मध्य प्रदेश
प्रतिशोध लेने के लिए ससुराल वालों पर दबाव बनाने और प्रताड़ित करने के इरादे से FIR लिखवाई : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने की FIR रद्द
Paliwalwaniग्वालियर : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ग्वालियर खंडपीठ ने हाल ही में एक पत्नी द्वारा अपने ससुराल वालों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा (आईपीसी) 498ए के तहत दर्ज करवाई गई एफआईआर को यह कहते हुए रद्द कर दिया है कि इसे 'प्रतिशोध लेने के लिए' और ससुराल वालों पर 'दबाव बनाने और उनको प्रताड़ित करने के इरादे से' दर्ज करवाया गया है.
जस्टिस आर.के. श्रीवास्तव सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर एक आवेदन पर विचार कर रहे थे, जिसमें याचिकाकर्ताओं ने अदालत से उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 498ए, 506, 34 के तहत दर्ज एफआईआर और उसके बाद शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने का निर्देश देने की मांग की थी।
आवेदकों के अनुसार, प्रतिवादी एक झगड़ालू महिला है जो शादी के बाद आवेदकों के परिवार के साथ समायोजन नहीं कर पाई। परिणामस्वरूप, आवेदक/पति ने तलाक के लिए एक आवेदन दायर किया था। प्रतिवादी के ससुर ने भी यह एफआईआर दर्ज करवाने से पहले उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 406, 504 के तहत अपराध के लिए शिकायत दर्ज करवाई थी। इसलिए, आवेदकों से बदला लेने के लिए, प्रतिवादी ने उनके खिलाफ यह एफआईआर दर्ज करवा दी। इसलिए, आवेदकों ने जोर देकर कहा, यह एफआईआर रद्द करने योग्य है। अपने तर्कों को मजबूत करने के लिए, आवेदकों ने कहकशां कौसर उर्फ सोनम व अन्य बनाम बिहार राज्य व अन्य के मामले में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गई टिप्पणियों का हवाला दिया।
इसके विपरीत, प्रतिवादी और राज्य ने प्रस्तुत किया कि आवेदकों और प्रतिवादी के बीच में लंबित अन्य कार्यवाही,उसके लिए आवेदकों द्वारा किए गए कथित अपराधों के लिए एफआईआर दर्ज करवाने में बाधा नहीं थी। उन्होंने जोर देकर कहा कि आईपीसी की धारा 498ए के तहत किया गया अपराध एक निरंतर अपराध है और वर्तमान मामले में कार्रवाई का कारण प्रतिवादी की शादी के बाद उत्पन्न हुआ क्योंकि उसके ससुराल वाले उसे दहेज की मांग करके परेशान कर रहे थे। अतः उन्होंने आवेदन को खारिज करने की प्रार्थना की।
दोनों पक्षों की दलीलें, रिकॉर्ड पर दस्तावेजों और प्रासंगिक मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा की टिप्पणियों पर विचार करते हुए, कोर्ट ने कहा कि वर्तमान आवेदन की अनुमति दी जानी चाहिए- आक्षेपित एफआईआर के साथ-साथ रिकॉर्ड पर उपलब्ध दस्तावेजों और माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित निर्णयों के आलोक में, ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ लगाए गए आरोप सामान्य और सर्वव्यापक हैं, इसलिए, आईपीसी की धारा 498ए के तहत उनके खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है... इस मामले में पूर्व में शिकायतकर्ता के पति ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत 13/03/2018 को एक याचिका दायर की थी और 27/09/2019 को शिकायतकर्ता के ससुर ने भी उसके खिलाफ एक शिकायत दर्ज करवाई थी। जहां बाद में, शिकायतकर्ता और उसके पति के बीच विचारों के अंतर के कारण सुलह की कार्यवाही सफल नहीं हो सकी थी।
शिकायतकर्ता द्वारा 01/08/2019 को दर्ज की गई वर्तमान एफआईआर कुछ भी नहीं है, बल्कि केवल प्रतिशोध लेने के लिए है,जो याचिकाकर्ताओं पर दबाव बनाने और उनको परेशान करने के लिए बदला लेने के इरादे से दर्ज करवाई गई है। कोर्ट ने आगे कहा- मामले के पूरे तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के साथ-साथ इस तथ्य पर भी विचार किया गया कि प्रतिवादी नंबर 2 ने बिना किसी तुकबंदी के स्वेच्छा से अपना वैवाहिक घर छोड़ दिया था और शिकायतकर्ता की ओर से आरोपित एफआईआर दर्ज करने से पहले अलग रहने का दोष भी उसी पर है। इसलिए दहेज की मांग या उत्पीड़न के विशिष्ट आरोप के अभाव में, आक्षेपित प्राथमिकी रद्द किए जाने योग्य है। उपरोक्त टिप्पणियों के साथ, न्यायालय ने आवेदकों के खिलाफ दर्ज आक्षेपित एफआईआर व उसके बाद शुरू की गई अन्य कार्यवाही को रद्द कर दिया और तदनुसार, आवेदन को अनुमति दे दी गई। केस का शीर्षक-आलोक लोधी व अन्य बनाम एमपी राज्य व अन्य