स्वास्थ्य

आयुर्वेद में प्राकृतिक चिकित्सा का महत्व

Paliwalwani
आयुर्वेद में प्राकृतिक चिकित्सा का महत्व
आयुर्वेद में प्राकृतिक चिकित्सा का महत्व

परिचय- आयुर्वेद के अनुसार किसी भी तरह के रोग होने के 3 कारण होते हैं-

1. वात:- शरीर में गैस बनना।

2. पित्त:- शरीर की गर्मी बढ़ना ।

3. कफ:- शरीर में बलगम बनना।

1. वात होने का कारण

गलत भोजन, बेसन, मैदा, बारीक आटा तथा अधिक दालों का सेवन करने से शरीर में वात दोष उत्पन्न हो जाता है।

दूषित भोजन, अधिक मांस का सेवन तथा बर्फ का सेवन करने के कारण वात दोष उत्पन्न हो जाता है।

आलसी जीवन, सूर्यस्नान, तथा व्यायाम की कमी के कारण पाचन क्रिया कमजोर हो जाती है जिसके कारण वात दोष उत्पन्न हो जाता है।

इन सभी कारणों से पेट में कब्ज (गंदी वायु) बनने लगती है और यही वायु शरीर में जहां भी रुकती है, फंसती है या टकराती है, वहां दर्द होता है। यही दर्द वात दोष कहलाता है।

2. पित्त होने का कारण

पित्त दोष होने का कारण मूल रुप से गलत आहार है जैसे- चीनी, नमक तथा मिर्चमसाले का अधिक सेवन करना।

नशीली चीजों तथा दवाईयों का अधिक सेवन करने के कारण पित्त दोष उत्पन्न होता है।

दूषित भोजन तथा केवल पके हुए भोजन का सेवन करने से पित्त दोष उत्पन्न होता है।

भोजन में कम से कम 75 से 80 प्रतिशत क्षारीय पदार्थ (फल, सब्जियां इत्यादि अपक्वाहार) तथा 20 से 25 प्रतिशत अम्लीय पक्वाहार पदार्थ होने चाहिए। जब इसके विपरीत स्थिति होती है तो शरीर में अम्लता बढ़ जाती हैं और पित्त दोष उत्पन्न हो जाता है।

3.  कफ होने का कारण

तेल, मक्खन तथा घी आदि चिकनाई वाली चीजों को हजम करने के लिए बहुत अधिक कार्य करने तथा व्यायाम की आवश्यकता होती है और जब इसका अभाव होता है तो पाचनक्रिया कम हो जाती है और पाचनक्रिया की क्षमता से अधिक मात्रा में चिकनाई वाली वस्तुएं सेवन करते है तो कफ दोष उत्पन्न हो जाता है।

रात के समय में दूध या दही का सेवन करने से कफ दोष उत्पन्न हो जाता है।

वात, पित्त और कफ के कारण होने वाले रोग निम्नलिखित हैं-

वात के कारण होने वाले रोग

अफारा, टांगों में दर्द, पेट में वायु बनना, जोड़ों में दर्द, लकवा, साइटिका, शरीर के अंगों का सुन्न हो जाना, शिथिल होना, कांपना, फड़कना, टेढ़ा हो जाना, दर्द, नाड़ियों में खिंचाव, कम सुनना, वात ज्वर तथा शरीर के किसी भी भाग में अचानक दर्द हो जाना आदि।

पित्त के कारण होने वाले रोग

पेट, छाती, शरीर आदि में जलन होना, खट्टी डकारें आना, पित्ती उछलना (एलर्जी), रक्ताल्पता (खून की कमी), चर्म रोग (खुजली, फोड़े तथा फुन्सियां आदि), कुष्ठरोग, जिगर के रोग, तिल्ली की वृद्धि हो जाना, शरीर में कमजोरी आना, गुर्दे तथा हृदय के रोग आदि।

कफ के कारण होने वाले रोग

बार-बार बलगम निकलना, सर्दी लगना, श्वसन संस्थान सम्बंधी रोग (खांसी, दमा आदि), शरीर का फूलना, मोटापा बढ़ना, जुकाम होना तथा फेफड़ों की टी.बी. आदि।

