इंदौर

गोपाल नही, ग्वाल-बाल ही बन जाओ : सरकार गोशालाओं पर करे फ़ोकस

नितिनमोहन शर्मा
गोपाल नही, ग्वाल-बाल ही बन जाओ : सरकार गोशालाओं पर करे फ़ोकस
गोपाल नही, ग्वाल-बाल ही बन जाओ : सरकार गोशालाओं पर करे फ़ोकस
  • गौ-धन पूजन के साथ मना गोवर्धनन उत्सव

  • गौ-वंश की चिंता करे शहरी समुदाय

  • समाज जीवन का हिस्सा है हमारा पशु धन

  • गोशालाओं का दो साल का रुका अनुदान जल्द जारी हो

  • इंसानों की तरह पशुओं की महामारी भी हो चिंता का विषय

नितिनमोहन शर्मा...✍️ 

कितने सुंदर और सजीले थे वे बेल जो आज सुबह सुबह एक गो पालक के आंगन में खड़े थे। नीले रंग से सजे अर्धचन्द्राकार सिंग। सिर पर बंधे मोर पंख। गले मे लटकन-पुछड़ी। लाल पीले रंग से सजे खुर। बदन पर मेहंदी के छापे जिन पर कलश से लेकर कर कमल तक की छाप उकेरी हुई। मस्त ओर सजे सँवरे बेल किसी बांके जवान जैसे गर्वोक्ति करते गो पालक के आंगन की शोभा बड़ा रहे थे।

कितनी सुंदर वो ग़य्या मैय्या थी जो मल्हारगंज की गोर्धननाथ गौशाला में सबको लुभा रही थी। सुडौल और हष्टपुष्ट। उन्नत कंधोर। ऊँचे कंधोर। स्निग्ध गल लटकन। हिरणी से तीखे कटार नयन। ऊंची पूरी। सजी सँवरी भी ऐसी...जैसे गोकुल की बृजनार। कंधोर पर लटकन सा कंधोरा। गले मे सतरंगी डोरी। साथ मे बंधी पीतल की छोटी छोटी घण्टिया। पीठ-कमर-पैर पर आलता के बने मांडने। मेहंदी के छापे। शाल-दुशाले सा पीठ पर लटकता चमकीला वस्त्र। ऐसा सुंदर रूप जैसे साक्षात गोविंद की ' धोरी ' आ धमकी हो जैसे गोवर्धननाथ जी के आंगन में। 

ये है हमारा असली धन। गौवंश। गौधन। पशुधन। सनातन ओर वैदिक भारत की अर्थव्यवस्था का केंद्र हमारा पशु धन ही था। पशु धन हमारे समाज जीवन का हिस्सा रहे हैं। जैसे परिवार के अन्य सदस्य, वैसे ही हमारा गोधन भी घर परिवार का एक हिस्सा होते रहे। तिजारती दुनिया मे इसलिए ही कृषि भारत का मुख्य आर्थिक आधार रहा है। सदियों से अब तक। लेकिन अब नही...!!

अब हमारा गोधन-पशुधन-गोवंश, ढोर की संज्ञा पा गए है। पशु धन को ढोर का नामकरण देने वाला वर्ग पड़ा लिखा है। अभिजात्य है। शहरी है। व्यापारी है। कारोबारी है। अफसर है। नेता है। आईटी एक्सपर्ट है। टेक्नोक्रेट है। और सबसे बढ़कर सरकार है। ढोर का नामकरण करने में इन सबका बहुत योगदान है। अन्यथा मेरे भारत वर्ष के पशुधन की यू फ़जीहत होती? उसे देश निकाला मिलता? जो समाज जीवन का हिस्सा था, वो धन जंगलों में भूखे प्यासे मरने के लिए छोड़ा जाता? उन गोशालाओं में तिल तिल कर मरता जो सरकारी अनुदान की बाट जोहते जोहते खुद मर रही है?

