नाथद्वारा
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर श्रीनाथजी-द्वारकाधीश प्रभु को 21 तोपों से देंगे सलामी
महावीर व्यास, नरेन्द्र पालीवालनाथद्वारा। जग प्रसिद्ध नाथद्वारा के श्रीनाथजी मंदिर व कांकरोली के श्री द्वारकाधीश मंदिर में वैष्णव परंपरा के तहत 15 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाएगा। 15 अगस्त रात 12 बजे नाथद्वारा के रिसाला चैक में 21 तोपों से सलामी दी जाएगी, जबकि कांकरोली में सुरक्षाकर्मी बंदूकों से हवाई फायर कर सलामी देंगे। यह महोत्सव मेवाड़ ही नहीं, बल्कि संपूर्ण देश में अनूठा है। इसे देखने के लिए गुजरात, महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश से बड़ी तादाद में श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला शुरू हो गया। इसके लिए नाथद्वारा व कांकरोली की होटल व धर्मशाला में श्रद्धालुओं ने तीन से चार दिन ठहरने के लिए अग्रिम बुकिंग करवा दी गई है। नाथद्वारा व कांकरोली में भक्तों के द्वारा तैयारियां जोरों से की जा रही है, वही पुलिस प्रशासन चाकचैबंद व्यवस्था करने में लगा हुआ है।
गूंजे श्रीकृष्ण कन्हैया के जयकारें
नाथद्वारा के श्रीनाथजी व कांकरोली के श्री द्वारकाधीश मंदिर में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर पुष्टिमार्गीय परंपरा की झलक देखने को मिलेगी। दर्शन के लिए आने वाले हर श्रद्धालु की जुबां पर श्रीकृष्ण कन्हैयालाल के जयकारें ही गूंजते रहेंगे। श्री कृष्ण जन्म के इस अनूठा आयोजन में हजारों लोग साक्षी बनेंगे।
नन्द महोत्सव मनेगा 16 को
नाथद्वारा और राजसमंद के दोनों ही मंदिरों में 16 अगस्त को नन्द महोत्सव मनाया जाएगा। इस दिन श्री कृष्ण व श्री द्वारकाधीश प्रभु को दूध व दही का छिडकाव कर रिझाया जाएगा। इसको लेकर श्रीनाथजी मंदिर मंडल व श्री द्वारकरकाधीश मंदिर प्रशासन के साथ ही जिला प्रशासन व पुलिस महकमे ने भी कानून एवं शांति व्यवस्था के पु ता प्रबंध कर लिए हैं। श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप को श्रीजी के सन्मुख पलने में झुलाया जाएगा व छठी पूजन की रस्म पर परम्पुरानुसार की जाएगी।
पुरोहित सुनाएंगे श्रीकृष्ण की जन्मकुंडली
श्रीनाथजी मन्दिर में जन्माष्टमी पर राजपुरोहित द्वारा सुबह कृष्णावतार को लेकर श्रीकृृष्ण की जन्मकुण्डली का वाचन करेंगे। इनके साथ, घोड़े, ऊंट, नक्कारे, श्रीनाथ बैण्ड, बैण्ड्स, भजन मण्डलियां एवं पर परागत नक्कारा-निशान के साथ सुखपाल में श्रीकृष्ण की बाल स्वरूप की छवि पधराई जाकर शोभायात्रा निकाली जाएगी।
प्रशासन ने ली बैठक
तैयारी बैठक में शहर में सफाई, जरूरत अनुसार रोड लाइटें लगवाने, मंदिर के परिक्रमा मार्ग में जनरेटर, 24 घंटे विद्युतकर्मी तैनात करने पर विचार-विमर्श किया गया। इस दौरान सर्वश्री मुख्य निष्पादन अधिकारी आचार्य, एसडीएम निशा, डीएसपी कानसिंह भाटी, थाना प्रभारी महिपालसिंह सिसोदिया, देवस्थान विभाग उदयपुर के नितिन नागर, पीएमओ डॉ बीपी जैन, अनिल जोशी, मंदिर के कमांडिंग रामसिंह चुंडावत, शंभूसिंह, फतहसिहं चूंडावत थे।
नाथद्वारा व श्रीनाथजी का इतिहास
भारत के मुगलशासक औरंगजेब के शासन काल में हिंदू मंदिरों को नष्ट करने के भय से श्रीकृष्ण विग्रह श्रीनाथजी को सुरक्षा की दृष्टि से ब्रज से विहार कराया गया। विक्रम संवत 1726 अश्विन शुक्ल 15 तदनुसार 10 अक्टूबर 1669 ईस्वी को प्रभु ने ब्रज से विहार किया। विक्रम संवत 1728 कार्ति शुक्ल पूर्णिमा के दिन प्रभु लाव लश्कर के साथ मेवाड पहुंचे। महाराणा राजसिंह ने प्रभु की आगवानी की, राजनगर से आगे तत्कालीन सिंहाड गांव में पीपल के नीचे रात्रि विश्राम हुआ, दूसरे दिन सुबह प्रस्थान के समय रथ का पहिया धंस गया। ज्योतिषियों ने कहा प्रभु यहां विराजना चाहते हैं। राणा की आज्ञा से देलवाडा नरेश ने महाप्रभु हरिरायजी की देखरेख में छोटा सा मंदिर बनवा कर आसपास की जमीन पट्टे पर दी गई। पुष्टिमार्गीय विधिविधान से विक्रम संवत 1728 फाल्गुन कृष्ण सप्तमी 20 फरवरी 1672 शनिवार को प्रभु श्रीनाथजी पाट पर बिराजे। श्रीजी के पाट पर बिराजने के बाद ही शहर का नाम नाथद्वारा पडा।
