इंदौर

हीरे जैसी माँ-आपको दंडवत प्रणाम : माँ हीरा...बेटा लाखीना : नितिनमोहन शर्मा

नितिनमोहन शर्मा
हीरे जैसी माँ-आपको दंडवत प्रणाम : माँ हीरा...बेटा लाखीना :  नितिनमोहन शर्मा
हीरे जैसी माँ-आपको दंडवत प्रणाम : माँ हीरा...बेटा लाखीना : नितिनमोहन शर्मा
  •  जो किताबो में पड़ा, वो आंखों से देखा देश ने 

  •  पंतप्रधान का उत्कृष्ट उदाहरण, अंत्येष्टि के तुरंत बाद काम पर लौटे 

  •  पीएम का संघ प्रचारक का स्वरूप देखा देश ने, निजी दुःख से पहले राष्ट्र 

  •  अंतिम संस्कार का 'वीआईपी कल्चर' बिदा किया, नई कार्य सँस्कृति पेश 

 नितिनमोहन शर्मा...✍️ 

कितना अंतर्द्वंद्व चल रहा होगा उस शख्स के मन मस्तिष्क में...जब वो जलपाईगुड़ी के लिए वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखा रहा था? गौर से देखना फिर से उस वीडियो को। सदा चमकने वाला चेहरा, कैसा स्याह था। आंखों में नमी तो थी लेकिन उन्ही आंखों में एक संकल्प भी झलक रहा था। संकल्प दृढ़। कठोर। जो चेहरे से साफ झलक रहा था। जीवन मे जो सब कुछ था..उसका स्थाई बिछोह यू ही असहनीय। उस पर कर्तव्य पथ पर फिर लौटना। वो भी चंद घण्टो में। जेहन में कैसा झंझावात होगा? चीता की धधगति लपटें शांत भी नही होती है और काम पर लौटना..कितनी हिम्मत जुटाई होंगी? कल्पना भी कोई नही कर सकता।

  • पूरी दुनिया के लिए एक उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया

एक तरफ माँ। दूजी तरफ मातृभूमि। एक तरफ मातृत्व संग पुत्र का धर्म। दूसरी तरफ राष्ट्र और राष्ट्र धर्म। एक तरफ अंतिम संस्कार का बरसो से स्थापित 'वीआईपी कल्चर'। दूसरी तरफ औसत हिंदुस्तानी की अंतिम यात्रा का दृश्य। पर उस शख्श ने दोनो के बीच सामंजस्य-संतुलन न केवल कायम किया, बल्कि इस देश के लिए ही नही..पूरी दुनिया के लिए एक उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया। ऐसा साहसिक उदाहरण जो आज तक हम आप किताबो में पड़ा करते थे। किसी कालखंड में हुआ होगा ऐसा। पर इस दौर में ऐसा संभव है? नही न। सब ऐसा ही मानते ही नही, स्थापित भी है। लेकिन कल जो हिंदुस्तान में हुआ, उसने समूची दुनिया को फिर से ये अहसास कराया कि ये बदलते दौर का...बदला हुआ भारत है...!!

  • 100 बरस जीना कम नही होता लेकिन माँ तो माँ होती है न?

जब आप हम सोकर उठे तो उस ह्रदयविदारक खबर से सामना हुआ जिसने देश के पंतप्रधान नरेंद्र मोदी को अंदर तक तोड़ दिया। हीरे जैसी माँ हीरा बेन अब इस दुनिया मे नही रही। 100 बरस जीना कम नही होता लेकिन माँ तो माँ होती है न? किसी भी दौर में उसके बगेर जीवन की कल्पना ही दुष्कर है। माँ भी वो जो पंतप्रधान के जीवन का आदर्श और अभिमान थी। या यूं कहें कि 'नरेंद्र' की पूरी दुनिया। बताओ सिवाय 'हीरा बेन' के मोदी का किसी से कोई अनुराग अब तक नजर आया? 15 बरस गुजरात के ओर 8 बरस दिल्ली के सबने देखे। प्रधानमंत्री को सिवाय माँ के किसी अन्य के प्रति ऐसा प्रेम, स्नेह, दुलार, लाड़, आत्मीयता प्रदर्शित करते किसी ने देखा? भाई-भोजाइयो, भतीजा-भतीजी, भांजे-भांजियों तो दूर, जीवन संगिनी के प्रति भी सदैव निरपेक्ष भाव रहा। पूरी दुनिया मे सब कुछ माँ ही थी मोदीजी के लिए। 

