मध्य प्रदेश
मुख्य सूचना आयुक्त के लापरवाह रवैये के कारण याचिकाकर्ता को ₹40,000/- की क्षतिपूर्ति राशि देने का आदेश
paliwalwani
जबलपुर. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता राज्य सूचना आयोग के अवर सचिव द्वारा 27.10.2023 को जारी आदेश (परिशिष्ट P-1) से पीड़ित है, जिसमें 17.10.2023 को मुख्य सूचना आयुक्त द्वारा पारित आदेश की सूचना दी गई थी, जिसमें याचिकाकर्ता के आवेदन को अस्वीकार कर दिया गया था।
संक्षिप्त तथ्यों के अनुसार, यह याचिकाकर्ता द्वारा किया गया दूसरा मुकदमा है। पहले, उसने रिट याचिका संख्या 10768/2021 दायर की थी, जिसे 12.09.2023 को निपटाते हुए इस न्यायालय ने मामले को मुख्य सूचना आयुक्त के पास पुनः विचार हेतु भेज दिया था। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया था कि "पशुपालन निदेशालय" और "पशुपालन विभाग" में कोई अंतर नहीं है।
याचिकाकर्ता का तर्क है कि उसने 26.03.2019 को सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन प्रस्तुत किया था, जिसे उसी दिन प्राप्त भी कर लिया गया था। अधिनियम के अनुसार, 30 दिनों के भीतर जानकारी प्रदान की जानी चाहिए थी, लेकिन लोक सूचना अधिकारी ने ऐसा नहीं किया। अतः अधिनियम की धारा 7(6) के तहत जानकारी नि:शुल्क दी जानी चाहिए थी।
प्रतिवादी की ओर से श्री वी. एस. चौधरी ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता द्वारा 26.03.2019 को आवेदन दिया गया था, लेकिन यह 27.03.2019 को लोक सूचना अधिकारी के समक्ष रखा गया। अधिकारी ने 18.04.2019 को याचिकाकर्ता को ₹2,12,664/- की राशि जमा करने हेतु पत्र भेजा, जो 26.04.2019 को प्रेषित किया गया। उन्होंने धारा 7(3)(a) का हवाला देते हुए कहा कि शुल्क भुगतान की मांग और उसके निपटान की अवधि को 30 दिनों की गणना से बाहर रखा जाना चाहिए।
न्यायालय का विश्लेषण : न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि सूचना 30 दिनों के भीतर आवेदन की प्राप्ति की तिथि से प्रदान की जानी चाहिए, न कि लोक सूचना अधिकारी द्वारा आवेदन प्राप्त करने की तिथि से।
जहां तक धारा 7(3)(a) का प्रश्न है, यह स्पष्ट रूप से कहता है कि केवल शुल्क जमा करने के लिए प्रदान की गई अवधि को ही गणना से बाहर किया जा सकता है। लेकिन यदि शुल्क की मांग ही 30 दिनों के बाद भेजी जाती है, तो यह सूचना न देने के लिए एक वैध तर्क नहीं हो सकता।
इस मामले में, याचिकाकर्ता ने 26.03.2019 को आवेदन दिया, तो 25.04.2019 को 30 दिन पूरे हो चुके थे। लेकिन प्रतिवादी ने 26.04.2019 को पत्र भेजा, जो 30 दिन की सीमा के बाद था। अतः सूचना नि:शुल्क प्रदान की जानी चाहिए थी।
मुख्य सूचना आयुक्त का आदेश त्रुटिपूर्ण पाया गया, क्योंकि उन्होंने तथ्यों की समुचित जांच किए बिना निर्णय लिया। यह न्यायालय पाता है कि मुख्य सूचना आयुक्त ने सरकारी पक्ष का पक्षपातपूर्ण समर्थन किया और अपने वैधानिक कर्तव्य का निर्वहन नहीं किया।
आदेश :
मुख्य सूचना आयुक्त का आदेश निरस्त किया जाता है। लोक सूचना अधिकारी को आदेश दिया जाता है कि वे याचिकाकर्ता को 15 दिनों के भीतर नि:शुल्क जानकारी प्रदान करें। मुख्य सूचना आयुक्त के लापरवाह रवैये के कारण याचिकाकर्ता को ₹40,000/- की क्षतिपूर्ति राशि देने का आदेश दिया जाता है। यह राशि पहले सरकारी कोष से अदा की जाए और फिर दोषी अधिकारी से वसूली जाए।
राज्य सरकार को निर्देश दिया जाता है कि वह यह राशि याचिकाकर्ता को प्रदान करे। याचिका स्वीकार की जाती है और इसी के साथ निस्तारित की जाती है।
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय जबलपुर
माननीय श्री न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल
दिनांक: 5 मार्च, 2025
रिट याचिका संख्या: 29100/2023
नीरज निगम
बनाम
मध्यप्रदेश राज्य एवं अन्य
प्रतिनिधित्व:
याचिकाकर्ता की ओर से: श्री दिनेश कुमार उपाध्याय, अधिवक्ता
प्रतिवादी राज्य की ओर से: श्री जितेंद्र श्रीवास्तव, पैनल अधिवक्ता
प्रतिवादी संख्या 2 की ओर से: श्री वी. एस. चौधरी, अधिवक्ता