दिल्ली
भारत-थाईलैंड बौद्ध संवाद: संत रविदास, नैतिकता और वैश्विक शांति पर विमर्श : लाल सिंह आर्य
paliwalwani
वैश्विक शांति की ओर एक कदम: बौद्ध संवाद में भारत-थाईलैंड की साझा पहल और संत रविदास का सन्देश
नई दिल्ली.
नई दिल्ली स्थित एक महत्वपूर्ण शिष्टाचार भेंट में भारत और थाईलैंड के मध्य बौद्ध धर्म, नैतिक मूल्यों एवं सामाजिक समरसता को लेकर गहन संवाद हुआ। इस भेंट का विशेष आकर्षण भारतीय जनता पार्टी अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री लाल सिंह आर्य की गरिमामयी उपस्थिति रही, जिनके विचारों ने इस संवाद को एक सामाजिक दिशा प्रदान की।
इस बैठक का नेतृत्व राजदूत डॉ. परविंदर ने किया, जो विश्व शांति संस्थान (संयुक्त राष्ट्र संगठन से संबद्ध) के प्रतिनिधि हैं और पेज3न्यूज़ फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष भी हैं। डॉ. परविंदर को उनके वैश्विक शांति प्रयासों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जा चुका है। वे वट थाई कुशीनगर, वट थाई वाट फा राम अयुद्ध्या (भारत) और थाई सुरक्षा संघ जैसे प्रतिष्ठित संगठनों के सलाहकार पद पर भी कार्यरत हैं।
बैठक में थाईलैंड से पधारीं डॉ. मोनरूडी सोममार्ट की भागीदारी विशेष उल्लेखनीय रही। वे वर्तमान में थाईलैंड के प्रधानमंत्री के विधिक मामलों की सलाहकार होने के साथ-साथ शिक्षा मंत्रालय और श्रम मंत्रालय की भी सलाहकार हैं। इस संवाद कार्यक्रम में दिल्ली से चौधरी निखिल चंदेल एवं लेखक रविंद्र आर्य की सक्रिय सहभागिता रही।
चर्चा का मुख्य केंद्र बौद्ध धर्म की वर्तमान वैश्विक प्रासंगिकता, संत रविदास के सामाजिक विचार, और नैतिकता की पुनर्स्थापना रहा। विशेष चर्चा थाईलैंड में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार, भारत के कुशीनगर स्थित वट थाई मठ की भूमिका, और नेपाल के लुंबिनी क्षेत्र में टाइगर राणा के सहयोग से प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय चिकित्सालय की योजना पर केंद्रित रही।
इस अवसर पर श्री लाल सिंह आर्य ने संत रविदास की विचारधारा की वर्तमान सामाजिक उपयोगिता और भारतीय समाज में समता, नैतिकता और धर्म के पुनर्स्थापन की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने थाई प्रतिनिधिमंडल के साथ भारत-थाईलैंड के ऐतिहासिक बौद्ध संबंधों को पुनर्स्थापित करने हेतु सहयोग की भावना व्यक्त की। इसी दिशा में पाली भाषा को शाष्त्रीय भाषा का दर्जा देना भारत सरकार की एक महत्वपूर्ण कदम है।
यह संवाद न केवल भारत और थाईलैंड के बीच सांस्कृतिक और आध्यात्मिक साझेदारी को सुदृढ़ करता है, बल्कि वैश्विक शांति और धर्म-नैतिक मूल्यों पर आधारित एक नई विश्व व्यवस्था की संभावना को भी प्रकट करता है।
इस प्रकार की पहलें भारत के सामाजिक नेतृत्वकर्ताओं की भूमिका को पुनर्परिभाषित करती हैं और श्री लाल सिंह आर्य जैसे जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति इन प्रयासों को एक नई दिशा और संबल प्रदान करती है।
लेखक: रविंद्र आर्य
(भारतीय लोकसंस्कृति, इतिहास और सामरिक चेतना के स्वतंत्र विश्लेषक पत्रकार)