  • अंतिम विदाई का पल पूरी दुनिया ने देखा

उस माँ का अंतिम विदाई का पल पूरी दुनिया ने देखा। आप हम सबको भी ये ही अहसास था कि मोदीजी की माँ है तो अंतिम संस्कार भी उसी लिहाज का होगा। प्रधानमंत्री का प्रोटोकॉल काम करेगा। देश विदेश से आते विशेष वीआईपी। विशेष बंदोबस्त। कई सीएम-राज्यपाल। कई मंत्री-संतरी। सांसद-विधायक। मिलो लम्बी अंतिम यात्रा। फूलों से सजा वाहन। चहुओर गूंजते जय जयकारे। हजारों की संख्या में अंतिम यात्रा में दौड़ते भागते लोग। फूलों से सजा श्मशान घाट। सुरक्षा घेरे में मुक्तिधाम। चंदन की लकड़ियों के गट्ठर की चीता। घी के दर्जनों डिब्बे। देशभर में लाइव प्रसारण। आदि-इत्यादि। ऐसे ही तो होती है न मेरे देश में ही नही, दुनिया मे 'वीवीआईपी कुनबे' से जुड़े व्यक्ति की अंतिम विदाई। 

  • जिसने ये दृश्य देखा, भौचक रह गया

पर ये क्या..? सामान्य सी बांस की अर्थी शैय्या। घास फूंस की बनी। पतले सूती कपडे से ढंकी। नाड़े से बंधी हुई। वैसी ही, जैसी आप हम लोगो मे गमी के वक्त बनती है। 'बैकुंठी' जैसी नही..स्पेशल, लकड़ी प्लायवुड की बनी हुई। सामान्य सी अर्थी। अंतिम यात्रा भी सामान्य। इतनी सामान्य की इससे भीड़भरी तो हमारे गली मोहल्लों से निकलती है। हम भी शामिल होते है। काँधा देते है। ठीक वैसे ही देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काँधा दे रखा था और चल पड़े मुक्तिधाम के लिए। जिसने ये दृश्य देखा, भौचक रह गया। किसी ने इस दृश्य की कल्पना भी नही की थी। 

  • महज 120 मिनिट में अंतिम क्रिया निपट गई

पीएम की माँ की मौत की खबर ने देश को दिनभर के लिए गमगीन होने के लिए तैयार कर दिया था। लेकिन ये क्या...महज 120 मिनिट में अंतिम क्रिया निपट गई। दिल्ली से अहमदाबाद आना। फिर घर तक आना। माँ की पार्थिव देह को प्रणाम करने से लेकर मुखाग्नि तक का संस्कार दो घण्टे से भी कम समय मे न केवल सम्पन्न हो गया, बल्कि माँ को मुखाग्नि देने वाला... माँ का लाड़ला पुनः काम पर लौट गया। वैसे ही, जैसे घर के सारे दुःख दर्द छोड़कर संघ प्रचारक मातृभूमि की सेवा में लौट जाता है। अपने कर्त्तव्य पथ पर। वो ही मोदीजी ने किया। अपने स्वयंसेवक स्वरूप और प्रचारक व्यक्तित्व को पुनः पुनः न केवल जिया। बल्कि दिखाया कि  दुनिया के सबसे बड़े संगठन आरएसएस के लोग कैसे होते गए।सबसे कह भी दिया कि कोई भी कार्यक्रम निरस्त नही होगा। सब अपने नियमित कामकाज करें। राष्ट्र निर्माण में एक एक क्षण कीमती मानकर। जानकर। 

  • मोदी का दर्द, ममता के चेहरे पर भी स्पष्ट झलक रहा था

उनके इस साहसिक निर्णय ने उनके घनघोर विरोधी को भी नतमस्तक कर दिया। दखिये ममताजी का वो चेहरा जब वे मोदीजी से मुखातिब थी। मोदी का दर्द, ममता के चेहरे पर भी स्पष्ट झलक रहा था। उनके मुंह से निकले शब्द भी भीगे भीगे से थे। हीरा बेन के लिए संवेदना थी और मोदीजी के प्रति अन्तःकरण से आत्मीय भाव।

  • हो भी क्यो नही? 

आखिर हीरे जैसी माँ के इस लाखीना बेटे ने देश दुनिया के समक्ष वो इबारत रच दी, जो अब तक किताबो में ही दफ़न, दर्ज थी। 

हीरे जैसी माँ- आपको दंडवत प्रणाम

लाखीना बेटे नरेंद्र मोदी को सलाम..!!

वंदेमातरम

भारतमाता की जय जय

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