Friday, 01 August 2025

इंदौर

गगन दमामा बाज्यो...., उत्साह, उमंग, उल्लास, ऊर्जा, मोहब्बत, ओज, शौर्य और शहीदी के रंग में डूबे राष्ट्रीय भावनाओं से सराबोर

मिर्ज़ा ज़ाहिद बेग़
गगन दमामा बाज्यो...., उत्साह, उमंग, उल्लास, ऊर्जा, मोहब्बत, ओज, शौर्य और शहीदी के रंग में डूबे राष्ट्रीय भावनाओं से सराबोर
गगन दमामा बाज्यो...., उत्साह, उमंग, उल्लास, ऊर्जा, मोहब्बत, ओज, शौर्य और शहीदी के रंग में डूबे राष्ट्रीय भावनाओं से सराबोर

प्रोग्राम रिपोर्ट प्रकाशनार्थ-

गगन दमामा बाज्यो....

इन्दौर.       

पंद्रहवीं शताब्दी में प्रथम गुरु गुरुनानक देव जी द्वारा सिख धर्म की शुरुआत एवं 13 अप्रैल 1699 में दशम गुरु गुरु गोविन्द सिंह जी द्वारा खालसा पंथ की स्थापना से ही सिख धर्म के अनुयायियों ने सारी दुनिया के सामने सेवा, साहस, संस्कृति, त्याग और प्रेम के नए प्रतिमान स्थापित किए हैं। 

इसी को लक्षित कर पँजाबियत से इंदौरी आवाम को परिचित कराने हेतु 'पँजाबी साहित्य अकादमी' और 'माँ अहिल्या सेवा संस्था इन्दौर' के संयुक्त तत्वावधान में 17 मई 2025 शनिवार की शाम रविन्द्र नाट्यगृह इन्दौर में आयोजित "रंग पँजाब दे" प्रोग्राम में आयोजकों और कलाकारों ने पँजाबी तहज़ीब को सरज़मीन-ए-मालवा पर साक्षात साकार कर दिया।

उत्साह, उमंग, उल्लास, ऊर्जा, मोहब्बत, ओज, शौर्य और शहीदी के रंग में डूबे राष्ट्रीय भावनाओं से सराबोर इस कल्चरल प्रोग्राम में पँजाब की पावन धरती पर बहने वाली पांचों नदियों सतलुज,व्यास,रावी,चिनाब और झेलम की मिठास रविन्द्र नाट्यगृह के एसी सभागार और मनोरम परिसर में घुल गई थी। प्रोग्राम के प्रारम्भ से लेकर अंत तक सतत 3 घण्टे उपस्थित दर्शकों की तालियों की गूँज मानो पँजाब की पहचान इन पांचों नदियों के बहाव से पैदा हुई कर्णप्रिय जलतरंग को अभिव्यक्त कर रही थी। हो सकता है सभागार में उपस्थित सैकड़ों दर्शकों में से कोई पँजाब नहीं गया हो या दुर्भाग्यवश अपनी सारी ज़िन्दग़ी न जा पाए पर "रंग पँजाब दे" देखने के बाद अब उसे यह मलाल नहीं रहेगा कि उसने पँजाब और पँजाबी तहज़ीब को नहीं देखा।

प्रोग्राम की शुरुआत युवा कत्थक नृत्यांगनाओं प्रीत पाठक और प्रगति झा द्वारा अनूठे अंदाज़ में कत्थक शैली के नृत्य के माध्यम से गणेश वंदना द्वारा की गई । उनकी भावभंगिमाएँ,अधरों पर खिली आकर्षक मुस्कान,लालित्यपूर्ण कदमताल,आपसी सामंजस्य और संगीत के साथ परफेक्ट तालमेल देखते ही बनता था। स्वाभाविक ही था कि गणेशवन्दना की समाप्ति पर उन्हें भरपूर सराहना मिले और तालियों की गूँज बता रही थी कि दर्शकों ने उन्हें निराश नहीं किया। सरदारनी जसबीर कौर जी खनूजा और नन्हे-मुन्ने बच्चों ने  सुमधुर स्वर में पाकीज़गी के साथ अरदास की। 

सरदार इक़बाल सिंह जी नारंग ने गुरु गोविंदसिंह जी द्वारा अमृत छकाए गए 'पंच प्यारों' का बाना धारण किये 5 बच्चों और प्रथम गुरु गुरुनानकदेव जी से लेकर दशम गुरु गुरु गोविंदसिंह जी तथा 'साक्षात गुरु ग्रन्थ साहिब' का वेश लिए  11 बच्चों के साथ शबद गायन किया। उनके शबद गायन  में जैसे दुनिया भर के पवित्र धवल गुरुद्वारों की धवलता उतर आई थी। अरदास और शबद गायन की पवित्रता में भावविभोर हुए दर्शक ख़ामोशी से पूरे समय अरदास और शबद की रूहानियत को मंत्रमुग्ध हो कर आत्मसात करते रहे।  

