Friday, 20 June 2025

दिल्ली

भारत कोई धर्मशाला नहीं है जहां दुनियाभर से आए लोगों को शरण दी जाए : सुप्रीम कोर्ट

paliwalwani
भारत कोई धर्मशाला नहीं है जहां दुनियाभर से आए लोगों को शरण दी जाए : सुप्रीम कोर्ट
भारत कोई धर्मशाला नहीं है जहां दुनियाभर से आए लोगों को शरण दी जाए : सुप्रीम कोर्ट

भारत कोई धर्मशाला नहीं है जहां दुनियाभर से आए लोगों को शरण दी जाए : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है (India is not a Dharamshala) जहां दुनियाभर से आए लोगों को (Where People came from all over the World) शरण दी जाए (Can be given Shelter) । हम पहले से ही 140 करोड़ की आबादी के साथ संघर्ष कर रहे हैं, हर जगह से आए शरणार्थियों को शरण देना संभव नहीं। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने सोमवार को यह टिप्पणी श्रीलंकाई तमिल नागरिक की शरण याचिका खारिज करते हुए की।

दरअसल, याचिकाकर्ता को 2015 में तमिलनाडु पुलिस की क्यू ब्रांच ने दो अन्य लोगों के साथ गिरफ्तार किया था। आरोप था कि वह प्रतिबंधित आतंकी संगठन लिट्टे से जुड़ा हुआ है। 2018 में निचली अदालत ने उसे गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए के तहत 10 साल की सजा सुनाई थी। 2022 में मद्रास हाईकोर्ट ने उसकी सजा को घटाकर 7 साल कर दिया और आदेश दिया कि सजा पूरी होते ही उसे भारत छोड़ना होगा। साथ ही, निर्वासन तक उसे शरणार्थी शिविर में रखा जाएगा।

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि वह वीजा लेकर भारत आया था और श्रीलंका में उसे जान का खतरा है। उसने बताया कि वह 2009 में श्रीलंकाई गृहयुद्ध के दौरान लिट्टे का सदस्य रहा है और वहां की सरकार ने उसे ‘ब्लैक-गजटेड’ यानी वांछित घोषित कर रखा है। याचिका में कहा गया कि अगर उसे वापस भेजा गया तो उसे गिरफ्तारी, यातना और जान से मारने का खतरा है। साथ ही, उसकी पत्नी कई गंभीर बीमारियों से पीड़ित है और बेटा जन्मजात हृदय रोग से जूझ रहा है, जो भारत में रह रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने तमाम दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि भारत की सीमाएं हर किसी के लिए नहीं खोली जा सकतीं। कोर्ट ने टिप्पणी की “भारत कोई धर्मशाला नहीं है। हम पहले से ही 140 करोड़ लोगों के साथ संघर्ष कर रहे हैं। हम हर उस व्यक्ति को शरण नहीं दे सकते जो अपने देश में खुद को असुरक्षित मानता है।

गौरतलब है कि इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या शरणार्थियों के डिपोर्टेशन में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया था कि राष्ट्रीय सुरक्षा, जनसंख्या संतुलन और सीमित संसाधनों को देखते हुए सरकार की नीति सर्वोपरि है।

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