इंदौर

बिना खड्ग-ढाल....भरो हुँकार : समाज में भगवती भाव...जागृत हो

नितिनमोहन शर्मा
बिना खड्ग-ढाल....भरो हुँकार : समाज में भगवती भाव...जागृत हो
बिना खड्ग-ढाल....भरो हुँकार : समाज में भगवती भाव...जागृत हो

हर कन्या-हर युवती-हर स्त्री शक्ति स्वरूपा जगदम्बा

नारी के लिए हो देवी भाव की दृष्टि, लोकचेतना जागे

नव रात। नव विलास। नवरात्रि। 

...भगवती जगदम्बा का पर्व। शक्ति स्वरूपा देवी माँ का प्रकाट्य उत्सव। जगत जननी की आराधना का त्यौहार। एक नही, नों दिन। नोँ रात। घर घर घट स्थापना। गली गली देवी प्रतिमा स्थापना। रास विलास। रास उल्लास। गरबा। नृत्य के संग देवी आराधना-पूजन-अर्चन का अनूठा पर्व। समाज में शक्ति जागरण का पर्व। स्त्री शक्ति की महत्ता को प्रतिपादित करता उत्सव। अनादिकाल से अनंतकाल तक। अनवरत समाज शक्ति की साधना में निमग्न है। बगेर शक्ति...शिव भी अधूरे है।

समूचे ब्रह्मांड का संतुलन शक्ति बिना असंभव है। अन्यथा सृष्टि में ब्रह्मा-विष्णु-महेश के रहते भी शक्ति की आवश्यकता क्यो हुईं। सृजन-पालन-विसर्जन की व्यवस्था होने के बाद भी संसार शक्ति के बगैर अधूरा ही रहा। सर्व शक्तिमान त्रिदेव के अस्तित्व में होने के बावजूद आसुरी शक्तियों का नाश बगेर शक्ति के नही हो पाया। त्रिदेव की देह से निकले शक्ति पुंज से प्राकट्य हुई देवी शक्ति ही आसुरी ताकतों का विध्वंस कर पाई। जिनसे देव पस्त हुए, उन्हें देवी ने परास्त कर दिया।  हर युग मे ये ही हुआ। सतयुग से त्रेता ओर द्वापर तक। दानवों का दमन भगवती के हाथों ही हुआ।

...फिर ऐसा क्या हुआ कलयुग में की नारी शक्ति, आसुरी ताकतों का अंत करने की बजाय उसका शिकार हो रही है? जिस शक्ति ने राक्षसों का अंत कर दिया, उसी शक्ति स्वरूपा नारी का इस धरा पर इतना अपमान.. इतना मान मर्दन क्यो? अबोध बालिका से लेकर बूढ़ी अम्मा तक आज सुरक्षित नही। शीलहरण, व्यभिचार, प्रताड़ना का शिकार क्यो?अपने सतीत्व ओर स्त्रीत्व की रक्षा करती मातृशक्ति इतनी लाचार क्यो? सबला नारी...अबला क्यो? ये लाचारी किसने ओढाई? या स्वयम ओढ़ ली? इतिहास के किस कालखंड को दोष दे? ये लाचारी, ये बेबसी का कौन जिम्मेदार? 

...तो है मातृशक्ति। आपने फिर ये लाचारी का भाव क्यो ओढ़ लिया?पुरूष समाज से परबसता आखिर कब तक?जागृत करो फिर से अपना शक्ति भाव। देवी भाव। संहारक क्षमता। भरो हुंकार। आताताइयों बलात्कारियों के खिलाफ करो शंखनाद। खड्ग ढाल का इंतजार मत करो। नेत्रों में ज्वाला भरो। नथुनों में फुफकार। मुट्ठियों को भींच लो। जबड़े कस लो। ये पद्मनियो के जोहर  की धरा है। रानी लक्ष्मीबाई के शौर्य की भूमि है। तो अब स्वयम उठो। प्रतीक्षा मत करो न्याय की जो अन्याय से कम नही। जो स्त्रीत्व का हरण करें... उसका कालरात्रि बनकर संहार करें। नारी जाति पर हो रहे अन्याय अत्याचार का अंत शक्ति जागरण के बगेर संभव नही। समाज मे भी ऐसी लोकचेतना जागे जो हर कन्या, हर युवती-हर स्त्री में भगवती स्वरूप देखे। वैसी ही दृष्टि विकसित हो।

तो है मातृशक्ति। जगाइए अपने देवित्व को। साधे अपने ओज तेज को। करे साधना शक्ति की, शक्ति आरधना के इस पर्व पर। ताकि कोई आपकी तरफ कुदृष्टि न डाल सके...!!

भगवती...सुस्वागतम.....!!

नितिनमोहन शर्मा...✍️

 

whatsapp share facebook share twitter share telegram share linkedin share
Related News
Latest News
Trending News