इंदौर
मातृभाषा.कॉम ने लगाया साहित्यिक चौका
Paliwalwaniइंदौर । मातृभाषा उन्नयन संस्थान अध्यक्ष एवं मातृभाषा.कॉम के संस्थापक डॉ.अर्पण जैन ’अविचल’ ने पालीवाल वाणी को बताया कि साहित्य शुचिता और हिन्दी भाषा के प्रचार का लक्ष्य लेकर एक मशाल जलाई, वर्ष 2016 के नवंबर माह की 11 तारीख़ को तय हुआ कि कुछ ऐसा कार्य किया जाए जिसमें हिन्दी के प्रति अपने कर्त्तव्य का पालन भी हो और कुछ सकारात्मक कार्य भी हो पाए, इसी जुनून ने स्थापना करवाई ’मातृभाषा.कॉम’ की। सृजनधर्मी भारतीय जनमानस के बीच उत्कृष्ट सृजन को पहुँचाना, उसके सृजक से परिचित करवाना और इसी के साथ उस सृजन को हमेशा-हमेशा के लिए सहेजना ताकि इंटरनेट पर गुणवत्तापूर्ण सामग्री संकलन में सृजक का भी योगदान समावेशीत रहे, इसी लक्ष्य के साथ कदम बढ़े।
● चौथे वर्ष में मातृभाषा.कॉम प्रवेश
विगत तीन वर्षों की यात्रा पूर्ण करके आज जब चौथे वर्ष में मातृभाषा.कॉम प्रवेश करने जा रहा है तो धन्यवाद हर साथी, सहयोगी, सृजक, पाठक, तकनीकी दल आदि का ज्ञापित करते हैं, जिनके अवदान के कारण आज मातृभाषा.कॉम रूपी अन्तरताना हिन्दी प्रचार आन्दोलन का रूप ले चुका है। लाखों पाठक, लाखों समर्थक, हज़ारों रचनाकार, हिन्दीयोद्धाओं का दल इत्यादि सभी ने मिलकर एक विश्व कीर्तिमान रच दिया जिसकी गूँज संपूर्ण हिन्दी परिवार में बरक़रार है। भारतीय भाषाओं के सम्मान को बनाए रखते हुए हिन्दी को राष्ट्रभाषा के सिंहासन पर आरुढ़ करवाने के लिए यह कारवाँ चला, जिसने आज हिन्दी परिवार का विश्वास मज़बूत किया है।
● एक लक्ष्य-अहर्निश हिन्दी सेवा
साहित्य संपादन, प्रकाशन, प्रचार के कर्त्तव्य का निर्वहन करते-करते मातृभाषा परिवार ने अपना ध्येय हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करवाने का रख लिया, आज सुफल के रूप में 12 लाख से अधिक हिन्दी के समर्थकों और 20 लाख से अधिक पाठकों के विशाल परिवार के रूप में सुशोभित है। मैं डॉ. वेदप्रताप वैदिक जी, राजकुमार कुम्भज जी, अहद प्रकाश जी जैसे गुणी संरक्षकों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए मेरे सभी सक्रिय साथियों का हृदयपूर्वक आभारी हूँ जिन्होंने सदैव हिन्दी सेवा के लिए तत्परता दिखाते हुए हिन्दी माँ के स्वाभिमान की लड़ाई को बल प्रदान किया। प्रत्येक समिधा के अनुपम अवदान से प्राप्त इस हवनकुण्ड की तपन ने हिन्दी परिवार को लगातार उष्मीत और ऊर्जावान रखा, निःसंदेह यह मातृभाषा परिवार का सामर्थ्य और आप सभी का स्नेहाशीष ही है, जिससे आज हिन्दी की महक और अधिक फैल रही है। कोरोना काल के कुछ व्यवधान हैं और आज दीपोत्सव भी है। इसी दीपोत्सव में आप और हम सभी एक दीप हिन्दी के स्वाभिमान की अक्षुण्णता का प्रज्वलित करें, जो हिन्दी को सुगंधित करे। कुछ नई योजनाओं के साथ जल्द ही मातृभाषा एक नए कलेवर में आपसे जुड़ेगा। नई परियोजना, नया रंग आपकी प्रतीक्षा कर रहा है। आप इसी तरह अपना स्नेहाशीष बनाए रखें। इसी के साथ दीपोत्सव मंगलमय हो, जय हिन्दी!
● पालीवाल वाणी ब्यूरों-Sunil Paliwal-Anil Bagora...✍️
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