जिस भारत मे गोवंश की सेवा करने और उसकी महत्ता को प्रतिपादित व स्थापित करने स्वयम परब्रह्म भगवान योगेश्वर इस धरा पर अवतरित हुए। जिस धरा पर गोवंश की रक्षा के लिए उन्होंने बाल स्वरूप में ही गिरी गोवर्धनन पर्वत को अपने कर पर उठा लिया। इंद्र जैसे सर्व शक्तिमान से दो दो हाथ कर लिए। कृष्ण से गोपाल बन गए। गोविंद नामकरण पा गए। उस वसुंधरा पर गोमाता की ऐसी दुर्दशा? जिस संस्कृति में पहली रोटी गाय की बनती है, वहां गाय रोटी को ओर रोटी खिलाने वाला गाय के लिए तरस रहा है। ये ऐसी केसी व्यवस्था गोविंद के देश मे स्थापित हो गई?

क्या गोवंश अब सिर्फ राजनीति का विषय ही रह गया? वो केवल वोटों के ध्रुवीकरण ओर समाज जीवन को उद्वेलित करने का ही मुद्दा बनकर रह जायेगा? सरकारें बस गोशालाओं के विस्तार का ढोल ही पिटेगी या जो गोशालाएं है, उनका कायाकल्प भी करेगी? मध्यप्रदेश में तो छोटी छोटी ग़य्या वालो की सरकार है न..? तो फिर 21 महीनों से गोशालाओं को अनुदान क्यो नही? गोशाला वाले आंदोलन क्यो कर रहे? बड़ी गोशालाएं ठेके पर क्यो दी जा रही?सरकारी गोशाला में 20 रुपये रोज की खुराक का, 20 साल पुराना आंकड़ा अब तक क्यो? दूध 60 रुपये लीटर और दूध देने वाला 20 रुपये रोज का ही खाये? वाह रे गौभक्त सरकार। अपने वेतन भत्ते के साथ पशु धन के भोजन का भत्ता भी दस बीस रुपये बढ़ा देते। लेकिन नही किया। सरकार जल्द अनुदान जारी करे। इंसानों के समान पशुओं की महामारी की चिंता भी करे सरकार। 

सुगम यातायात में इस शहर में केवल ओर केवल गोवंश ही एकमात्र बाधा था। है न? तभी तो अहिल्या माँ के शहर में अब गोवंश सड़क तो दूर, गली कूँचे में भी नजर नही आता। अब सब तरफ़ का ट्रेफिक एकदम साफ सुथरा हो गया क्या? अब तो घर मे बंधी गाय तक को खोलकर ले जाने का डर 24 घण्टे सताता रहता है। ऐसा कभी मुग़लिया दौर में हुआ, देखा या सुना क्या? फिर इस दौर में, इंदौर में...क्यो हो गया और हो रहा है? शहरी समुदाय की चिंता में गोवंश क्यो नही शामिल? 

फिर भी इस प्रदेश में आज गोवर्धन पूजा हो रही है। गोपालक गोवर्धन पूजन के साथ गोवंश की पूजा कर रहे है। गोबर से गोवर्धन की विशाल आकृति बनाई जा रही है। पशु धन सजा संवार रहे है। उनका पूजन कर रहे है। समाज गोशालाओं का वित्त पोषक बनकर गोवंश पाल रहा है। घर मे गाय की रोटी रोज निकल रही है। मठ मन्दिर आश्रम बड़ी बड़ी गोशालाए संचालित कर रहे है। आज भी गौ दान सबसे बड़ा दान माना जाता है। 7 दिन बाद गोपाष्टमी भी आ रही है। ये कृष्ण की गोचारण लीला से जुड़ा पर्व है। इस दिन पहली बार कुंवर कन्हाई गय्या चराने वन को गए थे। ये सब हमारे डीएनए का हिस्सा है। इसलिए आप भले ही गोपालक मत बनो। लेकिन ग्वाल बाल तो बनो जो गाय की थोड़ी फिक्र करे। सरकार, राजनीति ओर अभिजात्य वर्ग  भले ही ' ढोर ' की संज्ञा रच दे लेकिन इस आर्यावर्त के लिए आज भी...गाय हमारी माता है।

  • "गोवर्धनन पूजन-उत्सव की मंगल बधाई"

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