अरदास और शबद के पूर्ण होने पर हॉल 'बोले सो निहाल-सत श्री अकाल' के नाद से गूँज उठा। गणेशवन्दना, अरदास और शबद के बाद कलाकारों ने पँजाबी लोकनृत्यों और गीतों की झड़ी लगा दी। इनमें भांगड़ा था,गिद्धा था और थे पँजाब की रूह को समाहित किये हुए फिल्मी और ग़ैर फ़िल्मी गीत। इन कलाकारों में प्रमुख थे अनु शर्मा,दीपक मल्होत्रा,मोनिका व्यास,अल्तमश खान,अजीत श्रीवास्तव,मानसी पाण्डे,गर्विता जैन,पिंटू सलूजा,संध्या दुबे,दीपिका मल्होत्रा,सुमन जायसवाल और इन्दौर के ही ख्यात सँस्कृति कर्मी आलोक बाजपेयी।

स्टेज़ पर सीबी रॉक स्टार चिन्तन बाकीवाला की एंट्री धमाकेदार थी। वे सभागार के अंतिम हिस्से से दर्शकों के साथ भांगड़ा करते हुए स्टेज़ पर आये और फिर अपने ही अंदाज़ में गाये पँजाबी गीतों से दर्शकों को अपने साथ झूमने पर मज़बूर कर दिया। इसके बाद अल्तमश खान ने लोकप्रिय पँजाबी फिल्मी गीतों से दर्शकों को उल्लासित कर दिया। इन दोनों कलाकारों का  किशोरवय बच्चों ने भरपूर साथ दिया। दीपेश जैन ने पँजाबियत को मद्देनज़र रख कर बेहतरीन म्यूजिक संरचना की। इस दौरान दिव्यांग नवयुवती गायिकाओं मानसी पाण्डे और गर्विता जैन को विशेष रूप से पुरुस्कृत किया गया। 

प्रोग्राम के संचालक द्वय सरदारनी डॉ आरती मेहरा और एडवोकेट सरदार संजय मेहरा ने पूरे समय कार्यक्रम को प्रवाहित रखा। आप दोनों पति-पत्नी हैं आपने स्टेज़ पर भी अद्भुत ताल-मेल का परिचय दिया। यद्यपि एंकरिंग में प्रोफेशनलिज़्म की कुछ कमी दिखी पर उसका यह फ़ायदा हुआ कि कार्यक्रम मशीनी नहीं बना उसकी पारिवारिक और ज़मीनी आत्मा ज़िंदा रही। 

एक कमी यह भी खली कि स्टेज़ पर बच्चों,किशोरियों और नवयुवतियों ने  लोकनृत्यों पर बड़ी संख्या में उत्साह से पार्टिसिपेट किया पर पुरुष और नोज़वान सरदार स्टेज़ से दूर रहे। कहीं वे आधुनिक भौतिक चकाचोंध में अपनी विश्वप्रसिद्ध पँजाबी तहज़ीब से दूर तो नहीं होते जा रहे? उम्मीद है कि संगत इस पर ग़ौर करेगी।

पँजाबी साहित्य अकादमी के डायरेक्टर सरदार इंद्रजीत खनूजा और माँ अहिल्या सेवा संस्था की अध्यक्ष डॉ आरती मेहरा सहित आयोजकों की इस बात के लिए भी तारीफ़ बनती है कि उन्होंने निर्धारित समय पर ठीक 7 बजे प्रोग्राम शुरू कर दिया। प्रोग्राम का शुभारंभ अतिथि द्वय हाईकोर्ट के जज माननीय बी के द्विवेदी जी और स्थानीय लोकप्रिय सांसद माननीय शंकर लालवानी जी द्वारा किया गया। सरदार इंद्रजीत खनूजा,डॉ आरती मेहरा और सरदार एडवोकेट संजय मेहरा ने अतिथियों का स्वागत किया और स्मृति चिन्ह भेंट किये। 

पँजाबी साहित्य अकादमी के डायरेक्टर सरदार इंद्रजीत सिंह खनूजा ने एक संक्षिप्त बात-चीत में इस रिपोर्ट के लेखक को बताया कि शीघ्र ही पँजाबी साहित्य अकादमी द्वारा वार्षिक स्मारिका प्रकाशित की जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि अगले वर्ष इस प्रोग्राम को और भव्य रूप में आयोजित किया जाएगा और क़ोशिश की जाएगी कि प्रोग्राम हेतु पँजाब की धरती से लोक कलाकारों को आमंत्रित किया जाए।

देश के वीर जवानों को समर्पित इस कार्यक्रम को देख कर वापस लौट रहे दर्शक अपने साथ पँजाबियत और सिखी के सेवा,त्याग,राष्ट्रप्रेम,शौर्य और साहस के साथ आपसी मोहब्बत,भाईचारे और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के सद्गुणों को साथ ले गए और साथ ले गए सिखी के इस ध्येय वाक्य को- 

"सूरा सो पहचानिये जो लरे दीन के हेत सूरा सोई, पुर्ज़ा-पुर्ज़ा कट मरे कबहूँ न छाडे खेत सूरा सोई" जो ज़िन्दग़ी भर उनकी ज़िन्दग़ी में प्रकाशस्तम्भ बन उनका मार्ग प्रशस्त करत रहेगा।

रिपोर्ट : मिर्ज़ा ज़ाहिद बेग़

  • मिर्ज़ा ज़ाहिद बेग़ पँजाबी साहित्य अकादमी के निदेशक सरदार इंद्रजीतसिंह खनूजा से चर्चा करते हुए...
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