इंदौर
दर्शकों को गुदगुदी करता-'रिफण्ड'
मिर्ज़ा ज़ाहिद बेग़
इन्दौर. डीएव्हीव्ही आडिटोरियम इन्दौर में तीन दिवसीय अप्रतिम नाट्य समारोह के दूसरे दिन हास्य नाटक 'रिफण्ड' ने इन्दौर के रँगमंच प्रेमियों को सहज हास्य से गुदगुदा दिया.
रिफण्ड कहानी है डूडा नाम के एक महामूर्ख छात्र की. डूडा का मानना है कि उसे स्कूल में अच्छी शिक्षा नहीं मिली, उसे कुछ नहीं पढ़ाया गया. मास्टरों ने उस पर मेहनत नहीं कि इसलिए वह फैल हो गया और अपनी ज़िंदगी में नाक़ामयाब रहा. डूडा के एक पुराने मित्र और सहपाठी ने सलाह दी कि चूंकि यह स्कूल की लापरवाही है, अतः डूडा को स्कूल से अपनी फ़ीस वापसी की माँग करनी चाहिए.
लिहाज़ा एक दिन डूडा स्कूल छोड़ने के 10 साल बाद स्कूल में प्रिंसिपल के ऑफिस में आ धमकता है और प्रिंसिपल को कारण बताते हुए फ़ीस केलकुलेट कर तमाम फ़ीस वापस करने की माँग करता है, उसकी माँग सुनकर प्रिंसिपल के होश उड़ जाते हैं. वह फ़ौरन स्टॉफ की इमरजेंसी मीटिंग कॉल करता है.
सब मिल कर तय करते हैं कि उसे फ़ीस वापस नहीं की जाए क्योंकि यदि ऐसा किया गया तो सभी अनुत्तीर्ण पूर्व छात्र ऐसी ही माँग करेंगे. उन्होंने उसकी पुनः परीक्षा लेने और हर हाल में डूडा को हर सब्जेक्ट में पास करने का निर्णय लिया चाहे उसके उत्तर कितने भी मूर्खतापूर्ण क्यों न हों... तय हुआ की सब टीचर्स उन्हें अपने तर्कों से सही सिद्ध करेंगे.
अंततः हर विषय शिक्षक पुनः डूडा की परीक्षा लेते हैं और उटपटांग प्रश्न पूछते हैं. मूर्ख डूडा उनके ऊलजलूल उत्तर देता है फ़िर भी टीचर्स उन्हें मूर्खतापूर्ण तर्क देकर सही सिद्ध करते हैं और ए+ या ए++ अंक देकर डूडा को पास कर उसके द्वारा फ़ैल होने की हर क़ोशिश को नाक़ामयाब कर उसे बिना फ़ीस लौटाए भगा देते हैं.
इस प्रश्नोत्तरी में स्तरीय सहज हास्य उत्पन्न होता है. कलाकारों की भाव-भंगिमाओं और संवादों से दर्शकों का हँसते-हँसते पेट दुखने लगता है. फ्रिट्ज कारिन्थि के लिखे इस नाटक के संवादों को चुटीला रूप दिया है, डायरेक्टर सौरभ शर्मा ने. उनके संवाद स्कूल शिक्षा प्रणाली और शिक्षकों पर करारा प्रहार करते हैं.
घबराए हुए प्रिंसिपल की भूमिका निबाह रहे, आराध्य व्यास और छात्र डूडा के रूप में आदर्श वासनिक ने अपने आंगिक और वाचिक अभिनय से मंच लूट लिया. अन्य पात्रों के संवादों पर उन दोनों की बदलती भाव-भंगिमाओं की टाईमिंग लाज़वाब हो कर उत्कृष्ट हास्य पैदा कर रही थीं. गणित टीचर के रोल में मुकुंद जोशी ने भी साबित किया की वे क़माल के अभिनेता हैं. अक़्सर उन पर मलिका नाम की एक पूर्व टीचर की आत्मा सवार हो जाती थी उस समय उनका अभिनय देखते ही बनता था.
अन्य पात्रों में हिस्ट्री, फ़िजिक्स और चपरासी की भूमिका में क्रमशः तुषार, प्रकाश और अभिधान लोधी ने अपनी भूमिका को सार्थक किया. संवरे अभिनय और हास्यास्पद संवादों ने आडिटोरियम में मौज़ूद दर्शकों को अप्रैल की गर्मी में हास्य की शीतलता का अनुभव करा दिया. ऑफ द मंच प्रभावी प्रकाश संयोजन समर्थ जैन का और बैकग्राउंड म्यूज़िक सौरभ शर्मा का था. स्टेज सज्जा पलाश पाठक की थी.
स्वधर्म नाट्य समूह के इस प्ले में सौरभ शर्मा ने सिद्ध किया. द्विअर्थी अश्लील संवादों के बिना भी दर्शकों को क्वालिटी हास्य की दावत दी जा सकती है, भारतीय फिल्मों के संवाद राइटर्स और स्टैंडअप कॉमेडियन उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं.
नाट्य समीक्षक : मिर्ज़ा ज़ाहिद बेग़
M. 9907032732