राजस्थान
हल्दीघाटी के मूल रणक्षेत्र की उपेक्षा कर समारोह की कवायद!
कमल पालीवालखमनोर। (कमल पालीवाल) वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की समर स्थली हल्दीघाटी की 400वी युद्ध तिथि पर पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी के 21 जून 1976 को आने के बाद हल्दीघाटी बरसों से राजनैतिक व प्रशासनिक दृष्टि से उपेक्षा की शिकार रही है। महाराणा प्रताप जयंती समारोह 7 जून को होने वाले भव्य आयोजन में मुख्यमंत्री सहित केंद्रीय रक्षामंत्री के आने खबर से जहाँ राजनैतिक हल्कों में वर्तमान तक हुए विकास पर चर्चा है वही आम जनता में भी सरकार से कुछ उम्मीद है।
सूत्रों के अनुसार राष्ट्रीय स्मारक पर पुष्पांजलि के बाद अतिथियों का काफिला सीधे समारोह स्थल पर जायेगा। रणधरा रक्त तलाई स्थित ग्वालियर नरेश रामशाह तंवर,उनके पुत्र शालीवान ,झाला मान,हाकिम खान सूर व सतियों की स्मृति में बनी छतरियों पर पुष्पांजलि हेतु विशिष्ट अतिथियों के आने की सम्भावना कम नजर आ रही है।
हल्दीघाटी के ग्रामीण पर्यटन विकास हेतु निःसंदेह कुछ अधिकारी व नेता अपवाद हो सकते है लेकिन विगत दशक में अधिकतर बलीचा की दुकान को प्रचारित प्रोत्साहित करते नजर आते है।स्वाभिमानी धरा पर अब हालात यह है कि मुख्य रणधरा हल्दीघाटी स्थित दर्रे में अव्वल स्मारक बन नहीं सका और जो बना उसका स्मृति संस्थान ने उचित सञ्चालन नहीं कर पूंजीवाद की भेंट चढ़ा दिया। सरकार ने मुख्य रक्त ताल को ही पुरातत्व विभाग में सौप कर भुला दिया है। ग्रामीण पर्यटन के विकास हेतु 2001 में उदयपुर के दरबार हॉल में फिक्की व यूसीसीआई के सहयोग से हुए कला ,पर्यटन व संस्कृति के सामूहिक मंथन का लाभ भी हल्दीघाटी को नहीं मिल सका। रक्त तलाई को प्रचार प्रसार के अभाव में मुख्य धारा से वंचित रखा गया है।
बलीचा में निजी प्रदर्शन केंद्र का 2003 में राज्यपाल द्वारा उदघाटन हो जाने से प्रशासनिक व राजनैतिक स्तर पर हल्दीघाटी की परिभाषा ही बदल गई है। यहाँ कि मूल प्रस्तावित योजनाओं को प्रभावित करने वाले निजी संस्थान के प्रति सहानुभूति की वजह कोई भी रही हो लेकिन हल्दीघाटी के लिए नुकसानदायक साबित हो रही है।
रक्त तलाई खमनोर तहसील में गांव के मध्य स्तिथ है जहाँ मुख्य सड़क से जानकारी के अभाव में पहुँच पाना मुश्किल है। पूर्व में पर्यटन विभाग व पंचायत समिति द्वारा बोर्ड लगा कर मुख्य रण स्थल रक्त तलाई को प्रचारित करने के प्रयास किये गए,जो रखरखाव के अभाव में सड़क किनारे क्षतिग्रस्त हो गिर चुके है व अन्य के प्रचार कार्य आ रहे है। ग्रामीणों का मानना है कि महाराणा प्रताप जयंती पर केंद्रीय नेताओं की यात्रा को ध्यान में रख कर पर्यटन विभाग व पुरातत्व विभाग यदि बस स्टैंड मुख्य प्रताप तिराहे पर बोर्ड लगाता है तो उम्मीद है कि इन मुख्य स्थलों तक विशिष्ट अतिथियों के साथ आम पर्यटक नमन करने पहुँच सके।