इंदौर

Covid : कोरोना के बाद 25 प्रतिशत बढ़े मेन्टली डिसआर्डर के मरीज

Paliwalwani
Covid : कोरोना के बाद 25 प्रतिशत बढ़े मेन्टली डिसआर्डर के मरीज
Covid : कोरोना के बाद 25 प्रतिशत बढ़े मेन्टली डिसआर्डर के मरीज

इंदौर :

कोरोना (Covid) के बाद 25 प्रतिशत बढ़े मेन्टली डिसआर्डर (Mental Disorder) के मरीजों में सबसे ज्यादा संख्या पुरुषों की सामने आ रही है। अकेले रहना, लोगों से मिलना जुलना नहीं, पीठ पीछे बुराई करने का शक होना, अकेले में बात करना, बहुत गुस्सा आना, नींद कम आना, ऑफिस के लोगों पर साजिश करने का शक करना जैसे लक्षण सामने आ रहे हैं।

2022 में डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार भारत में 15 प्रतिशत मेन्टली डिसआर्डर का आंकड़ा अब बढक़र 25 प्रतिशत तक हो गया है। इंदौर में भी एक प्रतिशत पुरुष कोरोना के बाद मेन्टली डिसआर्डर से पीडि़त है। वल्र्ड स्कीजोफ्रीनिया डे पर अग्निबाण द्वारा डॉक्टरों से की गई चर्चा में यह खुलासा हुआ कि अत्यधिक तनाव, वर्क प्रेशर और लम्बी बीमारी से उठे पुरुषों में मानसिक बीमारियां सामने आ रही हैं। हालांकि डॉक्टरों का दावा है कि मानसिक चिकित्सकों से ली गई मदद न केवल बीमारी से उभरने में मदद कर रही है, बल्कि जल्द ही नार्मल जिंदगी में लौटने के लिए तैयार कर रही है।

छोटी लेकिन बड़ी समस्याएं सामने आने लगी

18 से 25 साल तक के पुरुषों में अत्यधिक तनाव के कारण कई तरह की छोटी लेकिन बड़ी समस्याएं सामने आने लगी हैं। हालांकि 45 से 65 साल की उम्र में भी अकेलापन कई बार स्कीजोफ्रीनिया से ग्रसित कर रहा है। ऑफिस में भीड़ में रहने के बाद भी चुप रहना, अकेले रहना, लोगों से मिलना जुलना नहीं, स्कूल या कॉलेज से निकाले जाने की साजिश करना, पीठ पीछे षड्यंत्र रचे जाने का आभास होना, लोगों की बुराई करने का भ्रम दिमाग पर छाये रहना, आम लोगों से सोच अलग होना, अकेले में बात करना, बहुत तीव्र गुस्सा आना और नींद में कमी है तो मनोचिकित्सक की सलाह लेना चाहिए। आमतौर पर इन लक्षणों को मरीज अनदेखा कर देते हैं, जिसके कारण धीरे-धीरे यह लाइलाज बीमारी के रूप में सामने आता है।

थैरेपी इन तकलीफों में कारगर साबित

शहर के मनोचिकित्सक कौस्तुभ बाग्रल के अनुसार दवाइयां और थैरेपी इन तकलीफों में कारगर साबित हो रही है। आमतौर पर ग्लूटामिन, न्यूट्रामीटर, टोपामीन, सेरेटिन का ब्रेन में लेबल गड़बड़ाने से यह बीमारी सामने आती है। गर्भावस्था के दौरान हार्मोन में बदलाव, डिलेवरी में काम्प्लीकेशन, डिप्रेशन में आकर करना इस बीमारी का कारण बनता है। उचित इलाज से रोक संभव है।

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