रय व बिरादरी के दम पर दादागिरी, गुंडागर्दी का लेबल भी लगा हुआ हैं भदौरिया पर
- फर्जी मान्यता में करोड़ों का घूसखोर निकला भदौरिया, अब सीबीआई की राडार पर
- जिससे पैसा लिया, उसका क़भी लौटाया नही, कर्मचारियों का भी कर रहा भरपूर शोषण
नितिनमोहन शर्मा
इंदौर वाकई बड़ा ही भोला भाला शहर हैं। यहां के मूल बाशिंदे तो वैसे ' पनप ' ही नही पाए, जैसे ' आयातित इन्दौरी ' पनपे। मेहनत औऱ पुरुषार्थ के दम पर ऊँचाई पाने वालों का अहिल्या नगरी ने वैसे ही स्वागत किया, जैसे मायानगरी मुम्बई करती हैं। लेक़िन इन्ही ' आयातित इन्दौरी ' में कुछ बड़े ' कलाकार ' भी बनकर निकले।
इंडेक्स मेडिकल कॉलेज, अमलतास होटल व ट्रैवल्स कम्पनी का मालिक भदौरिया उनमें से एक निकला। ये शहर उन्हें बड़ी इज़्ज़त से देखता था लेक़िन अब इन्ही भदौरिया ने न सिर्फ़ अपना व अपने समूह पर बल्कि इंदौर के माथे पर कलंक लगा दिया। कलंक भी सबसे नोबल माने जाने वाले मेडिकल पेशे से जुड़ा हैं।
मेडिकल कॉलेज की फर्जी मान्यता व उससे करोड़ो-अरबों का खेल के देशभर में फैले जाल व मास्टरमाइंड में भदौरिया भी मुख्य क़िरदार निकले। सीबीआई देशभर में फैले इस रैकेट का भंडाफोड़ कर रही हैं ऒर छापे पर छापे मार रही है। अब एक बार फ़िर इंदौर का नाम बदनाम हो रहा है और वह भी इस ' आयातित कलाकार ' के कारण।
इंदौर वाकई ' जादूगरों ' का शहर हो गया हैं। अब सुरेश भदौरिया को ही देख लो। ये शख़्स ग्वालियर-चंबल बेल्ट से इंदौर आया। ज़्यादा समय नही हुआ। महज़ 30-35 बरस। लेक़िन इन्ही तीन दशकों में उसने इस शहर में अपना रसूख क़ायम कर लिया। रसूख भी ऐसा जैसा कभी ' चंबल के डकैतों ' का रहा। कोई कुछ बोल नही सकता।
चाहे भदौरिया कुछ भी गड़बड़ कर ले। सत्ता के साथ साथ बिरादरी के नाम पर क्या कांग्रेस, क्या भाजपा, सबकों अपनी जेब मे रख लिया। जो आदमी इंदौर में बस चलाने आया था, वह देखते ही देखते पहले ट्रेवल्स कम्पनी खड़ी कर लेता हैं। फ़िर शराब के धंधे में उतर जाता हैं।
होटल खड़ी कर लेता हैं। वह भी आज के बीआरटीएस औऱ कल के बॉम्बे-आगरा राजमार्ग पर। सब कुछ फ़टाफ़ट। ये बिना राजनीतिक संरक्षण के हो सकता हैं? नही न? तभी तो बस चलाने व शराब बेचने वाला एकाएक 'मेडिकल माफिया' भी हो जाता हैं। खुद का मेडिकल कॉलेज ही खोल लेता हैं। 'मेडिकल माफिया' भी ऐसा कि आज इंदौर ही नही, पुरा देश इसके कारनामें को आंखे फाड़े देख, पढ़ व सुन रहा हैं।
मामला मेडिकल कॉलेज की फर्जी मान्यता से जुड़ा हैं। सुरेश भदौरिया इस खेल का अन्य के साथ मास्टरमाइंड निकला। झक सफ़ेद रंग को ' भदौरिया ग्रुप ' की पहचान बनाने वाला भदौरिया स्वयम काली करतूतों का बादशाह निकला। ये इंदौर सुरेश भदौरिया के समक्ष न जाने क्यो नतमस्तक हो गया, समझ से परे हैं। जबकि इस दौरान उसके एक नही अनेक कारनामें सड़क तक आये लेक़िन मज़ाल हैं उसके रसूख में कोई कमी आई।