वात से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार

आहार चिकित्सा

वात से पीड़ित रोगी को अपने भोजन में रेशेदार भोजन (बिना पकाया हुआ भोजन) फल, सलाद तथा पत्तेदार सब्जियों का अधिक प्रयोग करना चाहिए।

मुनक्का अंजीर, बेर, अदरक, तुलसी, गाजर, सोयाबीन, सौंफ तथा छोटी इलायची का भोजन में अधिक उपयोग करना चाहिए जिसके फलस्वरूप रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह के समय में लहसुन की 2-4 कलियां खानी चाहिए तथा अपने भोजन में मक्खन का उपयोग करना चाहिए इसके फलस्वरूप वात रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

उपवास

वात रोग से पीड़ित रोगी को सबसे पहले कुछ दिनों तक सब्जियों या फलों का रस पीकर उपवास रखना चाहिए तथा इसके बाद अन्य चिकित्सा करनी चाहिए।

पित्त से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार

आहार चिकित्सा

पित्त रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन सब्जियों तथा फलों का रस पीना चाहिए।

पित्त रोग से पीड़ित रोगी को भूख न लग रही हो तो केवल फलों का रस तथा सब्जियों का रस पीना चाहिए और सलाद का अपने भोजन में उपयोग करना चाहिए। इसके फलस्वरूप उसका रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

रोगी व्यक्ति को पूरी तरह स्वस्थ होने तक बिना पका हुआ भोजन करना चाहिए।

पित्त रोग से पीड़ित रोगी को खट्टी, मसालेदार, नमकीन चीजें तथा मिठाईयां नहीं खानी चाहिए क्योंकि इन चीजों के सेवन से पित्त रोग और बिगड़ जाता है।

पित्त के रोगी के लिए गाजर का रस पीना बहुत ही लाभकारी होता है, इसलिए रोगी को प्रतिदिन सुबह तथा शाम के समय में कम से कम 1 गिलास गाजर का रस पीना चाहिए।

अनार, मुनक्का, अंजीर, जामुन, सिंघाड़ा, सौंफ तथा दूब का रस पीना पित्त रोगी के लिए बहुत ही लाभकारी होता है।

पित्त रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में लहसुन की 2-4 कलियां खाने से बहुत लाभ मिलता है।

सोयाबीन तथा गाजर का सेवन प्रतिदिन करने से वात रोग जल्द ही ठीक होने लगता है।

कफ से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार

आहार चिकित्सा

कफ के रोग से पीड़ित रोगी को प्राकृतिक चिकित्सा के दौरान सबसे पहले चिकनाई वाले पदार्थ, दूषित भोजन, तली-भुनी चीजों आदि का सेवन नहीं करना चाहि क्योंकि इन चीजों का उपयोग कफ रोग में बहुत हानिकारक रहता है।

कफ से पीड़ित रोगी को दूध तथा दही वाले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इन चीजों के सेवन से रोगी की स्थिति और भी गंभीर हो जाती है।

कफ रोग से पीड़ित रोगी को दूध नही पीना चाहिए और अगर उसका मन दूध पीने को करता है तो दूध में सोयाबीन डालकर सेवन करना चाहिए।

कफ रोग से पीड़ित रोगी को ताजे आंवले का रस प्रतिदिन सुबह के समय में पीना चाहिए जिसके फलस्वरूप उसका रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है। यदि आंवले का रस न मिल रहा हो तो सूखे आंवले को चूसना चाहिए।

मुनक्का, कच्ची पालक, अंजीर तथा अमरूद का सेवन कफ रोग में बहुत अधिक लाभदायक होता है।

अदरक, तुलसी, अंजीर तथा सोयाबीन का कफ रोग में प्रयोग करने से रोगी को बहुत आराम मिलता है।

लहसुन तथा शहद का प्रयोग भी कफ रोग में लाभदायक होता है और इससे रोगी का कफ रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

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