श्री नाथ जी में विश्व प्रसिद्ध श्री नाथ जी के दर्शन कर सकते हैं।
दर्शन की अनुसूची यहाँ है। यह बदली जा सकती है ।
- मंगला 5.15 AM to 6.00 AM
- श्रृंगार 7.15 AM to 7.30 AM
- राजभोग 11.30 AM to 12.15 PM
- उत्थापन 3.45 PM to 4.00PM
- भोग आरती 5.15 PM to 6.00 PM
- शयन 6.45 PM to 7.15 PM
द्वारिकाधीश मदिंर कांकरोली का इतिहास
द्वारिकाधीश मदिंर कांकरोली में राजसमंद झील के किनारे पाल पर स्थित है ! यह मदिंर बहुत ही प्राचीन मदिंर है और वेष्णवजनों को खास तौर पर प्रिय है । दूर दूर से खास कर गुजरात और महाराष्ट्र से दर्शनार्थी यहां द्वारिकाधीश प्रभु के दिव्य दर्शन हेतू यहां आते हैं । वाड के चार धाम में से एक द्वारिकाधीश मदिंर भी आता हे, प्रभु द्वारिकाधीश काफी समय पुर्व संवत 1726-27 में यहां ब्रज से कांकरोली पधारे थे । कहा जाता है कि उस समय भारत में बाहर से आए आक्रमणकारियों का सर्वत्र भय व्याप्त था। क्योंकि वे आक्रमणकारी न सिर्फ मंदिरों कि अतुल धन संपदा को लूट लेते थे बल्कि उन भव्य मंदिरों व मुर्तियों को भी तोड कर नष्ट कर देते थे । तब मेवाड यहां के पराक्रमी व निर्भीक राजाओं के लिये प्रसिद्ध था । सर्वप्रथम प्रभु द्वारिकाधीश को आसोटिया के समीप देवल मंगरी पर एक छोटे मंदिर में स्थापित किया गया, ततपश्चात उन्हें कांकरोली के ईस भव्य मंदिर में बडे उत्साह पूर्वक लाया गया ।प्रभु द्वारिकाधीश के रोजाना आठ मुख्य दर्शन होते हैं जिनमें मंगला, शंगार, ग्वाल, राजभोग, उत्थापन, भोग, आरती एवं शयन हैं । कुछ विशेष दर्शन भी होते है, जैसे कृष्ण जन्माष्टमी, दिपावली, होली, अन्नकूट एवं छप्पनभोग आदि । दर्शनों का समय विशेष मनोरथ के दर्शन या अलग अलग मौसम के अनुरुप बदला जाता है, द्वारिकाधीश मंदिर का एक बडा सा समयसूचक घंटा है जो हर एक घंटे में बजाया जाता है । राजसमन्द जिला मुख्यालय पर राजसमन्द झील के किनारे श्री द्वारकाधीश का मंदिर स्थापित है। इन्हें श्रीनाथजी के बड़े भाई के रूप में मान्यता मिली हुई है। इन्हें भी 17वीं शताब्दी में जब मुगल उत्तर भारत में धार्मिक स्थलों पर आक्रमण कर रहे थे उस समय यहां पर लाया गया। ईस्वीं 1722 में इन्हें मेवाड़ में स्थापित करने के बारे में विचार किया गया लेकिन उस समय मेवाड़ में भीषण अकाल की स्थिति होने से यहां नहीं लाया जा सका। बाद में 1726 में बृजभूषण लालजी इन्हें लेकर कांकरोली पहुंचे और देवल में स्थापित किया गया। बाद में अचानक हुए बाढ़ के हालात के कारण इन्हें आसोसिया में 1751 में मगरी पर स्थापित किया गया। बाद में 1776 में आमेट राव की हवेली का जीर्णाेद्वार करके गिरधरगढ़ बनाकर चेत्र कृष्णा नवमी के दिन वर्तमान मंदिर में स्थापित किया गया। द्वारकाधीश के वर्तमान मंदिर का निर्माण महाराणा राजसिंह ने करवाया था। पूजा एवं आरती आज भी वल्लभ सम्प्रदाय के रिति-रिवाज के अनुसार होती है। यहां पर वर्ष में तीन महोत्सव होते है जिनमें अन्नकूट, गोपाष्टमी एवं जन्माष्टमी शामिल है। इन दोनों अवसरों पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते है। मेवाड़ के अलावा मारवाड़, हाडौती एवं गुजरात से भी प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते है।
पालीवाल वाणी ब्यूरो-महावीर व्यास, नरेन्द्र पालीवाल
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