इंदौर
गायक आलोक बाजपेयी ने शताब्दियों के लिए...मुकेश कार्यक्रम में दर्शकों को बनाया अपना मुरीद
sunil paliwal-Anil Bagora
100 से अधिक गीतों के बाद भी मुकेश के और गाने सुनने की प्यास बाक़ी रही
इंदौर. कल रात अभिनव कला समाज सभागार में मानों मुकेश के गीतों का पूरा महोत्सव था। शताब्दियों के लिए ... मुकेश' यह शहर में मुकेश के गीतों का अपनी तरह का पहला कार्यक्रम था।मुकेश जी के हर मूड के गीत को कमाल की भावप्रवणता और उन्हीं के अंदाज़ से सजे गायन से श्री आलोक बाजपेयी से दर्शकों को इस क़दर मंत्रमुग्ध किया कि रात दस बजे 105 वें गाने की प्रस्तुति के समय भी सभागार भरा हुआ था। मुकेश के गानों का सम्मोहन ऐसा कि दर्शक समय से पूर्व आ गए और हाउसफ़ुल के बाद जगह ना मिलने से कई दर्शकों को बाहर से सुनना पड़ा।
गायक श्री आलोक बाजपेयी ने अमर गायक मुकेश की पहली जन्म शताब्दी पर उन्हें शताधिक गीतों की प्रस्तुति से स्वरांजलि दी लेकिन मुकेश के गीतों के प्रति दीवानगी ऐसी है कि दर्शकों के कई पसंदीदा गीत फिर भी बचे रहे और फ़रमाइशें शेष रहीं। बिना किसी ब्रेक के लगभग नॉन स्टॉप इस कार्यक्रम में अधिकांश गानों में मुखड़े और एक अंतरे को लिया गया था।
एक गीत के रस में डूबे श्रोता कुछ ही पलों में दूसरा गीत सुनने लगते जो पहले ही गीत की तरह सुपरहिट गीत होता। इस तरह कार्यक्रम में रवानगी इतनी थी कि दर्शक बस बँधकर रह गए। श्री दीपेश जैन ने एक गाने से दूसरे गाने में बिना रुके जाने में अपनी सिद्धहस्तता दिखाई।
वहीं युगल गीतों में सुश्री निहाली चौहान ने युवा लता मंगेशकरजी की आवाज़ की बानगी पेश की। सूत्रधार करिश्मा तोंडे जी ने मुकेश जी पर अपने रिसर्च से ख़ासा प्रभावित किया। लेकिन इस आयोजन के असली नायक थे मुकेश जी स्वयं जिनके गीत, खचाखच भरे हॉल में मौजूद अधिकांश श्रोताओं को न सिर्फ़ याद थे बल्कि उनके दिल में बसे हुए थे और लगभग हर गीत पर दर्शक झूम उठते।
यहाँ ध्यान रखने लायक बात है कि मुकेश जी ने अपने सिर्फ़ 53 वर्ष के जीवन में कोई 1300 गीत गाए जिनमें आधे से अधिक आज भी सुपरहिट हैं। इस तरह हिट गानों के प्रतिशत में मुकेश साहब भारत ही नहीं पूरे विश्व में अव्वल हैं। इन्हीं मधुर गीतों को अपनी आवाज़ में मुकेश साहब को ढ़ालकर उनके अंदाज़ का जादू पैदा कर गायक आलोक बाजपेयी ने दर्शकों को अपना मुरीद बना लिया।
शहर के प्रिय कलाकार श्री विवेक ऋषि के असामयिक निधन के बाद इस कार्यक्रम में उन्हें सभी संगीत प्रेमियों ने दिल से याद करते हुए भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी। जब उन्हें समर्पित कर 'दुनिया से जाने वाले जाने चले जाते हैं कहाँ' गीत आलोक बाजपेयी ने गाया तब पूरा सभागार सोज़ में डूब गया और विवेक दादा के चित्र पर माल्यार्पण के समय देर तक तालियाँ बजीं।
आवारा हूँ, किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, सब कुछ सीखा हमने, इक प्यार का नग़मा है, सावन का महीना आदि गीतों पर पूरा हॉल ही साथ गाने लगा और अंतिम गीत जीना यहाँ मरना यहाँ पर सभी दर्शकों ने खड़े होकर मोबाइल की लाइटें जलाकर हाथ हिलाते कार्यक्रम का भावपूर्ण समापन किया।
कार्यक्रम के प्रथम चरण में अतिथियों समाजसेवी श्री अनमोल तिवारी, श्री कैलाश बिदासरिया एवं सभी कलाकारों का सम्मान खादी के अंग वस्त्र, सूत की माला एवं पुष्प गुच्छों से श्री हरेराम बाजपेयी एवं श्री सत्यकाम शास्त्री ने किया।
'शताब्दियों के लिए...मुकेश' का दूसरा भाग शीघ्र ही-दर्शकों की फ़रमाइशों के शेष रहने और स्थानाभाव से दर्शकों को परेशानी होने के परिप्रेक्ष्य में कार्यक्रम का दूसरा भाग और बड़े पैमाने पर आयोजित करने की घोषणा की गई जिसका दर्शकों ने करतल ध्वनि से स्वागत किया।