इंदौर

गीता भवन में आज प्रभु श्रीराम एवं हनुमान प्राकट्य महोत्सव में सुबह 108 दीपों से होगी महाआरती

विनोद गोयल
गीता भवन में आज प्रभु श्रीराम एवं हनुमान प्राकट्य महोत्सव में सुबह 108 दीपों से होगी महाआरती
गीता भवन में आज प्रभु श्रीराम एवं हनुमान प्राकट्य महोत्सव में सुबह 108 दीपों से होगी महाआरती

राक्षसी प्रवृत्तियों का नाश करने में हनुमान जैसी : भक्ति और शक्ति ही सक्षम : रामनरेशाचार्यजी

इंदौर : (विनोद गोयल...)  रामजी का युद्ध सत्य की रक्षा के लिए था, सत्ता के लिए नहीं। आज जो भी युद्ध हो रहे हैं, सत्ता पाने के लिए हो रहे हैं। सत्य के लिए युद्ध कोई नहीं करता। सत्य हारता नहीं, लेकिन परेशान अवश्य होता है। राम ने रावण का वध लंका का राज्य पाने के लिए नहीं किया, उन्होंने तो रावण की सत्ता भी विभीषण को सौंप दी। सीता सेवा है तो राम वैराग्य। लक्ष्मण ज्ञान है और हनुमान चेतना। यदि हमारा शरीर पंचवटी जैसा होगा, तो ही मन, बुद्धि और चित्त में अहंकार का प्रवेश नहीं हो पाएगा। हनुमान जैसी भक्ति और शक्ति ही राक्षसी प्रवृत्तियों का नाश करने में सक्षम होगी।

साधाना कक्ष में भक्तों की आध्यात्मिक जिज्ञासाओं का समाधान किया

जगदगुरु रामानंदाचार्य, श्रीमठ काशी पीठाधीश्वर स्वामी रामनरेशाचार्य ने आज गीता भवन में चल रहे प्रभु श्रीराम एवं दास शिरोमणि हनुमान प्राकट्य महोत्सव की धर्मसभा में उक्त प्रेरक एवं ओजस्वी विचार व्यक्त किए। प्रारंभ में विधायक आकाश विजयवर्गीय के साथ गीता भवन ट्रस्ट मंडल की ओर से गोपालदास मित्तल, राम ऐरन, रामविलास राठी, विष्णु बिंदल, संजय मंगल, प्रेमचंद गोयल, बालकृष्ण छाबछरिया, टीकमचंद गर्ग, राजेश गर्ग केटी, शिव जिंदल, कांटाफोड़ मंदिर ट्रस्ट के बी.के. गोयल, गोविंद मंगल, हरि अग्रवाल आदि ने जगदगुरु का स्वागत किया और दीप प्रज्ज्वल कर भजन संध्या का शुभारंभ किया। इसके पूर्व  सुबह राम-हनुमानजी के अभिषेक में सैकड़ों भक्त शामिल हुए। दोपहर में स्वामी रामनरेशाचार्य ने साधाना कक्ष में भक्तों की आध्यात्मिक जिज्ञासाओं का समाधान भी किया। संध्या को परिसर स्थित हनुमान मंदिर में 108 दीपों से हुई आरती में स्वामी रामनरेशाचार्यजी ने सैकड़ों भक्तों के साथ भाग लिया और भक्तों को स्वयं प्रसाद वितरण भी किया।

भक्ति में त्याग से अधिक जागृति और पवित्रता की जरुरत

       स्वामी रामनरेशाचार्यजी ने कहा कि बाली और अन्य आसूरी प्रवृत्तियां भगवान के बाण का शिकार इसलिए बनी कि उनके मन में स्वच्छता या निर्मलता नहीं थी। रावण प्रकांड विद्वान था, लेकिन उसके मन में भी मलीनता घर कर गई थी। भक्ति में त्याग से अधिक जागृति और पवित्रता की जरुरत है। संत और साधु समाज को जगाने की प्रेरणा देते हैं। जो सोते हैं, वे खोते हैं और जो जागते हैं वे पाते हैं। सोना अज्ञानता और जागना अज्ञान से प्रकाश की ओर बढ़ने का प्रतीक है।

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