इंदौर
indoremeripehchan : राजनीति और मीडिया की फिसलन…कभी मॉक-पार्लियामेंट या मूट-कोर्ट का नाम सुना ही नहीं
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वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा जी (प्रजातंत्र वाले) की कलम से...
इंदौर.
इंदौर के मेयर पुष्यमित्र भार्गव के पुत्र संघमित्र ने एक स्कूली डिबेट में रेल मंत्रालय के काम-काज के विपक्ष में बोलते हुए अपना पक्ष क्या रखा, चुनिंदा नेताओं और पत्रकारों को जैसे मौक़ा मिल गया। ऐसा लगता है इन लोगों ने कभी मॉक-पार्लियामेंट या मूट-कोर्ट का नाम सुना ही नहीं है। ख़ैर, कक्षाएँ पास कर लेने और पढ़े-लिखे होने में बड़ा अंतर होता है…!
संघमित्र की डिबेट के कांटेंट को लेकर विवाद असल में हमारी राजनीति और पत्रकारिता के फिसलन का बेहद चलताऊ नमूना है जिस पर चर्चा करना उस ओछेपन को जगह देना ही है जिसमें लोटने के लिए लोग आपको सदैव आमंत्रित करेंगे क्यूँकि वो उनका अखाड़ा है।
तरुणाई की दहलीज़ पर खड़े एक प्रतिभाशाली विद्यार्थी वक्ता को क्या सिर्फ़ इसलिए ट्रोल किया जाना चाहिए कि वह सत्तारूढ़ पार्टी से महापौर बने एक ऐसे असाधारण क़ानूनी विशेषज्ञ का बेटा है जिनका दीर्घ राजनैतिक करिअर भी उनके प्रोफेशनल करिअर की तरह चमक रहा है?
पुष्यमित्र राजनीति में कौन सा मुक़ाम हासिल करेंगे यह तो समय सुनिश्चित करेगा लेकिन एक पिता के तौर पर उनके द्वारा की जा रही परवरिश की तारीफ़ की जानी चाहिए कि वे संघमित्र को इस योग्य बना रहे हैं जहाँ उसका बौद्धिक विकास स्वतंत्र रूप से हो रहा है।
तारीफ़ इस बात की भी की जानी चाहिए कि वे पुत्र में इतने नैतिक बल का निर्माण कर पाए कि वह भरे मंच से, जिस पर मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष के साथ-साथ ख़ुद वह भी बतौर महापौर बैठे हों, साहस के साथ अपनी बात कह पाया।
डिस्क्लेमर: फ़िलहाल मैं उन नेतापुत्रों की बात नहीं कर रहा हूँ जिनकी नई-नई दौलत और नया-नया रसूख़ अख़बारों की सुर्ख़ियाँ बटोरे हुए है।और, इन सुर्ख़ियों का परवरिश और ज्ञान-संस्कार से लेना-देना… है!