महाराष्ट्र

एकनाथ शिंदे की कुर्सी बरकरार, उद्धव ठाकरे गुट को लगा झटका : आदित्य ठाकरे ने कहा पार्टी सुप्रीम कोर्ट जाएगी महाराष्ट्र :

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एकनाथ शिंदे की कुर्सी बरकरार, उद्धव ठाकरे गुट को लगा झटका : आदित्य ठाकरे ने कहा पार्टी सुप्रीम कोर्ट जाएगी  महाराष्ट्र :
एकनाथ शिंदे की कुर्सी बरकरार, उद्धव ठाकरे गुट को लगा झटका : आदित्य ठाकरे ने कहा पार्टी सुप्रीम कोर्ट जाएगी महाराष्ट्र :

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मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और 15 अन्य विधायकों की अयोग्यता मामले पर 10 जनवरी 2024 बुधवार को उन्हें बड़ी राहत मिली. महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने शिंदे और उनके गुट के अन्य विधायकों की सदस्यता बरकरार रखी. नार्वेकर ने कहा कि उन्होंने ऐसा चुनाव आयोग के शिंदे की शिवसेना को असली शिवसेना के बताने के फैसले के आधार पर किया है.

महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर आज मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके गुट के विधायकों के खिलाफ अयोग्यता मामले में फैसला सुना रहे हैं. करीब 18 महीने पहले शिंदे समेत 39 विधायकों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत कर दी थी, जिसकी वजह से 57 साल पुरानी पार्टी शिवसेना में विभाजन हो गया था और महाविकास अघाड़ी सरकार गिर गई थी. इस घटना के बाद दोनों गुटों ने एक-दूसरे के विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग करते हुए याचिकाएं दायर की थीं. 

आदित्य ठाकरे ने स्पीकर पर उठाए सवाल

विधायकों की अयोग्यता मामले में फैसले से पहले आदित्य ठाकरे ने स्पीकर पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने पूछा कि आप किस संविधान का पालन करते हैं. नार्वेकर का मुख्यमंत्री से वर्षा बंगले पर मिलना वैसा ही है जैसे कोई न्यायाधीश अभियुक्त से मिलता है. महाराष्ट्र में ऐसा कभी नहीं हुआ. आज एक महत्वपूर्ण दिन है. देश के संविधान के मुताबिक अगर जाएंगे तो 40 गद्दारों को बाहर किया जाएगा. ये परिणाम पार्टी के लिए नहीं बल्कि देश के लिए महत्वपूर्ण है. नार्वेकर को अपने पद को बदनाम नहीं करना चाहिए बल्कि संविधान का पालन करना चाहिए. 

उद्धव ठाकरे गुट के लिए बड़ा झटका

उद्धव ठाकरे के पास एकनाथ शिंदे को पार्टी से हटाने का अधिकार नहीं था. ये अधिकार सिर्फ पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के पास है. यह फैसला उद्धव ठाकरे गुट के लिए बड़ा झटका है. इस फैसले पर उद्धव ठाकरे के बेटे और विधायक आदित्य ठाकरे ने कहा है कि उनकी पार्टी सुप्रीम कोर्ट जाएगी.

विधायकों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ विद्रोह

जून 2022 में एकनाथ शिंदे और कई अन्य विधायकों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ विद्रोह कर दिया था. इस कारण शिवसेना में विभाजन हो गया. फिर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अब शरद पवार की एनसीपी), शिवसेना (अब उद्धव ठाकरे की शिवसेना) और कांग्रेस की गठबंधन वाली यानी एमवीए की सरकार गिर गई थी. इसके बाद शिंदे और ठाकरे गुट ने दलबदल रोधी कानूनों के तहत एक-दूसरे के विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए याचिकाएं दायर की. सुप्रीम कोर्ट ने शिंदे और उनके विधायकों की अयोग्यता को लेकर फैसला सुनाने की समयसीमा 31 दिसंबर 2023 तय की, लेकिन कोर्ट ने हाल ही में अवधि को 10 दिन बढ़ाकर फैसला सुनाने के लिए 10 जनवरी 2024 की नयी तारीख तय की थी. 

विधानमंडल में बहुमत किसके पास था?

महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर ने कहा कि चुनाव आयोग के रिकॉर्ड में एकनाथ शिंदे गुट असली शिवसेना है।  नार्वेकर ने कहा कि शिवसेना का 1999 का संविधान ही मान्य है। उन्होंने कहा कि संविधान में हुआ संशोधन रिकॉर्ड में नहीं है। नार्वेकर ने आगे कहा कि मैंने चुनाव आयोग के रिकॉर्ड को ध्यान में रखकर फैसला लिया। उन्होंने कहा कि 21 जून, 2022 को हुआ उसे समझना होगा। नार्वेकर ने कहा कि शिवसेना में फैसले लेने के लिए सबसे बड़ी संस्था राष्ट्रीय कार्यकारिणी है।

फैसले की बड़ी बातें :

1. महाराष्ट्र राज्य विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि पार्टी के 2018 के संशोधित संविधान के अनुसार शिवसेना के नेतृत्व ढांचे पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि 2013 और 2019 में नेतृत्व चुनने के लिए शिवसेना में कोई चुनाव नहीं हुआ। इसका कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं।

2. शिवसेना (यूबीटी) को पहला बड़ा झटका। महाराष्ट्र राज्य विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने शिवसेना के संशोधित संविधान को मानने से इनकार कर दिया, लेकिन पुराने और असंशोधित संविधान के आधार पर ही आदेश देने का फैसला किया।

3. महाराष्ट्र राज्य विधानसभा ने कहा कि ईसीआई ने पार्टी के रूप में प्रस्तुत और स्वीकार किए गए संविधान पर विचार किया जाएगा, न कि हाल ही में 2018 में किए गए संशोधित संविधान पर। उन्होंने फैसला देते समय संशोधित संविधान पर विचार करने की शिवसेना (यूबीटी) की मांग को खारिज कर दिया।

4. महाराष्ट्र राज्य विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने अपने आदेश में कहा कि दोनों पक्षों को सुनने के बाद, यह स्पष्ट है कि संविधान और अन्य मुद्दों पर दोनों पक्षों के बीच कोई सहमति नहीं है। निर्विवाद संविधान माना जाएगा न कि 2018 में किया गया संशोधित संविधान। यह संविधाना 1999 का है।

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