बल्कि हर कारनामें के बाद रसूख में उत्तरोत्तर बढ़ोतरी ही हुई। अपने अंचल की साख व धाख को दिखा ये शख़्स मालवा के इस शांत, शालीन व संस्कारित शहर में दो नाली बंदूक का ज़ोर दिखाने लगा। अपने आसपास व कार्यस्थल पर दो नाली धारी की फ़ौज खड़ी कर देखते ही देखते भदौरिया ने इंदौर में ट्रेवल्स, शराब, होटल व मेडिकल कॉलेज तक का सफ़र तय कर लिया। अब यर शख्श देश के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज मान्यता के फर्जीवाडे घोटाले से जेआ जुड़ा।
सीबीआई ने देशभर में जब इस कारस्तानी पर छापे मारे तो भदौरिया भी घोटाले के मुख्य आरोपियों में से एक निकला। सीबीआई ने इस रैकेट की परतें खोली तो पता चला भदौरिया का देश के स्वास्थ्य मंत्रालय, राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग में तगड़ा भ्रष्टाचार का नेटवर्क हैं। इस नेटवर्क के ज़रिए इस इंसान ने निजी मेडिकल कॉलेज को एक तरह से ' बिकाऊ ' बना दिया।
मेडिकल कॉलेज बिक़ता हैं, बोलों खरीदोगे क्या..?' की तर्ज़ पर देश मे ये घोटाला सामने आया हैं। सीबीआई एफआईआर में माना है कि भदौरिया केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय में पैठ जमाकर राष्ट्रीय स्तर पर फर्जी मान्यता का बड़ा रैकेट चला रहा था। रिश्वत लेकर मेडिकल कालेजों की मनमाफिक मान्यता दिलाने के मामले में सीबीआई ने इंडेक्स मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन सुरेश भदौरिया सहित 35 लोगो पर धोखाधड़ी का केस दर्ज किया हैं।
सीबीआई ने माना हैं कि भदौरिया फर्जी तरीके से कालेजों को मान्यता दिलाने व रिन्यू कराने में सक्रिय भूमिका निभा रहा था। इसके बदले मोटी दलाली भी वसूल रहा था। जांच एजेंसी ने एफआईआर में इसका जिक्र खासतौर से किया हैं। भदौरिया गोपनीय जानकारियां, जैसे निरीक्षण दल गठित होना, उसमे सदस्य कौन कौन है, टीमें कब दौरा करेगी जैसे डिटेल देता था। 30 जून को हुई एफआईआर के बाद से ही भदौरिया गायब हैं और वह भागा भागा फ़िर रहा हैं।
ऐसा कोई सगा नही, जिसकों ठगा नही, कर्मचारी भी दुःखी
भदौरिया के विषय मे बताया जाता है कि इसने अनेक लोगो को जमकर ' टोपी ' पहनाई। जिससे पैसा लिया, उसको कभी लौटाया नही। पैसा भी ज्यादातर दो नंबर की कमाई वालो का लिया। फ़िर अपने रसूख के दम पर हाथ खड़े कर दिये। चूंकि लेनदेन ' दो नम्बर का था, लिहाज़ा देनदार भी मन मसोसकर रह गए। ये जानकारी भी अब सामने आ रही हैं भदौरिया के साम्राज्य से जुड़े कर्मचारियों का भी खूब शोषण हो रहा है।
न वक़्त पर उन्हें मेहनताना मिल रहा औऱ न कर्मचारी हित से जुड़ी अन्य जरूरी सुविधाओ का कोई लाभ दिया जा रहा हैं। ' आतंक ' के दम पर कर्मचारियों का भी मुंह खोलना गुनाह हो गया हैं। जांच तंत्र अगर जांच करे तो कर्मचारियों के शोषण का भी कारनामे का ख़ुलासा होना तय है।